श्रावण के पवित्र महीने में सम्पूर्ण भारत भगवान भोले की असीम भक्ति में लीन हो चुका है। हर गांव, हर कस्बे, हर नगर, हर तीर्थ के शिव मंदिरों में आस्था का सैलाब उमड़ पुण्य लाभ ले रहा है।
अटूट, असीम श्रद्धा के अर्ध अर्पित करने की होड़ लगी है। भक्त अल सुबह से ही।उज्जैन के महाकाल, ओंकारेश्वर, सोमनाथ, बैजनाथ, केदारनाथ, पशुपति नाथ, रामेश्वर, सहित सभी ज्योतिर्लिंगों, भोजपुर,महादेव- नरसिंहगढ, खोयरी-राजगढ़, घुरेल- ब्यावरा, उदयपुर, जटाशंकर-पचमढ़ी, सहित हजारों शिव देवालयों में अर्पित किए जा रहे पुष्पों, बिलपत्रो, आंकड़े के लगे ढेर भक्ति, विश्वास, आस्था की अलग ही शिव कथा बयान कर रहे है।
यहां कहीं कोई भेदभाव की दीवार नहीं दिखती
लाखों पूजन सामग्री विक्रेताओं के लिए श्रावण मास लक्ष्मी मास में बदल जाता है। मंदिरों के बूते लाखों बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण कर पा रहे है। पूजन सामग्री विक्रेता 90% संविधान के मुताबिक पिछड़े और निम्न वर्ग के माने जाते है। संविधान की ओट लेकर वोटों के भूखे कुछ जल्लाद भले ही जातियां तलाशते हो। मगर ये सब समाज में समरस है। कही कोई भेदभाव, दीवार नही दिखती।
मंदिरों के बाहर बड़े मनुहार से प्रसाद, पूजन सामग्री, श्रीफल आदि बेचते है। बदले में वे हर श्रद्धालु के जूते, चप्पल, मोबाइल, अन्य कीमती वस्तुएं रख लेते है। सभी जाति और समाज के लोग इन पर विश्वास करते हैं। ये ठिये बैंक से कम नही होते। मजाल किसी भक्त की कोई वस्तु कम हो जाए। ये अनूठी व्यवस्था भारत के सिवा अन्यत्र दुर्लभ सी है।
पूजन समग्री ही क्यों? व्यंजन, चाय नाश्ते, चाट पकोड़े,पोहे की मौसमी ठिये भी शायद किसी ब्राह्मण के हों। 95% पिछड़े और अन्य जातियों के होते है। बिना किसी दुराव छुपाओ के वे अपने ठिये पर अपना मालिकाना बोर्ड, बैनर लगाते है। न जात न धर्म छुपा कर धोखा देते है। न छल, कपट करते है।
अल सुबह से घण्टिया, शंख, मंजीरे बजने लहते है। छोटे बड़े हर शिवालय पर अभिषेक करने वालों का तांता लगा रहता है। बुक करने में चूक जाओ तो पंडित नही मिलते। मालवा-ए-कश्मीर नरसिंहगढ तो श्रावण-भादो में वृंदावन में बदल, अलग ही छटा के दर्शन करवाता है।
सोमवर को तो उज्जैन, भोजपुर, नरसिंहगढ आदि के कण-कण रुद्र हो उठते है। लाखों भक्त। लम्बी कतार। मजाल कही कोई अव्यवस्था, अनुशासन हीनता हो जाए। सब यंत्रवत। ✒ श्याम चौरसिया।