मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आज आउटसोर्स कर्मचारियों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया। प्रदर्शन करने वाले कर्मचारी वेतन वृद्धि और दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के समान सेवाओं को नियमित करने की मांग कर रहे थे।
पिछले 10 साल से ₹2000 महीने में काम कर रहे हैं
नरसिंहपुर से भोपाल आए मुकेश सोनवाने के बताया कि पिछले कई साल से दो हजार रुपए मिल रहे हैं। सफाईकर्मी दीनदयाल ने बताया कि पिछले 10 साल से सिर्फ दो हजार रुपए मिलते हैं। महंगाई के जमाने में कैसे गुजारा होगा। वहीं, एमपी टूरिज्म में काम करने वाले वीरेंद्र विश्वकर्मा ने बताया कि हर महीने आठ हजार रुपए मिलते हैं। आज के दौर में इन रुपयों से कुछ नहीं होता। घर का किराया दें, बच्चाें को पढ़ाएं या खाना खाएं।
आउटसोर्स कर्मचारी का न्यूनतम वेतन 21 हजार किया जाए
छिंदवाड़ा से आए वासुदेव शर्मा का कहना है कि- सरकार ने पिछले 15-20 सालों से तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की भर्तियां खत्म कर दीं। सरकारी सेक्टर का 80 फीसदी निजीकरण हो गया है। निजी कंपनियों को ठेके पर दे दिया है। इनमें कम्प्यूटर ऑपरेटर, सुरक्षा गार्ड जैसे कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन तक नहीं मिलता। नौकरी में कोई सुरक्षा नहीं हैं।
आउटसोर्स कर्मचारी का नया कैडर बनाया जाए
शर्मा का कहना है कि हम सरकार से कहने आए हैं कि चपरासी, माली, भृत्य, बाबू, ड्राइवर से लेकर इन सब तमाम कर्मचारियों को कलेक्टर का न्यूनतम वेतन मिलना चाहिए। और न्यूनतम वेतन 21 हजार होना चाहिए। ये सब 15-20 सालों से काम कर रहे हैं। इन सारे कर्मचारियों को नौकरी में सुरक्षा देना चाहिए। एक लघु कैडर बनाकर इनका भविष्य सुधारा जा सकता है। इसमें सरकार पर आर्थिक बोझ भी नहीं आएगा। हमारा ज्यादातर मामला श्रम मंत्री से जुड़ा हुआ है। हम उनसे मिलने जा भी रहे हैं।
कांग्रेस नेता एवं पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा का बयान
आउटसोर्स और अस्थाई कर्मचारी वो तबका है ऐसा मप्र में काेई विभाग नहीं हैं। असल में तो इनके हाथों से ही विभागों का कायाकल्प होता है, लेकिन दुर्भाग्य है मप्र में जब से बीजेपी की सरकार आई है। तब से चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की भर्ती पर रोक लगा दी है। आईएएस, आईपीएस अधिकारियों की भर्ती पर रोक नहीं हैं, वो भी इसलिए क्योंकि ये अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोग चतुर्थ श्रेणी में आते हैं। इनके हाथ हमेशा सरकार के आगे फैले रहें, इसलिए बीजेपी और आरएसएस का एजेंडा है कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को नौकरी न लगाई जाए। कांग्रेस इसको विधानसभा में प्रमुखता से उठाने की तैयारी कर रही है। लाखों कर्मचारियों के साथ अन्याय हो रहा है। हाईकोर्ट ने स्टे दे दिया। मैं न्यायालय से गुहार लगाता हूं कि आपने किस आधार पर स्टे दे दिया? ये गरीब बड़ी मुश्किल से परिवार पालते हैं। चार महीनों से तारीख बढ़ती जा रही है। सरकार हाईकोर्ट में इनका सही पक्ष रखने नहीं जा रही। हम सरकार को झुकाएंगे कि जवाब पेश करो।
