मध्यप्रदेश की राजनीति की किताब में एक ऐसा किस्सा जुड़ गया है जिसे सालों तक याद किया जाएगा। लोकसभा चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने जिस कांग्रेस नेता, रामनिवास रावत का सहारा लिया था, विधानसभा उपचुनाव में उनकी अपनी जीत खटाई में पड़ती नजर आ रही है। कहीं मूल भाजपाई तो कहीं जातिगत समीकरण खतरे के संकेत दे रहे हैं।
भाजपा और कांग्रेस के बड़े नेताओं के बयानों में चुनाव का मुद्दा कुछ भी हो परंतु विजयपुर विधानसभा की जनता के बीच में मुद्दा सिर्फ रामनिवास रावत ही है। कुछ लोग रामनिवास रावत के समर्थन में हैं और कुछ लोग विरोध कर रहे हैं। सबके अपने अपने कारण हैं जो मीडिया की सुर्खियों में नहीं हैं। सीताराम आदिवासी ने भले ही समझौता कर लिया परंतु क्या आदिवासी समाज, सीताराम आदिवासी का साथ निभाएगा। इस पर भी सवाल उठ रहा है।
कहा जा रहा है कि कुशवाह समाज रामनिवास रावत से नाराज है, इसलिए मुकेश मल्होत्रा को सपोर्ट कर दिया है।
रामनिवास रावत और सीताराम आदिवासी से नाराज आदिवासी भी मुकेश मल्होत्रा के साथ नजर आ रहे हैं।
बीएसपी ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा, इसलिए जाटव समाज भी फायदे और नुक्सान तौल रहा है।
इस सीट पर पिछले 14 चुनावों में से 7 बार कांग्रेस और 3 बार भाजपा जीती है। ज्योतिरादित्य सिंधिया जब कांग्रेस से भाजपा में गए तो रामनिवास रावत ने पार्टी नहीं बदली थी। विजयपुर के मतदाताओं ने भी पार्टी नहीं बदली थी। अब जबकि रामनिवास रावत ने पार्टी बदल ली है तो क्या विजयपुर के मतदाता उनका साथ देंगे।
मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच है। पिछले 14 चुनाव के नतीजों को देखें तो कांग्रेस ने 7 चुनाव जीते हैं और बीजेपी ने केवल 3 चुनाव जीते हैं। यानी परंपरागत रूप से ये सीट कांग्रेस की है।
क्या नए मुख्यमंत्री की घोषणाओं पर जनता विश्वास करेगी
रामनिवास रावत के बीजेपी में शामिल होने और मंत्री बनने के बाद विजयपुर में 400 करोड़ से ज्यादा के निर्माण कार्यों का भूमिपूजन हो चुका है। चुनाव की घोषणा होने से पहले ही मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, विजयपुर के वीरपुर में चंबल नदी पर मप्र राजस्थान के बीच पोंटून पुल (ड्रमों के ऊपर तैरता पुल), सरकारी कॉलेज और सिविल अस्पताल बनाने की घोषणा कर चुके हैं।
कांग्रेस नेता चुनावी पर्यटन पर
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी सहित ज्यादातर बड़े नेताओं को लोकल मुद्दों का पता ही नहीं। वो रटे रटाए बयान दे रहे हैं। हर दलबदलू कांग्रेस नेता के खिलाफ यही बयान दिए जाते हैं। बस आंकड़े बदल जाते हैं। इस बार कह रहे हैं कि, रामनिवास रावत 6 बार विधानसभा का चुनाव कांग्रेस में रहते जीते, लेकिन उन्होंने मंत्री पद के लिए विजयपुर की जनता से धोखा किया।रामनिवास रावत को कांग्रेस ने इस क्षेत्र से 8 बार चुनाव लड़ाया। दो बार सांसद का भी टिकट दिया। दो बार उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। इसके बाद भी उन्होंने कांग्रेस पार्टी की विचारधारा को धोखा दिया। इन बयानों के अलावा कांग्रेस नेता ज्यादातर टाइम नेटवर्किंग और चुनावी पर्यटन पर बिता रहे हैं।
60 हजार आदिवासी किसे वोट देंगे
विजयपुर में आदिवासी वोटर्स की संख्या करीब 60 हजार है। ये यहां के निर्णायक मतदाता हैं।रामनिवास रावत के बीजेपी जॉइन करने के बाद कांग्रेस ने सहरिया आदिवासी समुदाय से आने वाले मुकेश मल्होत्रा को टिकट दिया। वे सहरिया विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष भी रहे हैं। इधर सीताराम आदिवासी ने भाजपा से बगावत नहीं की, लेकिन क्या रामनिवास रावत के खिलाफ भाजपा को वोट करने वाले आदिवासी इस बार भी भाजपा को वोट करेंगे। अब तक जो आदिवासी वोटर कांग्रेस को वोट देते आए हैं, क्या इस बार भी कांग्रेस को वोट करेंगे। चुनाव के परिणामों में पता चलेगा कि बाकी का आदिवासी वोटर रामनिवास रावत के साथ था या कांग्रेस के साथ।
30 हजार कुशवाह वोटर क्या करेंगे
विजयपुर विधानसभा में रावत और कुशवाह के बीच तनाव बना रहता है। जब रामनिवास रावत कांग्रेस में थे तो उनके विरोध के कारण कुशवाह समाज भाजपा को वोट देता था। इस बार रामनिवास रावत भाजपा में हैं। अब कुशवाह समाज क्या करेगा।
35 हजार जाटव मतदाताओं का क्या होगा
जाटव समाज, बहुजन समाज पार्टी का कोर वोटर है। 2023 के चुनाव में बीएसपी ने धारा सिंह कुशवाह को टिकट दिया था और उन्हें 34 हजार वोट मिले थे। इस बार बसपा ने अपना प्रत्याशी ही नहीं उतारा। अब दोनों प्रत्याशी जाटव समाज को अपने साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं। जाटव समाज ने क्या फैसला किया। इसका पता भी रिजल्ट शीट पर ही चलेगा।
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