2 और 3 दिसंबर, 1984 की दरमियानी रात 15000 लोगों की मौत का कारण, भोपाल गैस कांड वाली यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का कचरा उठाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। यह सफाई, घटना के 40 साल बाद और वह भी हाईकोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुई है। भोपाल से इंदौर होते हुए पीथमपुर तक 250 किलोमीटर का ग्रीन कॉरिडोर बनाया जाएगा। अर्थात जब इस कचरे को लेकर वहां सड़कों पर निकलेंगे तो सारा ट्रैफिक ब्लॉक कर दिया जाएगा।
भोपाल में यूनियन कार्बाइड का कचरा उठाने का काम शुरू
साल 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदार ‘यूनियन कार्बाइड’ फैक्ट्री के गोदाम में रखे 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को इंदौर के पास पीथमपुर की औद्योगिक अपशिष्ट निपटान इकाई में नष्ट किए जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। रविवार सुबह एक्सपर्ट्स की टीम ने कड़े सुरक्षा घेरे में कचरे को 12 कंटेनरों में भरने का काम शुरू किया। 3 जनवरी से पहले इन कंटेनरों को पीथमपुर पहुंचाया जाएगा। इस दौरान परिसर के अंदर जाने पर रोक लगा दी गई है। कचरे को सुरक्षित नष्ट करने के लिए एक ‘ग्रीन कॉरिडोर’ तैयार किया गया है, ताकि यह कचरा बिना किसी रुकावट के पीथमपुर तक पहुंच सके।
डॉक्टर और वैज्ञानिक सहित 500 से अधिक कर्मचारी तैनात
इस पूरी प्रक्रिया के लिए कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है। परिसर के आसपास 100 से अधिक पुलिसकर्मी तैनात हैं। वहीं, 400 से ज्यादा अधिकारी, कर्मचारी, विशेषज्ञ और डॉक्टरों की टीम इस कार्य में जुटी है। रामकी कंपनी के विशेषज्ञों की मॉनिटरिंग में यह कचरा 12 कंटेनर ट्रकों में भरा जा रहा है। 337 मीट्रिक टन अपशिष्ट राज्य की राजधानी में स्थित ‘यूनियन कार्बाइड’ कारखाने में पड़ा है, जहां 2 और 3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात जहरीली गैस ‘मिथाइल आइसोसाइनेट’ का रिसाव हुआ था। इस दुर्घटना को दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदियों में गिना जाता है।
40 साल बाद हाईकोर्ट के निर्देश पर शुरू हुई प्रक्रिया
दरअसल, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस मामले में नाराजगी जताते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि यूनियन कार्बाइड के कचरे को चार हफ्तों के भीतर नष्ट करने की प्रक्रिया शुरू की जाए। इसके मद्देनजर, राज्य के गैस राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने कहा, “भोपाल गैस त्रासदी का कचरा एक कलंक है जो 40 साल बाद मिटने जा रहा है। बता दें कि हाईकोर्ट ने 6 जनवरी तक इसे हटाने के निर्देश दिए थे। 3 जनवरी को सरकार को हाईकोर्ट में रिपोर्ट पेश करना है। यानी, 2 जनवरी तक हर हाल में कचरा पीथमपुर भेजना ही है। पीथमपुर इंडस्ट्रियल वेस्ट मैनेजमेंट (रामकी) कंपनी इसका निष्पादन करेगी।
कचरे वाले ट्रक भोपाल में कहाँ-कहाँ से गुजरेंगे
राज्य के गैस राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने कहा कि इस रासायनिक कचरे को भोपाल से पीथमपुर भेजने के लिए करीब 250 किलोमीटर लंबा ‘ग्रीन कॉरिडोर’ बनाया जाएगा। यहां कचरे को रामकी एनवायरो में जलाया जाएगा। वहीं हर कंटेनर का एक यूनिक नंबर होगा। ये ट्रक कंटेनर जिस रूट से निकलेंगे उसकी सूचना जिला प्रशासन को दे दी जाएगी। वहीं ये ट्रक करोंद मंडी होते हुए पीपुल्स मॉल, करोंद चौराहा, गांधी नगर, मुबारकपुर, सीहोर नाका होते हुए इंदौर जाएंगे। यह रूट इसलिए चुना गया है, क्योंकि रात के समय इस रूट पर ट्रैफिक का दबाव कम रहता है।
पीथमपुर में कोई हादसा ना हो जाए इसलिए
पीथमपुर की अपशिष्ट निपटान इकाई में इस कचरे को जलाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। शुरुआत में कचरे के कुछ हिस्से को जलाकर उसकी राख की वैज्ञानिक जांच की जाएगी, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई हानिकारक तत्व शेष न रह जाए। अगर सब कुछ ठीक रहा, तो यह प्रक्रिया तीन महीने में पूरी हो जाएगी। अन्यथा, इसे धीमी गति से जलाने में नौ महीने तक का समय लग सकता है।
कचरे के जलने से निकलने वाले धुएं को चार-स्तरीय विशेष फिल्टर से गुजारा जाएगा, ताकि वायु प्रदूषण न हो। पूरी प्रक्रिया की निगरानी की जाएगी और इसका रिकॉर्ड रखा जाएगा। कचरे से बनी राख को दो परतों वाली मजबूत झिल्ली से ढककर ‘लैंडफिल साइट’ में दफनाया जाएगा, ताकि यह मिट्टी और पानी के संपर्क में न आ सके।
पीथमपुर वाले विरोध कर रहे हैं
कुछ स्थानीय लोग और पर्यावरण कार्यकर्ता दावा कर रहे हैं कि 2015 में यूनियन कार्बाइड के 10 टन कचरे को पीथमपुर में नष्ट किए जाने के बाद वहां की मिट्टी और जल स्रोत प्रदूषित हो गए थे। हालांकि, गैस राहत और पुनर्वास विभाग ने इन दावों को गलत बताया है। विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने कहा, “2015 के परीक्षण और सभी आपत्तियों की जांच के बाद ही पीथमपुर में 337 टन कचरे को नष्ट करने का निर्णय लिया गया है। इस इकाई में कचरे को सुरक्षित तरीके से नष्ट करने के सारे इंतजाम हैं और चिंता की कोई बात नहीं है।”
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