श्री गणेश चतुर्थी पर चारों तरफ शोर है कि मिट्टी के ही गणेश जी बनाने चाहिए और उनकी पूजन करना चाहिए, ताकि प्रकृति को कोई नुकसान न पहुंचे। धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार श्री गणेश और प्रकृति का गहरा संबंध है जो कि श्री गणेश की प्रतिमाओं में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। भगवान श्री गणेश की प्रिय वस्तुओं में दूर्वा, गुड़हल का फूल, केले, कबीट, जामुन, केसर, मोदक आदि और इन सभी चीजों का संबंध प्रकृति से है। तो चलिए आज एक मिनट से भी कम समय में जानते हैं कि गणेश जी को सृजन के स्वामी क्यों कहा जाता है!!
सृजनात्मकता का प्रतीक श्री गणेश - SHREE GANESHA AS SYMBOL OF CREATIVITY
गणेश जी ही स्वयं सृजन का प्रमाण है क्योंकि उनका जन्म ही नहीं हुआ, माता पार्वती ने एक पुतला बनाकर उसमें प्राण डाल दिए और गणेश जी का सृजन हो गया। इसीलिए हर सृजनात्मक एवं रचनात्मक शुभ अवसर पर गणेश जी को प्रथम पूज्य माना गया है। चाहे घर बनाना हो, चाहे दुकान खोलना हो, चाहे कोई बिजनेस शुरू करना हो, चाहे पढ़ाई शुरू करनी हो ...! यानी हर शुभ अवसर पर गणेश जी को ही प्रथम पूज्य माना गया है।
सहजता और सरलता का प्रतीक श्री गणेश - SHREE GANESHA AS SYMBOL OF SIMPLICITY AND SPONTANEITY
गणेश जी की मूर्ति बनाने के लिए सिर्फ मिट्टी की जरूरत होती है। गीली मिट्टी को गणेश जी का रूप देकर की गई पूजा आराधना का पूर्ण फल मिलता है। मिट्टी ना मिल पाए तो हल्दी की गांठ से भी गणेश जी का पूजन किया जा सकता है, नारद पुराण में तो हल्दी के गणेश को "स्वर्ण गणेश' के समान प्रभावशाली माना गया है और यदि गणेश जी की प्रतिमा ना मिल पाए तो पूजा की सुपारी से भी गणपति की स्थापना की जा सकती है। आपको बस "श्री गणेशाय नमः" बोलते हुए सिर्फ रोली के छींटे, चावल के दो दाने, गुड और बताशे से ही इनकी पूजा हो जाती है और अगर इनकी सरल पूजा में भी कोई गलती हो जाए तो कोई भय नहीं होता।
गणेश चतुर्थी के साथ शुरू हुआ गणेशउत्सव दसवें दिन गणपति जी की विदाई के साथ पूरा होता है तो हम भी इन 10 दिनों में श्री गणेश से संबंधित कुछ धार्मिक और वैज्ञानिक रहस्यों का पता लगाने की कोशिश करते रहेंगे।
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