मध्य प्रदेश में चल रहे, सरकारी नौकरियों में 27% ओबीसी आरक्षण विवाद से संबंधित याचिकाएं हाई कोर्ट आफ मध्य प्रदेश से सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया ट्रांसफर कर दी गई है। इनमें से दो याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। मध्य प्रदेश ओबीसी आरक्षण विभाग में कई वस्तुनिष्ठ हैं। उनमें से एक वस्तुनिष्ठ प्रश्न का उत्तर स्पष्ट हो गया है।
ओबीसी आरक्षण विवाद याचिका नंबर 5596 और 21074 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट मे मध्य प्रदेश शासन के महाधिवक्ता के विधिक अभिमत के आधार पर समान्य प्रशासन विभाग द्वारा दिनांक 29.9.2022 को जारी अधिसूचना के आधार पर लोक सेवा आयोग द्वारा 2019 से 2023 तक की चयन परीक्षाओं मे 13% समान्य वर्ग के तथा 13% ओबीसी वर्ग के होल्ड कर दिए गए है। उक्त अभ्यर्थियो में से सागर निवासी पृज्ञा शर्मा, मोना मिश्रा; छतरपुर निवासी मनु सिरोटिया, मंडला निवासी मोना मिश्रा ने हाईकोर्ट मे याचिका क्रमांक WP/5596/2024 तथा शाजापुर निवासी पीयूष पाठक, सिंगरौली निवासी सोनम चतुर्वेदी, देवास निवासी स्वाति मिश्रा, अशोकनगर निवासी शिवकुमार रघुवंशी, भोपाल निवासी दीपक राजपूत द्वारा याचिका क्रमांक WP/21074/2024 दायर करके ओबीसी के 14% आरक्षण को लागू करके 100% पदों पर चयन किए जाने की राहत चाही गई थी। उक्त याचिकाकर्ताओ ने सुप्रीम कोर्ट मे T॰P॰(Civil) No. 2827/2024 तथा T॰P॰(Civil) No.2885/2024 दाखिल की जाकर, हाईकोर्ट मे दायर याचिकाओ पर हाईकोर्ट द्वारा सुनवाई नही किए जाने के कारण सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर किए जाने की राहत चाही थी। उक्त दोनों याचिकाओ को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज करते हुए फैसला दिया गया है, कि यदि किसी प्रकरण मे स्टे नही है, तो हाईकोर्ट उक्त विचाराधीन प्रकरणों को अंतिम निराकृत करे।
सुप्रीम कोर्ट में सरकारी वकीलों की दलील
ओबीसी आरक्षण के पक्ष मे पैरवी कर रहे शासन की ओर से नियुक्त विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट मे ओबीसी तथा ईडबल्यूएस आरक्षण के मूल केस दिल्ली ट्रांसफर हो चुके है, तथा उक्त प्रकरणों की हाईकोर्ट की वेबसाइट पर केस स्टेट्स डिस्पोज़ आफ (समाप्त) प्रदर्शित हो रही है, जिससे उक्त प्रकरणों में हाईकोर्ट द्वारा पारित अन्तरिम आदेश निसप्रभावी /प्रभावहीन हो जाने के कारण होल्ड समस्त अभ्यर्थियों को अनहोल्ड करके उनकी नियुक्तीय की जाना चाहिए। जहां तक 87% तथा 13% के फार्मूले का मुद्दा, पूर्णरूप से असंवैधानिक है तथा आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4(2) से भी अवैध है, क्योंकि समान्य प्रशासन विभाग को अधिकार ही नही है, कि विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी कानून के विरोध मे कोई सर्कुलर जारी करे। ना ही महाधिवक्ता को ये अधिकार है कि शासन के कानून के विरूद्ध कोई अभिमत जारी करें। बल्कि शासन के बनाए गए कानून का न्यायलयों मे प्रतिरक्षण करें। विचारणीय प्रश्न यह है कि यदि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से ओबीसी का 27% आरक्षण का कानून स्टे होता, तो क्या शासन के विभिन्न विभागों में जैसे राजस्व विभाग में पटवारियों की भर्ती स्वास्थय विभाग मे ANM नर्सिंग, सब इंजीनियर, ऑन पुलिस कांस्टेबल आदि की 27% पर भर्ती कैसे संभव होती।
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