Devi Ahilya Vishwavidyalay Indore, में स्कूल ऑफ डेटा साइंस के HOD प्रोफेसर विजय बाबू गुप्ता नहीं रहे। उन्होंने इंदौर में आयोजित एक इंटर नेशनल कॉन्फ्रेंस में भाग लिया था। इसके बाद उनकी तबीयत और बिगड़ी। डॉक्टर ने पहले निमोनिया बुखार का इलाज किया लेकिन जब आराम नहीं मिला तो एच1एन1 की जांच करवाइए। रिपोर्ट पर संक्रमण पाया गया। इसके बाद उनकी मृत्यु हो गई। डॉक्टर को कहना है की मृत्यु का कारण कार्डियक अरेस्ट भी हो सकता है, लेकिन कार्डियक अरेस्ट का कारण एच1एन1 वायरस है या डॉक्टर की दवाई, यह स्पष्ट नहीं किया गया है।
प्रोफेसर गुप्ता क्या है इंटर नेशनल कॉन्फ्रेंस में संक्रमित हुए थे
इंदौर के एक प्राइवेट अस्पताल में उनका इलाज किया जा रहा था। डॉक्टर ने परिवार वालों से कहा था कि वह गणेश चतुर्थी अपने परिवार के साथ मनाएंगे। परिवार वाले उनके डिस्चार्ज होने का इंतजार कर रहे थे। उन्हें अस्पताल से घर तो लाया गया परंतु उनके शरीर में प्राण नहीं थे। बताया गया है कि, हाल ही में उन्होंने इंदौर में आयोजित एक इंटर नेशनल कॉन्फ्रेंस में भाग लिया था। इसके बाद उनकी तबीयत और बिगड़ी।
सरकारी बयान पढ़िए
वे श्री गणेश चतुर्थी शनिवार को डिस्चार्ज होने वाले थे। इसके साथ ही कैंपस के गणेश उत्सव कार्यक्रम में शामिल होने वाले थे। इसके ठीक पहले शाम को उनका निधन हो गया। सीएमएचओ डॉ. बीएस सेत्या का कहना है कि निजी अस्पताल को कल्चर सैंपल सरकारी लैब में जांच के लिए भेजना थे लेकिन वह नहीं भेजे गए हैं। हम सरकारी लैब से आने वाली रिपोर्ट को ही मान्य करते हैं।
प्रोफेसर गुप्ता छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय थे
प्रो. गुप्ता स्कूल ऑफ डेटा साइंस के विभागाध्यक्ष थे। पुनर्मूल्यांकन केंद्र के प्रभारी रहते हुए उन्होंने छात्रों को होने वाली समस्याओं को लेकर भी कई काम किए थे। उनकी शवयात्रा 8 सितम्बर को उनके निज निवास P-4, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय टीचर्स क्वार्टर, खंडवा रोड, इन्दौर से निकल गई।
स्वयं सावधान रहिए, स्वाइन फ्लू के लक्षण पहचानिए
- सर्दी, सांस लेने में तकलीफ, बुखार, सिर दर्द, नाक या आंखाें से पानी निकलना, गले में दर्द और भूख न लगना या बहुत कम लगना।
- तीन-चार दिन से ज्यादा समय तक सर्दी-बुखार या निमोनिया बने रहने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।
- इस तरह फैलता है स्वाइन फ्लू।
- यह संक्रमित व्यक्ति के छिंकने, खांसने के दाैरान बिलकुल नजदीक व्यक्ति काे फैल सकता है।
- यह नवजातों, गर्भवतियों, 16 वर्ष तक की आयु के बच्चों या जिनकी उम्र 55 वर्ष या उससे अधिक है, उनमें ज्यादा फैलता है।
अस्पताल में भर्ती होने वाला प्रत्येक मरीज अपने परिवार के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है परंतु डॉक्टर के लिए वह सिर्फ एक शरीर होता है। डॉक्टर उस पर प्रयोग करते रहते हैं। कभी जांच कभी दवाई बदलते रहते हैं। मरीज की मृत्यु से भी डॉक्टर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि प्राइवेट हॉस्पिटल, मीडिया की विज्ञापन पार्टी होती है। यदि कोई डॉक्टर किसी मरते हुए मरीज की जान बचा ले तो टीवी पर इंटरव्यू आता है, लेकिन यदि कोई मरीज मर जाता है तो समाचार में कभी इलाज करने वाले डॉक्टर का नाम नहीं बताया जाता। पब्लिक भी इसके बारे में कोई बात नहीं करती है और यह कभी कोई पॉलिटिकल मुद्दा भी नहीं होता। इसलिए बेहतर है कि, स्वयं सावधान रहें।
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