भारतीय न्याय संहिता , 2023 की धारा 20 स्पष्ट रूप से कहती है कि सात वर्ष से कम आयु के शिशु (बालक) द्वारा किया गया अपराध सभी विधियों (कानून) में क्षमा योग्य होता है लेकिन सात वर्ष से अधिक और बारह वर्ष से कम आयु के शिशु का अपराध पूर्णतः क्षमा योग्य नहीं होता है। यह अपराध बच्चे के समझ एवं न समझ पर निर्भर करता है, जानिए।
भारतीय न्याय संहिता,2023 की धारा 21 की परिभाषा
सात वर्ष से ऊपर एवं बारह वर्ष से कम उम्र के शिशु द्वारा किया गया अपराध, उस परिस्थिति में अपराध की श्रेणी में नहीं जाएगा, जग बच्चे को यह जानकारी नहीं होगी कि उसके द्वारा किया गया कार्य, कोई अपराध हो रहा है अर्थात उसकी नासमझ द्वारा किया किया गया अपराध, अपराध नहीं होगा, लेकिन यदि वो जानता है कि वो अपराध कर रहा है, तब वह कार्य क्षमा योग्य नहीं होगा।
उदहारण अनुसार
अगर कोई बालक आठ वर्ष का हैं उसको रास्ते में सोने की चेन मिल जाती है और वह उस चेन को उठा लेता है वह नहीं जानता कि अब उस चेन का वह क्या करे और वह उस चेन को अपनी माँ को दे देता है, जिस व्यक्ति की चेन गुम हुई है वह उसकी चोरी की रिपोर्ट दर्ज करवा दे, तब बालक द्वारा उठाई गई चेन का वह बालक अपराध नहीं होगा क्योंकि उसे समझ नहीं थी कि वह जो कर रहा है वह अपराध है या नहीं। लेकिन वह बालक सोने की चेन को बेच देता है और बेच कर पैसो को खर्च कर दे तब बालक का ऐसा कार्य अपराध होगा वह कानून में किसी भी प्रकार से क्षमा योग्य नहीं होगा। लेखक✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।
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