RADCLIFFE SCHOOL BHOPAL में 3 साल की मासूम लड़की के साथ दरिंदगी के मामले में स्कूल मैनेजमेंट को राहत देने के लिए बीच का रास्ता निकाल लिया गया है। इस तरह के मामलों में स्कूल की मान्यता समाप्त कर देने के प्रावधान है परंतु यहां गंभीर आपराधिक मामले में इनोवेटिव आइडिया पर काम किया जा रहा है। सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है कि, स्कूल की मान्यता रद्द नहीं करेंगे बल्कि प्राइवेट स्कूल (RADCLIFFE SCHOOL) का संचालन जिला शिक्षा अधिकारी करेंगे।
स्कूल संचालक जांच में दोषी लेकिन कार्रवाई नहीं, बीच का रास्ता
RADCLIFFE SCHOOL BHOPAL में 3 साल की मासूम छात्रा के साथ दरिंदगी का मामला सामने आने के बाद जब स्कूल के खिलाफ सभी वर्गों द्वारा प्रदर्शन शुरू किए गए तो स्कूल को प्रदर्शन कार्यों द्वारा संभावित नुकसान से बचाने के लिए सील कर दिया गया था। 6 सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी ने मैनेजमेंट को राहत देने के लिए बीच का रास्ता निकाला, ताकि प्रदर्शनकारियों का सम्मान बना रहे और स्कूल संचालक का नुकसान भी ना हो। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट कलेक्टर को दी और कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने सरकार को प्रस्ताव भेजा है कि स्कूल का संचालन डीईओ करें। जांच के लिए दो टीमें बनाई गई थीं। पहली जांच रिपोर्ट में बच्चियों की सुरक्षा को लेकर स्कूल प्रबंधन की बड़ी लापरवाही सामने आई थी। वहीं, दूसरी 7 सदस्यीय कमेटी ने स्कूल के संचालन को लेकर अपनी रिपोर्ट कलेक्टर को दी।
DEO BHOPAL की दलील - ऐसा भी नियम है
डीईओ (जिला शिक्षा अधिकारी) नरेंद्र अहिरवार ने बताया कि भोपाल में पहली बार कोई प्राइवेट स्कूल की कमान सरकारी हाथ में लेंगे। हालांकि, नियम है कि यदि किसी प्राइवेट स्कूल में ऐसा होता है तो उसके संचालन की कमान हम ले सकते हैं। हालांकि जिला शिक्षा अधिकारी ने यह नहीं बताया कि इस प्रकार के नियम का कहां उल्लेख है। यह नियम किसने बनाया और कहां पर लागू होता है और क्या कोई नियम, किसी कानून से अधिक प्रभावशाली हो सकता है। उन्होंने बताया, संकुल प्राचार्य या किसी सरकारी स्कूल के प्राचार्य एक-दो दिन में ही संचालन की व्यवस्था सौंप देंगे। स्कूल प्रबंधन से चर्चा कर रहे हैं। इसके बाद स्कूल खोला जाएगा।
पेरेंट्स फीस वापस मांग रहे थे, कमेटी ने मामला ही पलट दिया
यह एक प्राइमरी स्कूल है। कोई बोर्ड परीक्षा नहीं होती। दूसरे किसी भी स्कूल में बच्चों को एडमिशन मिल सकता है। प्रदर्शन के दौरान पेरेंट्स फीस वापस मांग रहे थे। उनका कहना था कि हम अपने बच्चों को किसी दूसरे स्कूल में पढ़ाएंगे। सत्र के बीच में दूसरे स्कूल में एडमिशन का प्रावधान भी है। यदि ऐसा होता तो स्कूल संचालक का बड़ा नुकसान हो जाता है। कमेटी की रिपोर्ट ने पूरा खेल बदल दिया।
मान्यता को बचाने के लिए गंभीर मंथन किया गया
