लोकशिक्षण संचालनालय, मध्यप्रदेश, भोपाल की पॉलिटिक्स के कारण मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा 10वीं एवं 12वीं के 10 लाख से ज्यादा विद्यार्थियों का एक साल बर्बाद हो गया। इस बार भी पढ़ाई नहीं हुई। प्रीबोर्ड परीक्षा निरस्त कर दी गई है और बोर्ड परीक्षाओं की तैयारियां शुरू हो गईं हैं।
आईसीएससी सीबीएससी वालों की अर्धवार्षिक परीक्षा हो चुकी है
मध्यप्रदेश में आईसीएससी, सीबीएसई और एमपी बोर्ड से जुड़े स्कूलों में शिक्षा सत्र आमतौर पर एक अप्रैल से शुरू हो जाता है। कई बार 20 मार्च के आसपास आईसीएससी, सीबीएसई स्कूलों में कक्षाएं लगनी शुरू हो जाती हैं। ऐसे में इनका छह महीने का कोर्स अगस्त में पूरा हो जाना चाहिए। आईसीएससी, सीबीएसई स्कूलों में छमाही परीक्षाएं सितंबर में पूरी हो चुकी हैं और यहां दिसंबर-जनवरी में प्री–बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो जाएंगी। इनका आधा कोर्स अगस्त में ही पूरा हाे गया था। अप्रैल से सितंबर तक छह महीने का समय होता है। इस तरह से इनकी अर्द्धवार्षिक परीक्षाएं पूरे छह माह में आयोजित की गई थी।
पिछले साल 10वीं का रिजल्ट 58.10% था
एमपी बोर्ड की अर्द्धवार्षिक परीक्षा दिसंबर में होगी। ऐसे में छात्रों को अपनी गलती सुधारने और उसे दूर करने का पर्याप्त समय ही नहीं मिलेगा। इसकी वजह है कि इनका रिजल्ट ही दिसंबर अंत तक आएगा और फरवरी के अंतिम सप्ताह से वार्षिक परीक्षाएं शुरू हो जाएंगी। ऐसे में बचा हुआ कोर्स ही पूरा हो पाएगा। पिछले सत्र में भी दिसंबर में ही छमाही परीक्षा हुई थी। इस कारण प्री बोर्ड एक्जाम भी नहीं हो पाई थी। इसी के चलते 10वीं का परीक्षा परिणाम 58.10 प्रतिशत था जबकि सीबीएसई का 10वीं का रिजल्ट 93.60 प्रतिशत था।
अब तक 90% कोर्स पूरा हो जाना चाहिए था
अगर छमाही परीक्षाएं समय पर होंगी तो आगे की तैयारी के लिए छात्रों को पर्याप्त समय मिल पाता है। वे गलतियां सुधार सकते हैं। अक तो बोर्ड पैटर्न का 90% कोर्स कवर हो जाना चाहिए।
-डॉ. एसएन राय, शिक्षाविद् और सीबीएसई, स्कूलों के एडवाइजर
डीपीआई का बहाना पढ़िए
डीएस कुशवाह, संचालक, लोक शिक्षण संचालनलाय कहते हैं कि, इस बार लोकसभा चुनाव भी थे। इस वजह से सेशन प्रभावित हुआ। श्री कुशवाह यह स्वीकार करने को तैयार नहीं कि बीच सत्र में अतिशेष शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण करने और अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति में देरी करने के कारण यह सबकुछ हो गया। सनद रहे कि, लोक शिक्षण संचालनलाय की गलत पॉलिसी के कारण सैंकड़ों मामले हाईकोर्ट में गए। यहां तक कि हाईकोर्ट ने आयुक्त को भी फटकार लगाई। अधिकारियों के बीच में पॉलिटिक्स इतनी ज्यादा है कि, डीपीआई में अब कोई भी प्लानिंग प्रॉपर नहीं हो पा रही है।