नागवंश की कहानी रहस्य और रोमांच से भरी हुई है। इतिहास में तमाम बातें दर्ज हैं परंतु नागवंश के बारे में बहुत कम जानकारी दी गई है। वैज्ञानिक मानते हैं कि, डायनासोर के पहले भी पृथ्वी पर नागवंश का अस्तित्व था। आपको जानकर रोचक आश्चर्य होगा कि नागवंश की स्थापना मध्य प्रदेश में हुई थी। यहां के एक गांव में आज भी नागवंश की स्थापना का उत्सव मनाया जाता है। नाग पंचमी के दिन यहां रोटी नहीं बनाई जाती बल्कि बाटी बनाई जाती है। खीर नहीं बनाई जाती क्योंकि दूध, नाग देवता के लिए रिजर्व कर दिया जाता है। इतिहास के पन्नों को खोल रही, बरेली रायसेन के प्रतिष्ठित पत्रकार कमल याज्ञवल्क्य की एक रिपोर्ट।
दो इतिहासकार इसकी पुष्टि करते हैं
ख्यातिप्राप्त इतिहासकार और विश्व प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता डॉक्टर नारायण व्यास भी इसकी पुष्टि करते हैं कि इस क्षेत्र का संबंध नागवंश से रहा है। वरिष्ठ इतिहासकार पंडित राजीव लोचन चौबे द्वारा रायसेन क्षेत्र का इतिहास, भूगोल एवं पुरातत्व पर लिखी पुस्तक "युग युगीन रायसेन" में नागवंश पर तथ्यात्मक जानकारी मिलती है।नागपंचमी के पर्व पर "जामवंत संवाद सेवा" द्वारा ऐतिहासिक धरोहरों से समृद्ध रायसेन जिला सहित अंचल के गांवों में नाग पंचमी पर्व पर झांकने का प्रयास किया तो नाग पूजा की परंपरा होने के भी प्रमाण मिले। इसके अलावा घरों की दीवारों पर भी शुद्ध घी से नाग परिवार बनाकर पूजा की जाती है। घरों के बाहर नियत स्थान पर मिट्टी के दीपक में दूध रखने की भी परंपरा है।
अखाड़ी मंत्र सिद्ध करते हैं
नागपंचमी की रात में गांवों में एक निश्चित स्थान पर भगवान नागचंद्रेश्वर की पारंपरिक रूप से सामूहिक पूजा होती है। पूजा से जुड़ी यह जानकारी बताती हैं इस विशेष पूजा में जो बिष खड़िया शामिल होते हैं वह सभी मिलकर पहले नाग देवता की पारंपरिक रूप से पूजा करते हैं और एक दूसरे से मंत्रों को साझा करते हुए सिद्ध करते हैं। इसके अलावा घरों में भी भाव सहित नाग देवता की पूजा की जाती है।
एक गांव में नाग पंचमी के दिन रोटी नहीं बनती
रायसेन क्षेत्र के गांवाें में ऐसी परंपरा है कि नाग पंचमी पर राेटी नहीं बनाई जाती और ना ही खीर बनाई जाती है। इस दिन घराें में पूरी या बाटी बनाई जाती है। यह परंपरा कब स्थापित हुई, क्यों स्थापित की गई, इसके पीछे की कथा क्या है। या किसी को भी नहीं मालूम, लेकिन परंपरा है और पालन किया जा रहा है।
रायसेन-विदिशा: नागवंश का इतिहास
भारतीय इतिहास संकलन समिति,मध्य भारत,भोपाल द्वारा प्रकाशित "युग युगीन रायसेन" पुस्तक के लेखक वरिष्ठ इतिहासकार पंडित राजीव लोचन चौबे ने अपनी पुस्तक में नागवंश के संबंध में तथ्यात्मक जानकारी दी है जिसके अनुसार- सातवाहन राजाओं के काल में ही इस क्षेत्र में नागवंश का उदय हो गया था। यह नाग शैव मातावलंबी एवं बड़े पराक्रमी थे। उनकी मुद्राओं में ताल वृक्ष का चित्र पाया जाता है। संभव है कि इनके पूर्वज ताड़ वनों वाले समुद्र तटीय क्षेत्र से यहां आए हों। ईसा की दूसरी शताब्दी के अंतिम चरण में जब मध्य भारत के दक्षिण क्षेत्र में राजनैतिक उथल-पुथल चल रही थी उस समय रायसेन, विदिशा और ग्वालियर क्षेत्र में इस नए राजवंश का उदय हुआ। जोकि नाग वंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
नागवंश का संस्थापक वृष नाग था
