बाल विकास की अवधारणा और इसका अधिगम से संबंध (CONCEPT OF CHILD DEVELOPMENT AND ITS RELATION WITH LEARNING)। परंतु बाल विकास की अवधारणा को समझने से पहले वृद्धि, परिपक्वता और विकास को समझना आवश्यक है। बाल विकास की अवधारणा को शुरू करने के लिए यह सभी नींव की तरह से काम करेंगे। कृपया इस टॉपिक को पढ़ने से पहले इसी आर्टिकल के लास्ट में दी गई लिंक पर क्लिक करके पुराने टॉपिक को अवश्य पढ़े, जिससे आप बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र को समझने के लिए अपनी समझ को बेहतर बना पाएंगे।
बाल विकास की अवधारणा Concept of Child Development,CDP
बाल विकास का अर्थ - Meaning of Child Development
बाल विकास का अर्थ है बालक के विकास की प्रक्रिया, यह तो आप जानते ही हैं कि बालक के विकास की प्रक्रिया जन्म से पूर्व यानी गर्भधारण से ही प्रारंभ हो जाती है और जीवन पर्यंत चलती रहती है। एक लाइन में कहें तो विकास,गर्भ से कब्र (Womb to Tomb) चलता ही रहता है। इसी कारण विकास को एक क्रमिक (Successive) और सतत (Continuous) प्रक्रिया कहा जाता है परंतु यदि बच्चे या बालक के संदर्भ में बात करें तो विकास बच्चे को निर्भरता से स्वायत्तता (Dependency To Autonomy) की ओर ले जाता है और कभी भी पीछे की ओर नहीं होता यानी प्रगतिशील परिवर्तन (Progressive changes) ही विकास है। । विकास का अर्थ होता है, सर्वांगीण विकास। जो कि शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक, भाषाई, चारित्रिक, नैतिक हर प्रकार का होता है।
विकास के प्रकार - TYPES OF DEVELOPMENT
शारीरिक विकास या वृद्धि क्या है - What is physical development
इन सभी प्रकारों में से शारीरिक विकास को हम वृद्धि (Growth) कह सकते हैं और कुछ हद तक मानसिक विकास भी वृद्धि का ही भाग होता है, परंतु शारीरिक विकास एक निश्चित उम्र तक ही होता है। मानसिक विकास, शारीरिक विकास के साथ तो होता ही है, परंतु यह और भी आगे चलता रहता है।
मनोशारीरिक विकास क्या है- What is psycho physical development
शारीरिक विकास के अलावा बाकी के सभी विकास के प्रकार जैसे मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक, भाषाई, चारित्रिक, नैतिक यह सभी मिलाकर मनो शारीरिक यानी साइकोफिजिकल विकास (psycho physical development) कहलाते हैं। जिनका की विकास निरंतर चलता रहता है कभी रुकता नहीं है।
टॉपिक का सार -GIST OF THE TOPIC
इसे हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं। जैसे जब बच्चा बहुत छोटा होता है तो वह अपनी सभी क्रियाओं के लिए दूसरों के ऊपर डिपेंड होता है। परंतु जब वह धीरे-धीरे बड़ा होने लगता है तो वह अपना काम खुद करने लग जाता है। यही बाल विकास है। जो की विभिन्न -विभिन्न अवस्थाओं के हिसाब से भिन्न-भिन्न होता है।
दूसरा उदाहरण प्रोग्रेसिव चेंज का जैसे बच्चा पहले पेट के बल रेंग -रेंग कर चलने की कोशिश करता है, फिर धीरे-धीरे घुटनों पर चलने की कोशिश करता है और उसके बाद वह खड़ा होकर चलने की कोशिश करता है। यानी उसका विकास आगे की ओर हो रहा है। यही प्रोगर्रेसिव चेंज है। यदि कोई बालक जो खड़े होकर चलता है कुछ समय बाद घुटनों के बल चलने लगे और फिर पेट के बल रेंगने लगे तो इसे विकास नहीं बीमारी कहा जाता है।
बाल विकास की अवधारणा से संबंधित वस्तुनिष्ठ प्रश्नों को हम अगले आर्टिकल में डिस्कस करेंगे तो FREE MPTET CTET NOTES के लिए पढ़ते रहिए भोपाल समाचार.कॉम। बाल विकास की अवधारणा को शुरू करने के लिए यह सभी नींव की तरह से काम करेंगे। ✒ श्रीमती शैली शर्मा (MPTET Varg1(BIOLOGY),2(SCIENCE),3 & CTET PAPER 1,2(SCIENCE)-QUALIFIED
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