श्याम चौरसिया। शिक्षा सत्र 24-25 के दो महीने बीत जाने के बाबजूद जारी बेतुके, असंगत, अव्यवहारिक, विसंगतिपूर्ण प्रयोगों ने शिक्षा सत्र का बंटाधार कर दिया। विद्यार्थियों से लेकर नियमित और अथिति शिक्षक भीषण तनाव में है। पल-पल अनिश्चितता ,अविश्वास से दो चार हो रहे है। शिक्षा सत्र का बंटाढार होने वाला है। इसके बावजूद स्कूल शिक्षा मंत्री के माथे पर कोई सिलवट नहीं है और मुख्यमंत्री तो बांसुरी बजाने में मग्न है।
पहले उच्च पद की आंधी, अब अतिशेष का टोटका
पहले उच्च पद प्रभार की चलती आंधी ओर अब अतिशेष के टोटके ने प्रदेश की लगभग 82 हजार शालाओं की कक्षाओं को शिक्षक विहीन कर दिया। कक्षाओं में विद्यार्थी है। वे पढ़ना चाहते है। मगर उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षक नही है। विज्ञान के शिक्षकों से अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत,सामान्य विज्ञान, पढ़वा कर हांका किया जा रहा है। इसी तरह से कहीं-कहीं पर हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी के शिक्षकों से विज्ञान पढ़वा कर खानापूर्ति जारी है। 55 जिलों के DDO की रिपोर्ट के मुताबिक इस समय 85 हजार से ज्यादा शिक्षकों का टोटा चल रहा है।
50000 अतिथि शिक्षक - उच्च पद का डंडा, अतिशेष का डंक
70 हजार अथितियों में से 20 हजार अथिति ही उपस्थिति दे सके। बाकी 50 हजार अथिति अभी भी उच्च पद प्रभार शिक्षकों की विसंगतियों को अपग्रेड न किए जाने से बेरोजगार होकर अनिश्चितता, तनाव के शिकार हो रहे है। उनका आंदोलन करना। ज्ञापन देना सब बेकार गया। सितम्बर 23 में आहूत अथिति महापंचायत में तत्कालीन CM शिवराज सिंह चौहान ने गारंटी दी थी परंतु उनका कार्यकाल खत्म होते ही उनकी गारंटी भी खत्म हो गई।
चर्चा ये है कि सातवीं बार अथिति शिक्षकों के दिन फेरने की तिथि बढ़ाने के बाबजूद अब अतिशेष के डंक ने तलवार लटका दी। 28 अगस्त अंतिम तिथि घोषित की थी। मगर आयुक्त, लोक शिक्षण संचालनालय, मध्यप्रदेश, भोपाल ने अभी तक व्याप्त विसंतियों का कोई समाधान नहीं निकाला। भौतिक स्थिति में रिक्त पद को पोर्टल पिछले 22 दिनों से शून्य ही बता रहा है। बेबस, बेकरार अथिति, पॉर्टल पर अपनी id और पासवर्ड दिन में सेकड़ो बार लॉगिन करते है। मगर वह शून्य रिक्त पद में न बदल तनाव, अविश्वास को ओर बढ़ा देता है।
बीच सत्र में अतिशेष का तराना क्यों छेड़ा
बीच सत्र में अतिशेष का तराना छेड़ने से शिक्षकों के सभी संगठन खासे खफा है। उनका ये मत है कि यदि यही काम सत्र प्रारंभ करने से पूर्व कर लिया जाता तो अध्यापन की गति, लय लकवाग्रस्त नही होती। शिक्षकों की तंगी के बाबजूद बनाई व्यवस्था भी लड़खड़ाने के चांस बढ़ गए। अतिशेष की जद में आए शिक्षक अब काउंसलिंग की आपाधापी में लग गए हैं।
इसमें कोई दो मत नही कि शहरी क्षेत्र और शहर से लगी शालाओं में जरूरत से ज्यादा शिक्षक होने से ग्रामीण शालाएं में शिक्षकों का टोटा भुगत रही हैं। विद्यार्थियों ओर शिक्षकों के बीच का असंतुलन का समाधान होना चाहिए। मगर ये सही कदम, गलत समय पर उठाने का दुष्प्रभाव शालाओं के परीक्षा परिणाम पर पड़ना तय लगता है।
अतिथियों के मामले में आयुक्त जिम्मेदार है
DDO का दो टूक जबाब हैं कि हम 05 वर्ष से अधिक ओर अन्य सेवारत अथितियों की रिक्तियों, विषय विशेषज्ञों की पूरी जन्मपत्रियों को एक नही अनेक बार आयुक्त को भेज चुके है। अभी भी भेज रहे है। आयुक्त को ही समाधान निकाल कर अथितियों का भाग्य तय करना है।
आयुक्त के ऑफिस में पॉलिटिक्स बहुत है
भुगतभोगियो का दावा है कि आयुक्त कार्यालय की विभिन्न शाखाओं में तालमेल नही होने का परिणाम अथितियों को भोगना पड़ रहा है। उच्च प्रभार की काउंसलिंग में हिस्सा लेने के बाबजूद संबंधित शाला में उपस्थिति न देने वाले शिक्षको को पोर्टल से हटाने की जिम्मेदारी स्थापना शाखा ओर आईटी सेल की है। डीडीओ के द्वारा भेजे गए तमाम संबंधित रुकको/ दस्तावेजो का कल्याण न आईटी, स्थापना शाखा 04, न 03 न 02 कर पा रही है। झुलाकर समस्या को लाइलाज बनाने की कोशिश हो रही है। ताकि सरकार के फजिते बढ़े।
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