जबलपुर स्थित हाई कोर्ट आफ मध्य प्रदेश ने मध्य प्रदेश शासन से अनुदान प्राप्त विद्यालयों के शिक्षक और कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। मामला सन 2000 के बाद नवीन नियुक्ति अथवा अनुकंपा नियुक्ति का है। शासन ने अनुकंपा नियुक्ति की अनुमति दी थी परंतु सन 2000 में नियम बदल दिए।
याचिकाकर्ता कौशल कुमार कुशवाहा को अनकंपनी मिली थी
याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी कौशल कुमार कुशवाहा का कहना था कि पिता शासकीय अनुदान प्राप्त स्कूल में पदस्थ थे, जिनकी मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। जिला शिक्षा अधिकारी ने सितंबर, 2017 में जारी एक आदेश में कहा कि स्कूल उन्हें अनुकंपा के आधार पर नियुक्त कर सकता है, लेकिन वेतन कौन देना, यह शासकीय निर्णय पर आधरित है।
सन 2000 में नियम बदल दिए गए हैं
याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि राज्य शासन ने स्वयं सरकारी अनुदान प्राप्त निजी शैक्षणिक संस्थानों को किसी कर्मचारी की सेवा के दौरान मृत्यु की स्थिति में उसके आश्रितों में से एक को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति देने की व्यवस्था दी है। इस पर राज्य शासन की ओर से हाई कोर्ट को अवगत कराया गया कि अब नियम बदल दिए गए हैं। अनुदान प्राप्त विद्यालयों के सभी पदों को डाइंग कैडर घोषित कर दिया गया है। सभी प्रकार की नवीन नियुक्ति पर रोक लगा दी गई है, लेकिन स्कूलों को स्वतंत्र किया गया है कि यदि वह चाहे तो अपने खर्चे पर नवीन नियुक्ति कर सकते हैं।
संशोधित नियम पुराने कर्मचारियों पर लागू नहीं होंगे: सुप्रीम कोर्ट
इन संशोधित नियमों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि संशोधित नियम वर्ष 2000 से पहले भर्ती हुए अनुदान प्राप्त स्कूलों के कर्मचारियों पर लागू नहीं होंगे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्य शासन ने आदेश जारी किया कि किसी कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने या किसी अन्य कारण से अनुदान प्राप्त स्कूलों में नई नियुक्तियां नहीं की जाएंगी। रिक्त पद को बट्टाखाते में डाल दिया जाएगा और पद पर नए सिरे से नियुक्त व्यक्ति को वेतन और भत्तों के लिए अनुदान नहीं दिया जाएगा।
हाई कोर्ट का आदेश
सभी दलीलें सुनने के बाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक जैन की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि राज्य शासन ने अनुदान प्राप्त स्कूलों में पदों को डाइंग कैडर घोषित करने का फैसला किया है और रिक्त होने वाले पदों पर कोई नई नियुक्ति की अनुमति नहीं दी जा रही है, लेकिन स्कूल अपने स्तर पर नियुक्ति कर सकते हैं। इस सिलसिले में राज्य शासन से वेतन संबंधी सहायता के लिए मुंह ताकना आवश्यक नहीं है।
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