इस टीम में अफसर और शिक्षाविद शामिल थे। स्कूल की मान्यता को लेकर टीम ने मंथन किया। आखिरकार टीम इस नतीजे पर पहुंची कि अभी स्कूल को खोल दिया जाए, लेकिन अगले शिक्षण सत्र से मान्यता रिन्यू न हो। कलेक्टर सिंह ने बताया, जांच कमेटी की रिपोर्ट मिलने के बाद सरकार को प्रस्ताव भेजा है। इसमें मौजूदा शिक्षा सत्र में बच्चों की पढ़ाई जारी रखने की बात कही गई है। संकुल प्राचार्य या सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल को मॉनिटरिंग का जिम्मा सौंपेंगे। अगले सत्र से स्कूल की मान्यता रिन्यू नहीं करने दी जाएगी।
कमेटी की दलील पढ़िए
स्कूल में कुल 324 बच्चे पढ़ते हैं। इनमें से 79 ऐसे हैं, जिनका आरटीई (राइट टू एजुकेशन) में एडमिशन हुआ है। बीच सत्र में स्कूल बंद होने से सभी बच्चों को परेशानी हो सकती थी। उनका एक साल बिगड़ जाएगा।
स्कूल खुले पांच महीने हो चुके हैं। यानी, आधा शिक्षा सत्र। ऐसे में बच्चों का कहीं एडमिशन भी नहीं हो सकता। स्कूल को बंद रखते हैं तो बच्चों का एक साल खराब हो जाएगा। दूसरी तरफ, कई शिक्षकों का पढ़ाई का तरीका बच्चों को बेहतर लगता है। बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो, इसलिए जांच टीम ने प्लान तैयार किया। यही कलेक्टर को सौंपा गया।
कुछ महत्वपूर्ण बातें यह भी हैं
- स्कूल को सिर्फ प्रशासनिक नहीं बल्कि पॉलिटिकल और मीडिया मुगल का भी संरक्षण प्राप्त है। स्वयं को जनता का एकमात्र क्रांतिकारी प्रतिनिधि बताने वाले एक बड़े अखबार ने तो घटना से लेकर आज तक स्कूल का नाम तक नहीं छापा।
- स्पष्ट नहीं किया गया है कि, स्कूल द्वारा बच्चों से इस साल जो फीस ली गई है, वह स्कूल के बैंक अकाउंट में रहेगी या जिला शिक्षा अधिकारी के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर दी जाएगी।
- स्पष्ट नहीं किया गया है कि जो प्राचार्य नियुक्त किया जाएगा, उसका वेतन स्कूल के खाते से दिया जाएगा या नहीं।
- स्पष्ट नहीं किया गया है कि, यदि शासन द्वारा प्राइवेट स्कूल का संचालन किया जाएगा तो स्कूल के स्टाफ और शिक्षकों का वेतनमान क्या होगा।
- क्या रेडक्लिफ स्कूल के शिक्षक और कर्मचारी 1 साल के लिए शासकीय स्कूल के कर्मचारी माने जाएंगे।
- प्ले स्कूल और प्राइमरी स्कूलों में सीटों की संख्या किसी भी बोर्ड द्वारा निश्चित नहीं होती। फिर बच्चों का साल खराब होने की दलील बेमानी है।
- जो पेरेंट्स अपने बच्चों को स्कूल से निकलना चाहते हैं उनकी फीस वापस करने का प्रावधान नहीं किया।
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत जिन बच्चों को एडमिशन दिया गया है उन्हें किसी भी दूसरे स्कूल में ट्रांसफर किया जा सकता है। अधिनियम में ऐसा प्रावधान भी है।
- यदि एक बार यह प्रावधान कर दिया तो फिर कभी किसी स्कूल की मान्यता रद्द नहीं कर पाएंगे। हर स्कूल वाला यही कहेगा कि एक प्रभारी प्राचार्य नियुक्त कर दीजिए।
कितनी अजीब बात है, जिस मध्य प्रदेश में, आमंत्रण पत्र में सांसद का नाम, राज्य मंत्री के नाम से पहले लिख देने के कारण स्कूल की मान्यता समाप्त कर देने का नोटिस जारी कर दिया जाता है। उसी मध्य प्रदेश में 3 साल की मासूम छात्रा के साथ दरिंदगी वाले स्कूल की मान्यता को बचाने के लिए कमेटी का गठन किया जाता है। विशेष प्रस्ताव बनाया जाता है, और कुछ इस प्रकार से प्रचारित किया जा रहा है जैसे जनता के हित में यही सर्वोत्तम निर्णय है।
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