मध्य प्रदेश टाइगर स्टेट कैसे बना, पढ़िए कान्हा का मुन्ना और पेंच की सुपर मॉम कौन थी - TIGER DAY

Bhopal Samachar
मध्यप्रदेश, देश का हृदय स्थल होने के साथ ही अपनी विशेष उपलब्धियों के लिए भी जाना जाता है और टाइगर स्टेट इन्हीं में से एक है। मप्र में इस समय 785 टाइगर्स मौजूद हैं और वन क्षेत्र की शोभा बढ़ा रहे हैं। यही कारण भी है कि यहां पयर्टकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। स्वच्छ पर्यावरण और सघन वन, बाघों के लिए अनुकूल वातावरण निर्मित करते हैं। बाघों के संरक्षण से पारिस्थितिकी तंत्र या कहें कि पूरे जंगल का संरक्षण होता है। यहां हम यह कह सकते हैं कि बाघों को बचाना पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने जैसा है और यह मनुष्य के अस्तित्व के लिए भी बेहद जरूरी है। मध्यप्रदेश सरकार मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कुशल नेतृत्व में वन और वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए निरंतर कार्य कर रही है।  

सबसे नया टाइगर रिजर्व "रानी दुर्गावती"

21 जुलाई 2023 को प्रकृति संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ ने बाघों का पुनर्मूल्यांकन किया और नए आंकड़े जारी किए थे। इनके मुताबिक पूरी दुनिया के जंगलों में 3726 से 5578 बाघ हैं। भारत में टाइगर्स की संख्या 3167 है, जिसमें से मध्यप्रदेश में 785 बाघ पाए जाते हैं। वर्ष 2018 में बाघों की संख्या 526 थी, जिसमें अब 259 टाइगर बढ़ गए हैं। 1 अप्रैल 1973 को बाघ परियोजना शुरू की गई थी, यह दुनिया में अपनी तरह की सबसे बड़ी प्रजाति संरक्षण के लिए की जाने वाली पहल मानी जाती है।  बाघ परियोजना का मुख्य उद्देश्य बाघों को सुरक्षित आवास उपलब्ध कराना और उनके शिकार पर अंकुश लगाना था। बाघों के संरक्षण के लिए पूरे देश में बाघ अभयारण्य का एक नेटवर्क बनाया गया, जिसमें मध्य प्रदेश के कान्हा सहित देश के सात नेशनल पार्कों को शामिल किया गया। इसके बाद 1993 में बांधवगढ़, 1992 में पेंच, 1994 में पन्ना और 1999 में सतपुड़ा को टाइगर रिजर्व का दर्जा दिया गया। मध्यप्रदेश में 11 नेशनल पार्क, 7 टाइगर रिजर्व और 24 अभयारण्य हैं इसमें सबसे नया टाइगर रिजर्व "रानी दुर्गावती" जो वर्ष 2023 में घोषित किया गया है।

हमारे खास टाइगर्स ने बनाई पहचान 

मध्यप्रदेश के बाघों की प्रसिद्धी दूर दूर तक रही है, इसमें सबसे खास रहा है कान्हा रिजर्व का मुन्ना,  यह अपनी सुंदरता के साथ माथे पर बने बर्थ मार्क के कारण चर्चा में रहा है। मुन्ना के माथे पर प्राकृतिक रूप से कैट और पीएम लिखा हुआ था, जिसके चलते मुन्ना की दुनिया भर में अलग पहचान थी। वहीं पेंच टाइगर रिजर्व की बाघिन जिसे कॉलरवाली बाघिन के नाम से पहचान मिली थी, यह नाम रेडियो कॉलर लगाने के कारण दिया। इसे मृत्यु उपरांत सुपर मॉम नाम दिया गया था। इस बाघिन ने सबसे ज्यादा 29 बाघों को जन्म दिया जो कि अपने आप में रिकॉर्ड है। इसी तरह से बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के बाघ चार्जर और बाघिन सीता पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे। सीता अलग-अलग तरह के पोज देती तो चार्जर पयर्टकों की गाड़ियों को देखकर दहाड़ता और अपनी ओर आकर्षित करता।  इसके अलावा बामेरा अपने अलग अंदाज,  कद-काठी के लिए जाना जाता। पन्ना टाइगर रिजर्व की प्रसिद्ध बाघिन टी1 को सफल शिकारी होने के साथ नेशनल पार्क से रिजर्व में पुन: स्थापित होने वाली पहली बाघिन मानी जाती है। इस तरह से प्रदेश के बाघों ने विशेषताओं के चलते देशभर में अपनी पहचान स्थापित की है। 

