मध्य प्रदेश के 28 विभागों में 20685 करोड़ की गड़बड़ी - CAG ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा

Bhopal Samachar
CAG की ताजा ऑडिट रिपोर्ट में मध्य प्रदेश शासन के 28 विभागों में 20685 करोड रुपए की गड़बड़ी का खुलासा हुआ है। वैसे तो सरकारी कामकाज में पाई-पाई का हिसाब रहता है। स्याही खत्म हो जाए तो उसकी खरीदी का हिसाब रखने के लिए एक लंबी प्रक्रिया की जाती है फिर चाहे यूनिवर्सिटी में डिग्री और RTO ऑफिस में ड्राइविंग लाइसेंस की प्रिंटिंग ही क्यों ना पेंडिंग हो जाए लेकिन डिपार्टमेंट के अधिकारी अब तक हिसाब ही नहीं दे पा रहे हैं कि उन्होंने 20685 करोड रुपए कहां खर्च कर दिए हैं। 

CAG को मध्य प्रदेश के 10 विभागों में घोटाले का शक

मध्य प्रदेश में प्रावधान है कि विभागों को सहायता अनुदान के मामलों में विभागीय अधिकारियों को, हर साल 30 सितंबर तक उपयोगिता प्रमाण-पत्र यानी यूटिलाइजेशन रिपोर्ट, CAG के पास भेजनी होती है, लेकिन 31 मार्च 2023 (लास्ट डेट के 6 महीने बाद) तक मध्य प्रदेश के 28 विभागों द्वारा सहायता अनुदान के रूप में जारी की गई राशि के मामलों में 20 हजार 685 करोड़ के उपयोगिता प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किए। इसमें सबसे गंभीर तथ्य तो यह है कि 13205 करोड़ की राशि के उपयोगिता प्रमाण-पत्र 9 साल से ज्यादा समय से पेंडिंग हैं। इनमें सबसे ज्यादा गड़बड़ी 10 विभागों में बताई गई है। इन्हीं 10 विभागों में 13205 करोड़ के घोटाले का शक है।

सारी गड़बड़ी शिवराज सिंह सरकार के टाइम में हुई है

सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कुल 19965 उपयोगिता प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किए जाने थे। इसमें से 98 फीसदी उपयोगिता प्रमाण पत्र 2014-15 के पहले के हैं। विभागीय अधिकारियों ने अभी तक यह नहीं बताया कि पिछले सालों में खर्च की गई 20685 करोड़ की राशि किस प्रकार खर्च की गई। इसलिए यह चिंता का विषय है, क्योंकि इसमें मुख्य योजनाओं के कार्यांवयन के लिए दी जाने वाली राशि है और इसकी कोई गारंटी नहीं है कि जिस उद्देश्य के लिए यह राशि दी गई, उससे उद्देश्य प्राप्त हुआ है। 

मध्य प्रदेश में घोटालों को रोकने के लिए निगरानी तंत्र ही नहीं है

सीएजी ने इस मामले में धोखाधड़ी या पैसों के गलत तरीके से उपयोग में लिए जाने से भी इंकार नहीं किया है। सीएजी ने राज्य सरकार को इस मामले में कठोर निगरानी तंत्र स्थापित करने की सलाह दी है। मध्य प्रदेश में एक रिश्वतखोर कर्मचारी को पकड़वाने के लिए लोकायुक्त पुलिस में सिर्फ एक शिकायत और ऑडियो रिकॉर्डिंग काफी है परंतु यदि इसी मध्य प्रदेश में आप किसी बड़े घोटाले का खुलासा करना चाहते हैं तो आप कुछ नहीं कर सकते क्योंकि मध्य प्रदेश में ऐसा कोई तंत्र ही नहीं है जहां पर व्हिसल ब्लोअर को कुर्सी पर बिठाकर उसकी बात को सुना जाता हो, उसके डॉक्यूमेंट की छानबीन की जाती हो। यहां तो सूचना का अधिकार अधिनियम को हतोत्साहित करने के लिए, सूचना आयुक्त की नियुक्ति तक नहीं की जाती। 

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