जबलपुर स्थित हाई कोर्ट ऑफ़ मध्य प्रदेश के मुख्य न्यायमूर्ति श्री सुरेश कैत तथा विवेक जैन की खंडपीठ ने ओबीसी आरक्षण की समस्त 86 याचिकाओं की सुनवाई की। इसके बाद मामले में अपना फैसला सुनाने से पहले उच्च न्यायालय ने बहस के लिए दोनों पक्षों के वकीलों को अंतिम अवसर दिया है।
ओबीसी आरक्षण के लिए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकार को एक महीना दिया
अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि, आठ याचिकाओं के सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरण के बाद पहली बार ओबीसी आरक्षण संबंधी प्रकरण की सुनवाई किया गया। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर में मुख्य न्यायमूर्ति श्री सुरेश कैत तथा विवेक जैन की खंडपीठ ने ओबीसी आरक्षण की समस्त 86 याचिकाओं की सुनवाई की। उक्त सुनवाई लगभग 45 मिनिट चलती रही। अंत में हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के आलोक में क्यों न याचिकाओं के निर्णय के अध्याधीन 27% ओबीसी आरक्षण लागू करने का आदेश पारित कर दिया जाए। जिसका एडिशनल एडवोकेट जनरल अमित सेठ एवं हरप्रीत रूपराह ने घोर विरोध दर्ज कराते हुए कहा आयम कि उक्त मामलो में शासन पक्ष की ओर से सालीसीटर जनरल तुषार मेहता पक्ष रखेंगे तथा 10 दिन का समय माँगा लेकिन कोर्ट ने शासन को एक माह का समय देते हुए तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार अपने ही बनाए क़ानून के विरोध में पैरवी कर रही है तथा सरकार क्यों उक्त मामलो के निराकरण कराने में रूची नहीं ले रही है।
ओबीसी आरक्षण के सभी मामलों को पांच भागों में वर्गीकृत करने के आदेश
कोर्ट ने महाधिवक्ता को निर्देश देते हुए कहा की उक्त समस्त मामलों को पांच भागों में वर्गीकृत करे। पहली वो याचिकाए जो 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के विरोध में है। दूसरी वो जो 27% ओबीसी आरक्षण समर्थन में है। तीसरी वो जिन्होंने सामान्य प्रशासन विभाग तथा महाधिवक्ता के अभिमत के अनुसार 87%-13% फार्मूले को चुनौती दी है। चौथी वो जो होल्ड अभ्यर्थियों द्वारा नियुक्ति हेतु दायर की गईं है। पाँचवी वो जिन्होंने ओबीसी की आबादी के अनुपातए आरक्षण की मांग की है। हाईकोर्ट में यूथ फार इक्वलिटी नामक राजनैतिक पार्टी द्वारा दायर याचिका क्रमांक 18105/2021 दायर करने वाले प्रोफेसर गिरीश कुमार सिंह जो सागर केंद्रीय विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर है तथा उक्त राजनैतिक पार्टी के सचिव की हैसियत से याचिका दायर की है, को नोटिस जारी किया गय है तथा सागर विश्वविद्यालय को पार्टी बनाने कर निर्देश दिया गया है।
न्यायालय ने फाइनल हियरिंग एट मोशन स्टेज के लिए तारीख मुकर्रर किया तो न्यायालय का ध्यान याचिका क्रमांक WP 8967/2024 की तरफ आकर्षित किया गया। एडवोकेट यूनियन फॉर डेमोक्रेसी एंड सोशल जस्टिस नामक संस्था ने अप्रैल 2024 में जनहित याचिका दायर कर ओबीसी 27% आरक्षण को चुनौती दिया है और ओबीसी को उसके जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण की मांग की गई है। माननीय न्यायालय द्वारा दिनांक 16 जुलाई 2024 में सुनवाई कर ओबीसी आरक्षण संबंधी प्रकरण WP/5901/2019 के साथ क्लब कर दिया था, जिसे सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरण याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरण करवा दिया गया हैं।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता द्वारा न्यायालय को बताया गया कि सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण को जनसंख्या अनुपात में मांग करने वाली याचिका पर आज तक जवाब नहीं दिया गया है। जिससे फाइनल सुनवाई होना संभव नहीं होगा। जिस पर न्यायालय ने सरकार के अधिवक्ता को नोटिस जारी कर अगली सुनाई के पूर्व जवाब देने आदेशित किया है। याचिका में भारत सरकार द्वारा वर्ष 1950 में बनाए उपबंध का हवाला दिया गया है जिसमें एससी एवं एसटी को आरक्षण जनसंख्या के अनुपात में दिए जाने का उपबंध किया गया हैं जो आज भी लागू है।
याचिका में याचिकाकर्ता संस्था ने बताया है कि मंडल कमीशन द्वारा अनुशंसा लागू कर 1990 में भारत सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण लागू करने ऑफिस मेमोरेंडम जारी किया था जिसको इंद्रा शहानी के प्रकरण 1992 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लागू किया गया। संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत ही एससी एवं एसटी और ओबीसी आरक्षण दिया जाता हैं। जिसमें गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वर्ष 1950 पारित रिजॉल्यूशन के तहत एससी एवं एसटी को जनसंख्या में आरक्षण दिया जाता है। ओबीसी आरक्षण के लिए इंद्रा शहानी के प्रकरण 1992 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष किसी भी पक्ष द्वारा उपरोक्त भारत सरकार द्वारा वर्ष 1950 पारित रिजॉल्यूशन पर सुप्रीम कोर्ट का ध्यान आकर्षित नहीं किया गया । याचिका कर्ताओ की ओर से पैरवी अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर,विनायक प्रसाद शाह, उदय कुमार साहू, रामगिरीश वर्मा,रामभजन लोधी,पुष्पेंद्र शाह तथा रूपसिंह मरावी ने पैरवी की।
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