50 वर्ष पूरे होने पर जारी किया सिक्का 

वर्ष 2023 में बाघ परियोजना ने सफल कार्यान्वयन के 50 वर्ष पूरे कर लिए हैं। यह परियोजना भारत के लुप्तप्राय जंगली बाघों को बहाली के मार्ग पर ले आई है। 9 अप्रैल 2023 को कर्नाटक के मैसूर में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा एक स्मारक कार्यक्रम "बाघ परियोजना के 50 वर्षों का स्मृति उत्सव" का उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री ने प्रकाशन - 'बाघ संरक्षण के लिए अमृत काल की परिकल्पना' बाघ अभयारण्यों के प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन के 5वें चक्र की सारांश रिपोर्ट, अखिल भारतीय बाघ अनुमान (5वें चक्र) की सारांश रिपोर्ट और घोषित बाघ संख्या भी जारी किया था। उन्होंने बाघ परियोजना के 50 वर्ष पूरे होने पर एक स्मारक सिक्का भी जारी किया था। इस प्रकार सरकार निरंतर ही बाघों के संरक्षण के लिए कार्य कर रही है। वर्ष 2022-23 के दौरान, पेंच टाइगर रिजर्व (मध्य प्रदेश) व पेंच टाइगर रिजर्व (महाराष्ट्र) को संयुक्त रूप से और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व (मध्य प्रदेश) को टीx2 पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, जो अंतरराष्ट्रीय संघ संगठन अर्थात् जीईएफ, यूएनडीपी, आईयूसीएन, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और जीटीएफ द्वारा स्थापित किया गया है। 

यह भी जरूर जानें

हर साल 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय टाइगर डे मनाया जाता है, यह दिन खासतौर पर बाघों की लगातार कम होती आबादी पर नियंत्रण करने के लिए मनाया जाता है। भारत के लिए यह दिन और भी खास है, क्योंकि बाघ न सिर्फ भारत का राष्ट्रीय पशु है, बल्कि दुनिया के लगभग 70% से अधिक बाघ भारत में ही पाए जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने की शुरुआत साल 2010 में हुई थी। रूस के पीटर्सबर्ग में हुई इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस के दौरान यह फैसला लिया गया था। इस कॉन्फ्रेंस में 13 देशों ने हिस्सा लिया था। 

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर दी बधाई

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि यह हमारा सौभाग्य है कि मध्यप्रदेश सर्वाधिक बाघ वाला प्रदेश है। प्रदेश में बाघों की आबादी बढ़कर 785 पहुँच गई है। यह प्रदेश के लिये गर्व की बात है। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर प्रदेशवासियों को बधाई और शुभकामनाएँ दी हैं।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा है कि वन्य प्राणियों की सुरक्षा का कार्य अत्यंत मेहनत और परिश्रम का है। समुदाय के सहयोग के बिना वन्य प्राणियों की सुरक्षा संभव नहीं है। वन विभाग और वन्य प्राणियों की सुरक्षा में लगे सभी लोग बधाई के पात्र हैं, जिनके कारण मध्यप्रदेश एक बार फिर टाइगर स्टेट बन गया है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर जंगलों में बाघों के भविष्य को सुरक्षित करने और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए एकजुट होकर कार्य करने का संकल्प लेने का आहवान किया है।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि बाघों के संरक्षण के लिये संवेदनशील प्रयासों की आवश्यकता होती है जो वन विभाग के सहयोग से संभव हुई है। हमारे प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों में बेहतर प्रबंधन से जहाँ एक ओर वन्य प्राणियों को संरक्षण मिलता है, वहीं बाघों के प्रबंधन में लगातार सुधार भी हुए हैं।

वन्य प्राणियों के प्रति संवेदनशीलता

वन्य प्राणियों के प्रति संवेदनशीलता का हाल ही में सीहोर जिले में एक उदाहरण सामने आया था। सीहोर जिले के बुदनी के मिडघाट रेलवे ट्रेक पर बाघिन के तीन शावक ट्रेन की चपेट में आ गये थे, जिसमें दो गंभीर रूप से घायल शावकों को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के निर्देश पर जिला प्रशासन और वन्य प्राणी चिकित्सकों की टीम द्वारा एक डिब्बे की विशेष ट्रेन से उपचार के लिये भोपाल लाया गया था। 

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