मध्य प्रदेश शासन, स्कूल शिक्षा विभाग के अंतर्गत नवीन शिक्षक संवर्ग (पूर्व में अध्यापक संवर्ग) को छठवें वेतनमान में विसंगति विवाद पर जबलपुर स्थित हाई कोर्ट ऑफ़ मध्य प्रदेश द्वारा फाइनल डिसीजन सुना दिया गया है। गुड न्यूज़ है क्योंकि याचिकाकर्ताओं को राहत मिली है।
राकेश पांडेय सहित 2 हजार शिक्षकों ने याचिका दाखिल की थी
राकेश पांडेय, माध्यमिक शिक्षक (अध्यापक) जितेंद्र शाक्य एवम दो हजार अन्य पूर्व अध्यापक/वर्तमान शिक्षक द्वारा, उच्च न्यायालय जबलपुर के समक्ष, अध्यापक संवर्ग को 01/01/2016, दिए जाने वाले सिक्स्थ पे स्केल के लाभ में उत्पन्न विसंगति को उच्च न्यायालय जबलपुर के समक्ष चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं के उच्च न्यायालय जबलपुर वकील श्री अमित चतुर्वेदी से प्राप्त जानकारी के अनुसार, प्रमुख रूप से त्रुटिपूर्ण वेतन निर्धारण, प्री रिवाइज्ड बेसिक सैलरी में कमी, वर्षों के आधार पर सेवा की गणना कर, कृत्रिम टेबल तैयार एक्सिस्टिंग विद्यमान वेतन कमी किया जाना/दिनांक 01/01/16 को वेतन निर्धारण में बेसिक वेतन जो कम किया जाना एवम 6 मास से उपर की सेवा को पूर्ण वर्ष नही माना वेतन निर्धारण हेतु, प्रमुख बिंदु याचिका में शामिल थे।
मध्य प्रदेश शासन की आपत्ति पढ़िए
सभी याचिकाएं लगभग 7 वर्षो से कोर्ट में पेंडिंग थी। निराकरण में विलंब हो रहा। पैरवी के दौरान, अधिवक्ता अमित चतुर्वेदी ने कोर्ट को बताया कि, विद्यमान वेतन के आधार पर, दिनांक 1/1/2016 से सिक्स पे का वर्षो के आधार पर, वेतन निर्धारण कर बेसिक वेतन का कम किया जाना, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ हैं। शासन द्वारा याचिका खारिज करने की प्रार्थना की गई यह कहते हुए की ग्वालियर पीठ पूर्व में यह याचिका खारिज हो चुकी है।
एडवोकेट अमित चतुर्वेदी की दलील पढ़िए
अधिवक्ता अमित चतुर्वेदी ने कोर्ट का ध्यान आकर्षित करते हुए बताया कि ग्वालियर बेंच के समक्ष, 01/01/16 से वेतन निर्धारण किए जाते समय, बेसिक वेतन की कमी का मुद्दा नही उठाया गया था। कोर्ट का मत था कि वेतन निर्धारण का मामला एक्सपर्ट समिति ही देख सकती है। ऐसी परिस्थिति में यह मामला प्रमुख सचिव जो भेजा जाना उचित होगा।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का आदेश पढ़िए
अंतिम आदेश जारी करते हुए, दिनांक 6/08/24 कोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि प्रमुख सचिव, पंचायत एवम स्कूल शिक्षा, याचिकाकर्ताओं/कर्मचारियों के अभ्यावेदन का बिंदुबार निराकरण करेंगे, उस अवधि में, किसी भी याचिकाकर्ता के वेतन में कमी नही की जायेगी। दूसरे शब्दों में, जब तक शासन वेतन विसंगति संबंधी का अभ्यावेदन का निर्णय नही कर देता, कोर्ट का स्टे जारी होगा।
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