मध्य प्रदेश की विजयपुर विधानसभा में उपचुनाव होने वाले हैं। नतीजा बिल्कुल वैसा ही हो सकता है जैसा डबरा विधानसभा के उपचुनाव में हुआ था परंतु विजयपुर और डबरा विधानसभा उपचुनाव में एक बड़ा अंतर है। डबरा में कांग्रेस के पास दमदार कैंडिडेट था और विजयपुर में तो दावेदार तक नहीं है। जबकि भाजपा प्रत्याशी के जनसंपर्क के 2 राउंड पूरे हो चुके हैं।
फॉर्मूला कमलनाथ के चक्कर में खजूर पर अटक गई कांग्रेस
कांग्रेस विजयपुर सीट पर भाजपा के पूर्व विधायक सीताराम आदिवासी पर दांव लगाना चाहती थी। सीताराम ने ही वर्ष 2018 में भाजपा के टिकट पर रामनिवास रावत को हराया था लेकिन भाजपा ने वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में सीताराम आदिवासी का टिकट काटकर बाबूलाल मेवरा को दे दिया था। सीताराम ने समय-समय पर अपनी नाराजगी भी जताई। भाजपा ने उन्हें सहरिया विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बना दिया। अब कांग्रेस पार्टी के पास कैंडिडेट ही नहीं है। दरअसल मध्य प्रदेश में इस फार्मूला कमलनाथ कहते हैं। यदि आपका नेता दूसरी पार्टी में चला जाए तो उसके विरोधी को अपनी पार्टी में बुला लो और टिकट दे दो।
भाजपा में रामनिवास की स्थिति कमजोर
चंबल के नेता रामनिवास रावत भाजपा में शामिल तो हो गए परंतु भारतीय जनता पार्टी संगठन के अंदर उनकी स्थिति अच्छी नहीं है। भाजपा के मूल कार्यकर्ता उन्हें स्वीकार नहीं कर रहे हैं। श्री रावत पहले सिंधिया समर्थन हुआ करते थे। बाद में सिंधिया विरोधी हो गए। इसलिए सिंधिया के प्रति निष्ठा रखने वाले भी श्री रावत को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। जिस प्रकार वह शर्तों के साथ भाजपा में शामिल हुए। पहले मंत्री पद की शपथ ली उसके बाद बैक डेट में इस्तीफा दिया। यह सब कुछ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों को भी पसंद नहीं आया। यदि विचारधारा से प्रभावित थे तो पहले कांग्रेस से इस्तीफा देना चाहिए था।
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