भारत के बिहार राज्य में नीतीश कुमार सरकार द्वारा सरकारी नौकरी और सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में 65% आरक्षण वाला कानून पटना हाई कोर्ट द्वारा निरस्त कर दिया गया है। बिहार सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय इस मामले में सुनवाई के लिए तैयार हो गया है परंतु हाई कोर्ट के आदेश को स्थगित करने के लिए तैयार नहीं। यानी सुप्रीम कोर्ट पास का फैसला आने तक बिहार में 65% आरक्षण वाला कानून स्थगित रहेगा।
नीतीश कुमार सरकार ने सरकारी नौकरी-शिक्षा में 65% आरक्षण कर दिया था
सोमवार को प्रधान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने राज्य सरकार की ओर से दायर एसएलपी (विशेष अनुमति याचिका) पर सुनवाई की। बिहार राज्य सरकार ने पटना हाईकोर्ट के 20 जून को दिए गए फैसले की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सरकार ने 2 जुलाई को अर्जी दायर की थी, जिसे 6 जुलाई को पंजीकृत किया गया। राज्य सरकार ने गत वर्ष 9 नवंबर को सरकारी नौकरी एवं शैक्षणिक संस्थानों में 65 प्रतिशत आरक्षण देने का एक नया कानून पारित किया था। इस कानून को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। इसमें एससी-एसटी, ईबीसी व अन्य पिछड़े वर्गों को दिए जानेवाले आरक्षण को बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया था।
पटना हाई कोर्ट ने नीतीश कुमार सरकार का आरक्षण कानून निरस्त कर दिया था
इस मामले पर हाईकोर्ट में 4 से 11 मार्च के बीच लगातार सुनवाई हुई। इसके बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरिक्षत रख लिया था। हाईकोर्ट ने 20 जून को फैसले में राज्य सरकार के नए आरक्षण कानून को निरस्त कर दिया। इस आदेश को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार करते हुए इसे सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया। अब इस मामले पर सितम्बर में सुनवाई होगी।
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