कुछ दिनों पहले मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में अतिथि शिक्षकों ने बड़ा प्रदर्शन किया था। वह नियमितीकरण के लिए आदेश की मांग कर रहे थे, परंतु मध्य प्रदेश के जन भागीदारी कर्मचारियों के पास तो आदेश भी है इसके बावजूद उनका नियमितीकरण नहीं हो रहा है। चुनाव के पहले फटाफट आदेश जारी कर दिए थे। बैक टू बैक समाचार प्रसारित किया जा रहे थे। गूगल मीट पर अधिकारियों को निर्देश दिए जा रहे थे, लेकिन चुनाव खत्म होते ही सब चुप हो गए हैं।
5 अक्टूबर 2023 को नियमितीकरण के आदेश जारी हुए थे: कर्मचारी संघ
जनभागीदारी कर्मचारी संघ क़े प्रदेश मीडिया प्रभारी हितेश गुरगेला नें जानकारी देते हुवे बताया है की उच्च शिक्षा विभाग अंतर्गत प्रदेश के शासकीय महाविद्यालयों मे विगत कई वर्षो से जनभागीदारी निधि से गैर शेषणिक कार्यों मे कार्यरत कर्मचारियों द्वारा स्थाईकर्मी किये जाने की एकमात्र मांग लम्बे अर्से से की जा रही थी। पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव नें जनभागीदारी श्रमिकों की एकमात्र मांग स्थाईकर्मी पर संज्ञान लेते हुए 27 जुलाई 2023 को उच्च शिक्षा विभाग को श्रमिकों को स्थाईकर्मी करने हेतु नोटशीट भी लिखी थी जिस पर उच्च शिक्षा विभाग द्वारा विधानसभा चुनाव के पूर्व 5 अक्टूबर 2023 को ही श्रमिकों को स्थाईकर्मी करने हेतु आदेश प्रसारित कर दिए गए थे।
कॉलेज के प्रिंसिपल्स आदेश की गलत व्याख्या कर रहे हैं
जिसका उच्च शिक्षा विभाग द्वारा गूगल मीट व अन्य माध्यमो से मप्र के महाविद्यालयों के प्रचार्यो की ऑनलाइन बैठक मे निर्देश देते हुए विभाग द्वारा जारी आदेश के पालन हेतु प्राचार्यो को निर्देशित किया गया था लेकिन महाविद्यालय के प्राचार्यो द्वारा पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री एवं मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव जी की मंशा के ठीक विपरित कार्य कर उक्त आदेशों की ऐसी व्याख्या कर रहे है जिससे जनभागीदारी कर्मचारी लाभनवित न हो सके और कर्मचारियों को शासन की स्थाईकर्मी योजना से वंचित कर आदेश प्रसारित नही कर रहे है और न ही उच्च शिक्षा विभाग इसकी समीक्षा कर रहा है की किस जगह आदेश का पालन हुआ है और कहां नहीं।
खास बात तो यह है की ज़ब इस सम्बन्ध मे जनभागीदारी कर्मचारी संघ द्वारा अतिरिक्त संचालक भोपाल एवं आयुक्त उच्च शिक्षा, संभाग आयुक्त भोपाल को पत्र प्रेषित किये जाते है तो उन पर भी उच्च शिक्षा विभाग द्वारा संज्ञान नहीं लिया जाता है। जिससे प्रदेश के जनभागीदारी कर्मचारियों मे आक्रोश व्याप्त है। ऐसे मे उच्च शिक्षा विभाग द्वारा सुनवाई न होने पर जनभागीदारी से कार्यरत कई श्रमिक माननीय न्यायालय की शरण मे जा चुके है जिससे विभाग मे भी न्यायलयीन प्रकरण उद्भुत हो रहे है।
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