Ancient Krishna Temple of Madhya Pradesh
प्राची अनामिका मिश्रा। श्री राधाकृष्ण मंदिर बांधा इमलाज मध्यप्रदेश के कटनी जिले में रीठी विकासखंड के अंतर्गत कटनी से 22 किलोमीटर की दूरी पर प्राचीन पुष्पावती वर्तमान बिलहरी से 6 किलोमीटर दूर ग्राम बांधा में स्थित है। यह ग्राम विशाल पर्वत की गोद में स्थापित होने के कारण यहां सूर्यास्त 1 घंटे पूर्व ही हो जाता है। यह एक विशिष्ट अद्वितीय प्राकृतिक घटना है।
लगातार तीन दिनों तक श्री कृष्ण ने बजाई बांसुरी
मंदिर से संबंधित परम अलौकिक चमत्कारिक सत्य घटना यह है कि यहां वर्ष 1929-30 में सावन के महीने में लगभग लगातार 3 दिनों तक श्री मुरलीमनोहर जी की बांसुरी बजी थी। हजारों की संख्या में उपस्थित जनों ने इस अभूतपूर्व चमत्कारिक लीला का साक्षात्कार किया था। बांसुरी की ध्वनि लगातार 3 दिनों तक बजने के कारण इस चमत्कारिक घटना की ख्याति दूर दूर तक फैली थी। लोगों ने अपने तर्कों व वैज्ञानिक कारणों सहित सभी प्रकार से यह जानने का प्रयास किया कि यह बज रही बांसुरी की ध्वनि कोई भौतिक अथवा लौकिक कारणों से हो रही है, किन्तु परीक्षण के समस्त मानवीय प्रयास असफल रहे और लगातार 3 दिनों तक सुमधुर बांसुरी की धुन मंदिर में गूंजती रही।
वहीं इस धाम के लिए स्थानीय कहावत भी प्रचिलत है-
चार पहर सारा संसार, तीन पहर बांधा इमलाज।।
मन्दिर निर्माण की आधारशिला
भगवान श्री राधाकृष्ण जी के इस चमत्कारिक धाम के निर्माण की आधारशिला बांधा ग्राम के मालगुजार श्री गोरेलाल पाठक जी के द्वारा सन 1915 में रखी गई। मंदिर निर्माण की नींव संरचना के पश्चात अचानक श्री गोरेलाल पाठक जी का देवलोक गमन हो गया। ऐसी परिस्थिति में आपकी पत्नी श्रीमति पूना देवी जी ने मंदिर निर्माण कराने का भार अपने परिवार के सदस्यों के साथ स्वीकार किया और परमात्मा का यह दिव्य धाम 11 वर्ष में 1926 में जाकर पूर्ण रूप से निर्मित हुआ।
सौ वर्षों पूर्व हुई प्राण प्रतिष्ठा
वर्ष 1927 में विद्वत नगरी काशी बनारस के विद्वान आचार्यो द्वारा सम्पूर्ण वैदिक विधि विधान से मंदिर के प्रधान गर्भ ग्रह में भगवान श्री राधाकृष्ण जी एवं बलदाऊ जी की, वाम कक्ष में भगवान भोलेनाथ जी की प्राण प्रतिष्ठा हुई। दाहिने कक्ष में वर्ष 2002 में आदिशक्ति माँ गायत्री जी की प्राण प्रतिष्ठा हुई।
पत्थर ढोने वाले भैंसों ने त्यागे प्राण
बांध कृष्ण मंदिर में बांसुरी बजने की परम अलौकिक चमत्कारिक लीला की ही भांति, यह भी एक और घटना अति परलौकिक हुई थी जो कि मंदिर निर्माण हेतु सम्पूर्ण पत्थर जिन दो भूरा और चंदुआ नाम के भैसों (पड़े) ने ढोया था, भगवान की प्राण प्रतिष्ठा यज्ञ के समापन दिवस के अवसर पर एक साथ भगवान के सम्मुख की सीढ़ियों में उनके प्राण विसर्जित हुए थे।
गोपियों की तरह था ठकुराइन का जीवन
ग्राम की ठकुराइन श्रीमति पूना देवी जी की भक्ति भाव दशा शास्त्रों में उल्लेखित गोपियों की स्थिति की भांति रही है। वे रात में उठकर भगवान का भोग बनाती उन्हे अर्पित करतीं, जब उनसे पूछा जाता तो वे कहती की मुरलीमनोहर जी ने अभी प्रसाद की जिद की है तो क्या करूँ।
मंदिर में चल रहे भजनों के मध्य सभी को रोककर कहती कि देखो राधारानीजू कह रही हैं कि मुझे अभी दूसरी पायल पहननी है और वे तत्काल दूसरी पायल बनवाकर अर्पित करतीं। लोगों का मानना है कि इस प्रकार की उच्च भक्ति दशा प्राप्त श्रीमति पूना देवी जी का सम्भवतः परमात्मा से प्रत्यक्ष संवाद होता रहा है।
माह की पूर्णिमा को महाआरती
बांधा कृष्ण मंदिर में हर माह की प्रत्येक पूर्णिमा को भव्य महाआरती तथा सनातन धर्मानुसार प्रत्येक पर्व जैसे श्री कृष्ण जन्माष्टमी ,श्री राधा अष्टमी, नवरात्रि ,शिवरात्रि ,श्री राम नवमी ,श्री गणेश उत्सव, होली महोत्सव ,अन्नकूट में वृहद दीपदान महोत्सव के साथ हवन पूजन एवं धार्मिक कथाओं के साथ भंडारे आदि के आयोजन होते रहते हैं।
बांधा कृष्ण मंदिर कैसे पहुंचे
यहां पहुंचने के लिए आप कटनी से बिलहरी होते हुए पहुंच सकते हैं, इसके अलावा स्लीमनाबाद भेड़ा होते हुए बिलहरी पहुंचकर भी बांधा मन्दिर पहुंच सकते हैं। साथ ही रीठी के देवगांव से भी मन्दिर दर्शन करने जा सकते हैं। यह संपूर्ण प्राचीन जानकारी श्री राधाकृष्ण मन्दिर बांधा के रामनरेश त्रिपाठी, नवनीत चतुर्वेदी आदि भक्तों ने बताई।
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