आज हमारे पास उपकरण है, ऑफिस है, सेटेलाइट है, लेकिन हजारों साल पहले यह नहीं था। इसके बाद भी भारत के किसान बड़ी आसानी से मौसम के पूर्वानुमान निकाल लिया करते थे। आज भी भारत के कई ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े बुजुर्ग बिल्कुल सटीक मौसम के पूर्वानुमान देते हैं। दरअसल इसके पीछे श्री रामचरितमानस है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इसमें मौसम के कई इंडिकेटर का उल्लेख किया है। आप आज भी मौसम का पूर्वानुमान स्वयं निकाल सकते हैं।
तुलसीदास जी की मौसम संबंधित रचनाएं
तुलसीदास जी जैसा अद्वितीय कवि आज तक नहीं हुआ। उन्होंने अपनी रचनाओं में मौसम परिवर्तन से संबंधित जानकारी भी साझा की है। उन्होंने अपनी रचनाओं में राम जी के हवाले से कहा है,
“बरषा बिगत सरद रितु आई, लछमन देखहु परम सुहाई।
फूलें कास सकल महि छाई, जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई।”
इसका मतलब है कि राम, लक्ष्मण से कहते हैं, “हे लक्ष्मण, देखो, बरसात का समय बीत गया है। चारों तरफ कास के फूल खिल गए हैं, मानो अब बरसात बूढ़ी हो गई है। जैसे इंसान वृद्ध होता है, तो उसके बाल सफेद हो जाते हैं, ठीक वैसे ही अब प्रकृति में बरसात वृद्ध हो गई है, जिसके कारण कास के फूल खिल गए हैं। अब सुंदर और सुहावना शरद ऋतु का आगमन होने वाला है।” इसके अलावा उन्होंने अपनी रचनाओं में कहा है कि अब धूल कम हो जाएगी, आसमान से बादल खत्म हो जाएंगे, और पक्षियां कलरव करती नज़र आएंगी।
मौसम और कास के फूल पर एक्सपर्ट की राय
पर्यावरणविद डॉ. डी एस श्रीवास्तव इस वेदर इंडिकेटर की पुष्टि करते हैं। कहते हैं कि सितंबर के अंतिम सप्ताह के बाद कास के फूल खिलते हैं, जो लगभग एक महीने तक खिले रहते हैं। ये फूल तब खिलते हैं जब मानसून की वापसी होती है। यह एक क्लाइमेट इंडिकेटर की तरह काम करते हैं। कास के फूल नदी-नाले के किनारे सफेद चादर की तरह दिखाई देते हैं, जो बेहद आकर्षक और मनोरम दृश्य होता है। यह मिट्टी को बांधने का भी काम करता है, जिससे मिट्टी का कटाव रुक जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल आज भी लोग घर छाने के लिए करते हैं।
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