मध्य प्रदेश में कुछ बातें सचमुच गजब होती हैं। सरकारी बैंकों में कोई गलती होती है। उसे पकड़ लिया जाता है, लेकिन ठीक नहीं किया जाता। बार-बार उसी गलती का दोहराया जाता है। ताजा मामला सरकारी कर्मचारियों के ट्रांसफर का है। हाई कोर्ट से बार-बार ऐसे ट्रांसपोर्टर निरस्त किए जा रहे हैं। कर्मचारियों को परेशान होना पड़ रहा है और सरकार पर सवाल उठाए जा रही रहे हैं।
मामला क्या है, सरल हिंदी में समझिए
मध्य प्रदेश शासन के विभिन्न विभागों, खास तौर पर स्कूल शिक्षा विभाग में सैकड़ो मामले ऐसे हैं। शिक्षक का स्थानांतरण आदेश जारी कर दिया जाता है, लेकिन पालन नहीं किया जाता है। वह एक-दो महीने नहीं बल्कि सालों तक पेंडिंग रहता है। कई बार तो शिक्षा अथवा कर्मचारियों को पता ही नहीं होता कि उसका स्थानांतरण आदेश जारी हो गया है। फिर अचानक उस तबादला आदेश पर अमल कर लिया जाता है। शिक्षक को रिलीव कर दिया जाता है। फिर शिक्षक द्वारा लोक शिक्षण संचालनालय में अभ्यावेदन प्रस्तुत किया जाता है। कमिश्नर द्वारा अभ्यावेदन का निराकरण नहीं किया जाता। मामला हाई कोर्ट में जाता है और हाई कोर्ट ऐसे ट्रांसफर आर्डर निरस्त कर देता है। यह प्रक्रिया निरंतर चल रही है।
ताजा मामला
श्री मोहन बेले का ट्रांसफर 2 वर्ष पूर्व दिनांक 3/10/22 को एक्सिलेंस मुल्ताई जिला बैतूल से प्रशासनिक आधार पर कर दिया गया था परंतु, उन्हें रिलीव नहीं किया गया था। दिनांक 20/09/24 को ट्रांसफर आदेश दिनांक 03/10/22 के आधार पर, माध्यमिक शिक्षक श्री मोहन बेले को कार्यमुक्त कर दिया गया था। ट्रांसफर एवं रिलीविंग से पीड़ित होकर, श्री मोहन बेले द्वारा उच्च न्यायालय की शरण ली गई थी। माध्यमिक शिक्षक की ओर से, पैरोकार उच्च न्यायालय के वकील श्री अमित चतुर्वेदी ने कोर्ट में तर्क रखते हुए, बताया कि माध्यमिक शिक्षक के ट्रांसफर जो कि प्रशासनिक था, विलंब से हुई कार्यमुक्ति के कारण, ट्रांसफर आदेश की वैधता खत्म हो चुकी हैं। वर्तमान कार्यमुक्ति, प्रशामनिक ट्रांसफर के उद्देश्य की पूर्ति नहीं करती है। अतः ट्रांसफर आदेश निरस्त किया जाए। अधिवक्ता अमित चतुर्वेदी को सुनने के बाद, उच्च न्यायालय जबलपुर ने ट्रांसफर आदेश दिनांक 03/10/22 एवं रिलीविंग आदेश 20/09/24 को निरस्त कर दिया है।
सरकारी कर्मचारियों के स्थानांतरण आदेश में वैधता का उल्लेख क्यों नहीं होता
श्री मोहन बेले का मामला पहला और आखिरी नहीं है। उपरोक्त समाचार में सिर्फ कर्मचारी का नाम, ट्रांसफर और लिविंग ऑर्डर की तारीख बदलता है। बाकी सब कुछ ऐसा ही रहता है। जैसे यह एक निरंतर चलने वाली शासकीय प्रक्रिया हो गई है। सवाल यह है कि मध्य प्रदेश शासन और खास तौर पर लोक शिक्षण संचालनालय, हाई कोर्ट में केस हारने का रिकॉर्ड क्यों बनना चाहता है। जब एक बार ध्यान में आ गया कि इस प्रकार की गलती हो रही है तो स्थानांतरण आदेश में उसके पालन की अंतिम तिथि का उल्लेख क्यों नहीं कर देते हैं। क्यों सामान्य प्रशासन विभाग इस बारे में कोई गाइडलाइन नहीं बना देता। क्यों किसी नेता या पत्रकार का इंतजार किया जाता है, जब वह मुद्दा उठाएंगे तब हम अपनी गलती सुधारने का विचार करेंगे।