श्री गणेश चतुर्थी से शुरू हुआ गणेश उत्सव ग्यारहवें दिन श्री गणेश प्रतिमा की विदाई के साथ पूरा हो जाता है। विसर्जन के अनुष्ठान में श्री गणेश जी की मिट्टी की प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है। भारत में कई स्थानों पर अलग-अलग दिन पर श्री गणेश जी की प्रतिमा विसर्जन किया जाता है। कहीं पर डोल ग्यारस के दिन, तो कहीं अनंत चतुर्दशी के दिन श्री गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। कई बार छोटे बच्चे अपने मम्मी-पापा से जिद्द भी करते हैं कि उन्हें श्री गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन नहीं करना है क्योंकि श्री गणेश जी बड़ों के साथ-साथ बच्चों के भी फेवरेट भगवान होते हैं। तो चलिए आज 1 मिनट से भी कम समय में यही पता लगाने की कोशिश करते हैं।
भगवान श्री गणेश की प्रतिमा का विसर्जन क्यों किया जाता है - WHY SHREE GANSHA STATUE IMMERSED IN WATER
यह भी एक प्रकार का अनुष्ठान है। जल में नारायण यानी ईश्वर का वास होता है। इसलिए श्री गणेश और नारायण के मिलने का यह अनुष्ठान समृद्धि व पूर्णता का प्रतीक है, जो जन्म व मृत्यु के चक्र की पूर्णता दर्शाता है। इसलिए बच्चों को बचपन से ही सही जानकारी दें और उनमें प्रकृति प्रेम बचपन से ही प्रेरित करें जिससे कि आज के बच्चे कल बड़े होकर बड़े होकर अपनी प्रकृति की रक्षा कर सकें।
भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन क्यों किया जाता है - पौराणिक कथा - MYTHOLOGICAL STORY
एक पौराणिक कथा के अनुसार वेदव्यास ने जब शास्त्रों की रचना प्रारंभ की तो भगवान ने उन्हें प्रथम पूज्य बुद्धि निधान श्री गणेश जी की सहायता लेने के लिए कहा। जिस दिन श्री गणेश जी वेदव्यास जी के पास श्री उसे दिन चतुर्थी तिथि थी। तो वेदव्यास जी ने गणेश जी का आदर सत्कार करके उन्हें आसन पर स्थापित कर विराजमान कराया। इसीलिए हम श्री गणेश जी की स्थापना गणेश चतुर्थी के दिन ही करते हैं। इसके बाद वेदव्यास जी ने बोलना शुरू किया और गणेश जी ने उसे लिपिबद्ध करना शुरू किया। यह सिलसिला लगातार 10 दिन तक नॉन-स्टॉप चलता रहा और अनंत चतुर्दशी के दिन इसका समापन हुआ। कथा में बताया गया है कि भगवान की लीलाओं और गीता का समापन करते हुए गणेश जी को अष्टसात्विक भाव यानी 08 प्रकार के भाव का आवेग हो गया। जिससे उनका पूरा शरीर गर्म हो गया था, इसके बाद गणेश जी की इस तपन को शांत करने के लिए वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर गीली मिट्टी का लेप किया। इसके बाद फिर उन्होंने गणेश जी को जलाशय में स्नान करवाया। स्नान के बाद बाद गणेश जी की तपन शांत हुई और तभी से श्री गणेश की प्रतिमा के विसर्जन की प्रथा प्रारंभ हुई।
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