मध्य प्रदेश में शासकीय कर्मचारियों की ट्रांसफर पॉलिसी बीरबल की खिचड़ी हो गई है। चुनाव से पहले तैयार हो गई थी परंतु अब तक कैबिनेट द्वारा स्वीकार नहीं की गई है। मध्य प्रदेश में मुख्य सचिव बदल गए हैं। एक बार फिर ट्रांसफर पॉलिसी की फाइल को कैबिनेट के लिए तैयार किया जा रहा है। दरअसल, प्रभारी मंत्री और पार्टी के विधायक चाहते हैं कि कम से कम दिसंबर से पहले एक बार ट्रांसफर वाली पावर का उपयोग करने का मौका मिलना चाहिए।
पिछली बार पॉलिसी तैयार थी लेकिन प्रभारी मंत्री नहीं बने थे
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2023 से पहले से शासकीय कर्मचारियों के ट्रांसफर पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। तब से लेकर बड़े पदों पर अब तक केवल मुख्यमंत्री के समन्वय से ही तबादले हो रहे हैं। अब दोनों ही चुनाव हो चुके हैं। ऐसे में सरकार कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए तबादले से रोक हटाने जा रही है। प्रस्तावित नीति में प्रावधान किया गया है कि प्रभारी मंत्री की अनुशंसा पर ही तबादले किए जाएंगे। इसके लिए सरकार के प्राथमिकता वाले जिलों का प्रभार वरिष्ठ मंत्रियों को दिया गया है। 2022 में तबादलों से रोक हटी थी। इसके बाद अब नई नीति के तहत तबादले किए जाएंगे। एक जिले से दूसरे जिले के लिए स्वैच्छिक और प्रशासनिक आधार पर तबादले किए जाएंगे, लेकिन ये 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होंगे।
इस बार ट्रांसफर पॉलिसी के लिए कर्मचारी नहीं पार्टी का दबाव
- मंत्रियों के बंगलों पर तबादला कराने के लिए आवेदकों की भीड़ जुट रही हैं।
- पार्टी और संगठन के पदाधिकारियों के बंगले पर भी तबादले के लिए सिफारिश के लिए जमावड़ा हो रहा है।
- भोपाल में मंत्रियों के बंगलों पर प्रदेशभर से आवेदन पहुंच रहे हैं।
- मंत्रालय मुख्यमंत्री सचिवालय में भी विधायक चहेते अधिकारियों की सिफारिश लेकर पहुंच रहे हैं।
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