हाई कोर्ट ऑफ़ छत्तीसगढ़ के मुख्य न्यायाधीश श्री रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति अमितेंद्र किशोर प्रसाद ने कर्मचारियों से जुड़े एक मामले में महत्वपूर्ण जजमेंट देते हुए कहा कि पदोन्नति के अवसर का, अधिकार के रूप में दवा नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायालय ने स्कूल शिक्षा विभाग के व्याख्याता के एक समूह की याचिका खारिज कर दिया।
छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग में प्रमोशन में आरक्षण का विवाद
छत्तीसगढ़ शासन, स्कूल शिक्षा विभाग के व्याख्याता के एक समूह ने छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा (शैक्षणिक और प्रशासनिक संवर्ग) भर्ती और पदोन्नति नियम, 2019 की वैधता को चुनौती दी थी। इस नियम में स्थानीय निकाय संवर्गीय की व्याख्याता को प्राचार्य के पद पर पदोन्नति के लिए 30% आरक्षण का प्रावधान किया गया था। याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि, यह वर्गीकरण उनके पदोन्नति के अवसर को कमजोर करता है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 16 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह नियम स्कूल शिक्षा विभाग के कर्मचारियों के बीच में वर्ग भेद पैदा करता है।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्कों को सुना और इस बात को सुनिश्चित किया कि क्या यह नियम भारत के संविधान के किसी भी अनुच्छेद का उल्लंघन करता है। सभी पक्षों को सुनने के बाद छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय द्वारा फैसला सुनाया गया कि, कर्मचारियों को पदोन्नति के लिए विचार किए जाने का अधिकार है लेकिन पदोन्नति के अवसर को, पदोन्नति का अधिकार नहीं माना जा सकता है।
द्वारिका प्रसाद बनाम भारत संघन्यायालय ने द्वारिका प्रसाद बनाम भारत संघ में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का उल्लेख किया जिसमें निर्धारित किया गया है कि: “पदोन्नति के लिए उचित और समान विचार का अधिकार अनुच्छेद भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत एक कानूनी और मौलिक अधिकार है। हालांकि पदोन्नति का मात्र अवसर एक गारंटीकृत अधिकार नहीं है"।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि कर्मचारियों के किसी एक वर्ग को कोटा आवंटित करना सरकार का अपना पॉलिसी मैटर है।
- याचिकाकर्ताः राजेश कुमार शर्मा और 16 अन्य ई-कैडर व्याख्याता, जिनका प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव श्रीवास्तव और अधिवक्ता सौरभ साहू द्वारा किया गया।
- प्रतिवादीः छत्तीसगढ़ राज्य, जिसका प्रतिनिधित्व उप महाधिवक्ता शशांक ठाकुर द्वारा किया गया, और भारत संघ, जिसका प्रतिनिधित्व केंद्र सरकार के वकील अन्नपूर्णा तिवारी द्वारा किया गया।
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