सिक्कों के आधार पर ज्ञात होता है कि नागवंश की स्थापना रायसेन-विदिशा क्षेत्र में हुई थी। कालांतर में उनकी शाखाओं का विस्तार हुआ। डॉक्टर त्रिवेदी के अनुसार यह तीनों शाखाएं एक ही हैं नागवंश का संस्थापक वृष नाग था। जिसने ई. सं.की दूसरी शताब्दी के उत्तरार्ध में इस वंश की नींव डाली। यहां के नागों को पुराणों में वृष कहा जाता है। विदिशा से वृषनाग के सिक्के मिले हैं। उत्खनन से प्राप्त सिक्कों से विदिशा नागवंश का केंद्र होना सिद्ध होता है।
गणपति नाग इस वंश का अंतिम शासक था
भीमनाग ने संभवत विदिशा से पद्मावती को राजधानी बनाया गया था जिसके पश्चात स्कंद नाग, वसुनाग तथा बृहस्पति नाग राजा हुए। बृहस्पति का राज्य काल ई. सन की तीसरी शताब्दी के अंत में समाप्त हो गया। पद्मावती के अंतिम छह राजा विभुनाग, रविनाग, प्रभाकर नाग, भवनाग, देवनाग तथा गणपति नाग थे। इन सभी के सिक्के पवाया में मिले हैं। रविनाग का एक नए प्रकार का सिक्का ऐरण में मिलता है। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त के इलाहाबाद स्तंभ लेख में उन शासकों की सूची में जिन्हें समुद्रगुप्त ने उच्छेद किया था। गणपति नाग का नाम आया है। संभवत गणपति नाग इस वंश का अंतिम शासक था, जिसे पराजित कर समुद्रगुप्त द्वारा नाग राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया गया था।
कांतिपुरी, आधुनिक कुतवार में भी नागों की एक राजधानी थी
समुद्रगुप्त के उपरोक्त अभिलेख में आर्यावर्त के नागदत्त और नागसेन नामक दो शासकों का उल्लेख भी आया है। नागदत्त के बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं होती है, परंतु नागसेन का उल्लेख पद्मावती के राजा के रूप में बाण रचित हर्ष चरित में आया है परंतु उसके शासन के कोई भी सिक्के अभी तक प्राप्त नहीं हुए हैं। विदिशा और पद्मावती के अतिरिक्त पुराणों के अनुसार कांतिपुरी (आधुनिक कुतवार) में भी नागों की एक राजधानी थी। कुतवार से प्राप्त नाग शासकों के 1859 सिक्कों की एक विशाल निधि से यही बात प्रमाणित होती है। इस काल की गंगा नदी की एक मूर्ति विदिशा में मिली थी जो आजकल बोस्टन अमेरिका के संग्रहालय में रखी हुई है।
रायसेन के आसपास गांव में नाग प्रतिमाएं पर्याप्त संख्या में मिलती हैं। रायसेन एवं विदिशा जिलों के अनेंक गांवो में काफी प्राचीन नाग प्रतिमाएं हैं जो रायसेन स्थित पुरातत्व संग्रहालय में प्रदर्शित हैं। इन ऐतिहासिक नाग प्रतिमाओं को "युग युगीन रायसेन" के लेखक पंडित राजीव लोचन चौबे द्वारा संग्रहित कर वहां पहुंचाई गई हैं। नागवंश का इतिहास आज तक अस्पष्ट है । अभी भी इस पर गहरे शोध की आवश्यकता है।
नागवंश से रहा है संबंध
वर्तमान मध्यप्रदेश के रायसेन-विदिशा जिले का संबंध नागवंश काल से रहा है। जिले के कई स्थानों और बरेली क्षेत्र सहित कई गांवों में प्राचीन बहुत सुन्दर नाग युग्म प्रतिमाएं हैं, जो नौवीं शताब्दी के लगभग की है। इससे प्रमाणित होता है कि इस क्षेत्र का संबंध नागवंश से रहा है। बरेली क्षेत्र के जामगढ़-भगदेई गांवों में अति प्राचीन देवी माँ के मठ की दीवार पर लगी सुन्दर नागजोड़े की युग्म प्राचीन प्रतिमा काफी आकर्षित है।
डॉक्टर नारायण व्यास, विश्व प्रसिद्ध पुरातत्वविद और इतिहासकार,
इन क्षेत्रों में नागवंश का प्रभाव रहा है
रायसेन और विदिशा क्षेत्र का गौरवशाली इतिहास है। इन क्षेत्रों में नागवंश का प्रभाव रहा है। गांव-गांव नाग युग्म प्राचीन प्रतिमाएँ मिलती हैं। कुछ प्राचीन नाग प्रतिमाओं को हमने रायसेन के पुरातत्व संग्रहालय में सुरक्षित कराया है। जिले भर में बिखरी हुई प्रतिमाओं को सुरक्षित करने का प्रयास है ताकि आने वाली पीढ़ियों को अपने गौरवशाली इतिहास की जानकारी मिलती रहे।
पंडित राजीव लोचन चौबे, "युग युगीन रायसेन " के लेखक एवं इतिहासकार