हाई कोर्ट आफ मध्य प्रदेश, जबलपुर की डिवीजन बेंच ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश सरकार से पूछा है कि, गरीब तो हर जाति और वर्ग में होते हैं फिर EWS आरक्षण का लाभ सबको क्यों नहीं दिया जाता। में दावा किया गया है कि मध्य प्रदेश सरकार की EWS POLICY दिनांक 2 जुलाई 2019, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15(6) तथा 16(6) के प्रावधानो से असंगत है।
मध्य प्रदेश सरकार की EWS POLICY को हाई कोर्ट में चुनौती
जनहित याचिका में बताया गया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 15(6) तथा 15(6) में स्पष्ट प्रावधान है की EWS का प्रमाण पत्र सभी वर्गों को दिया जाएगा, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने EWS के 10% आरक्षण का लाभ देने के उद्देश्य से उक्त प्रणाम पत्र केवल उच्च जाति के लोगों को ही जारी किए जाने की पालिसी दिनांक 02/7/ 2019 को जारी की है, जिसमे ओबीसी, एस.सी. तथा एस.टी. वर्ग को EWS प्रमाण पत्र जारी नहीं किए जाने का लेख किया गया है। उक्त पालिसी की संवैधानिकता को एडवोकेट यूनियन फार डेमोक्रेसी एन्ड सोशल जस्टिस नामक संस्था की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं विनायक प्रसाद शाह ने चुनौती दी है।
याचिकाकर्ता के वकीलों की दलील
उक्त याचिका की सुनवाई जस्टिस संजीव कुमार सचदेवा तथा जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ द्वारा की। याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओ ने कोर्ट को बताया की मध्य प्रदेश शासन द्वारा जारी EWS आरक्षण से संबंधित पालिसी दिनांक 02/7/2019 संविधान के अनुच्छेद 14, 15(6) तथा 16(6) से असंगत है। उक्त पालिसी गरीबों में जाति तथा वर्ग के आधार पर विभेद करती है। पालिसी के साथ EWS प्रमाण पत्र का फार्मेट में स्पष्ट रूप से जाति लिखें जाने का लेख है जो की संविधान से असंगत है।
मध्य प्रदेश शासन के वकील की दलील
लम्बी बहस के बाद कोर्ट को शासन पक्ष द्वारा बताया गया की EWS आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ द्वारा निराकृत कर दिया गया है। तब याचिकाकर्ताओ के अधिवक्ताओ ने कोर्ट को बताया कि उक्त मामला जनहित अभियान बनाम भारत संघ है, जिसमे संविधान के 103 वे संशोधन की वैधानिकता को अपहेल्ड किया गया है। जबकि याचिका में उठाये मुद्दों पर उक्त फैसले मे कहीं भी विचार नहीं किया गया है। तब खंड पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के सात जजों के फैसले पर ध्यान आकृष्ट किया जिसमे आरक्षित वर्ग में आर्थिक आधार पर उप वर्गीकरण के सम्बन्ध मे निर्णय पारित किया गया है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने उपरोक्त समस्त आक्षेपों का पटाक्षेप करते हुए कोर्ट को अनुच्छेद 15(6) तथा 16(6) का वाचन कराया।
अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश शासन को आड़े हाथो लेते हुए फटकार लगाते हुए कहा की शासन उक्त EWS की नीति को संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध कैसे जारी कर सकती है, जिसमे स्पष्ट रूप से जातीय विभेद किया जा रहा है। इस संबंध में मध्य प्रदेश सरकार अपना स्पष्टीकरण 30 दिनों के अंदर प्रस्तुत करे। कोर्ट में शासन द्वारा दाखिल जबाब को याचिका में उठाए मुद्दों के संबंध में अप्रासंगिक माना। याचिकाकर्ताओ की ओर से पैरवी अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह,रामभजन लोधी तथा पुष्पेंद्र कुमार शाह ने की।
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