पुलिस अभिरक्षा में श्रममंत्री से मुलाकात
दोपहर करीब दो बजे कर्मचारियों के प्रतिनिधि मंडल को लेकर पुलिस अधिकारी दो पुलिस वाहनों से श्रम मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल से चर्चा कराने के लिए रवाना हुए। कर्मचारी नेताओं का कहना है कि जो कर्मचारी आंदोलित हैं इनका मामला श्रम मंत्रालय से संबंधित है। इन पर निर्णय श्रम मंत्री को सबसे पहले लेना पड़ेगा।
इन सरकारी और अर्द्धसरकारी संस्थाओं के कर्मचारी शामिल
ग्राम पंचायतों के चौकीदार, भृत्य, पंप ऑपरेटर, सफाईकर्मी, स्कूलों, छात्रावासों के अंशकालीन, अस्थाई कर्मचारी, निगम मंडल, नगरीय निकाय, सहकारिता के आउटसोर्स, अस्थाई कर्मी, शासकीय विभागों के आउटसोर्स कंप्यूटर ऑपरेटर, अस्पताल, मेडिकल कॉलेजों के वार्ड न्याय, सुरक्षाकर्मी, सहित चतुर्थ श्रेणी आउटसोर्स कर्मचारी, मंडियों, राष्ट्रीयकृत एवं सहकारी बैंकों, उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, यूनिवर्सिटी, आयुष विभाग के योग प्रशिक्षक, शिक्षा विभाग के व्यावसायिक प्रशिक्षकों सहित सभी शासकीय अर्द्धशासकीय विभागों के अस्थाई, आउटसोर्स कर्मचारी "नौकरी में सुरक्षा और न्यूनतम 21000 रूपए वेतन" की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं।
विभागों का 80% निजीकरण होने से कर्मचारियों का भविष्य संकट में
आंदोलन का नेतृत्व कर रहे आउटसोर्स, अस्थाई, अंशकालीन, ग्राम पंचायत कर्मचारी संयुक्त मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष वासुदेव शर्मा का कहना है कि मप्र में सरकारी विभागों में ठेकेदारों का राज चल रहा है। सभी विभागों का 80 प्रतिशत निजीकरण हो चुका है। ऐसे में सरकारी विभागों में काम करने वाले कर्मचारियों की नौकरी में न सुरक्षा बची है और न ही सरकार का तय न्यूनतम वेतन मिलता है। यह कर्मचारी अन्याय के शिकार हैं।
इसी के तहत कामगार क्रांति आंदोलन किया जा रहा है। इसमें प्रदेशभर से हजारों कर्मचारी शामिल होकर न्याय के लिए आवाज बुलंद करेंगे। ग्राम पंचायतों के चौकीदारों, पंप ऑपरेटरों, भृत्यों से 3 हजार में काम कराया जा रहा है। वहीं, स्कूलों छात्रावासों के अंशकालीन, अस्थाई कर्मचारियों का वेतन 2006 के बाद नहीं बढा है। इस कारण उन्हें अब भी 4-5 हजार रुपए वेतन ही मिलता है।
आउटसोर्स कर्मचारियों के वेतन से 18% जीएसटी तक काटा जा रही है। न्यूनतम वेतन रिवाइज करके कम कर लिया गया है, यह अन्याय है।
20 साल से नहीं हुई तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की भर्ती
शर्मा ने कहा कि मप्र में 20 साल से चतुर्थ एवं तृतीय श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती नहीं हुई है। सरकार ने चपरासी, सफाईकर्मी की नौकरी तक नहीं दी है। अस्थाई कर्मचारी के रूप में 2-3 हजार रूपए में काम कराया जा रहा है।इन्हें सरकार का तय न्यूनतम वेतन तक नहीं मिलता। इस तरह लाखों कर्मचारियों के साथ अन्याय किया जा रहा है, जिसके खिलाफ कामगार क्रांति आंदोलन में एकजुट होकर आवाज उठाई जा रही है। सरकार से जिंदा रहने लायक वेतन और नौकरी में सुरक्षा की मांग की जा रही है।
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