संविदा, अंशकालिक और अतिथि कर्मचारियों के लिए सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला - NEWS TODAY

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने "संविदा, अंशकालिक, अस्थाई, दैनिक वेतन भोगी, अतिथि इत्यादि" सभी प्रकार के अस्थाई कर्मचारियों के हित में एक महत्वपूर्ण जजमेंट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि, एक ही पद पर लंबे समय तक काम करने वाले कर्मचारियों को नियमितीकरण का अधिकार है। सरकार उसके पद नाम के आधार पर अपने निर्धारित कर्तव्य का पालन करने से इनकार नहीं कर सकती है। 

सरकार को अस्थिर रोजगार व्यवस्थाओं का संचालन नहीं करना चाहिए

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में संविदा, अंशकालिक इत्यादि सभी प्रकार के अस्थाई कर्मचारियों से संबंधित मामले का फैसला दिनांक 20 दिसंबर 2024 को सुनाया गया। केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission) में कार्यरत सफाई और बागवानी कर्मचारियों द्वारा दाखिल अपीलों पर सभी पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा जजमेंट सुनाया जा रहा था। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और पी.बी. वरले की पीठ ने कहा कि, सरकार देश के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है। उसे प्राइवेट सेक्टर की तरह "अस्थिर रोजगार व्यवस्थाओं" (precarious employment arrangements) का संचालन नहीं करना चाहिए। 

सरकार अस्थिर रोजगार व्यवस्थाओं के खिलाफ भूमिका निभाए

Gig Economy की कारण प्राइवेट सेक्टर अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है, परंतु सरकार उसका अनुसरण नहीं कर सकती। की सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, Gig Economy के कारण ही अस्थिर रोजगार व्यवस्था में वृद्धि हुई है। इसके कारण भारत में लेबर स्टैंडर्ड कमजोर हो गया है और नौकरी के नाम पर लोगों का शोषण किया जा रहा है। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस प्रकार की व्यवस्था के खिलाफ, अपनी भूमिका निभाए। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने अपने फैसले में लिखा है कि, सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं द्वारा संविदा कर्मचारियों की नियुक्ति और श्रम कानून के खिलाफ उनका शोषण करना, चिंता पैदा करता है। 

संविदा अथवा अंशकालिक कर्मचारी मामले में सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर

सुप्रीम कोर्ट में अपील से पहले सभी चतुर्थ श्रेणी संविदा कर्मचारियों के मामले में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (Central Administrative Tribunal) और दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि वह केवल अंशकालिक कर्मचारी हैं। और पार्ट टाइम वर्कर्स को नियति कारण का अधिकार नहीं होता है। यह भी कहा गया था किस प्रकार की कर्मचारी नियमित कारण की मांग करने का अधिकार नहीं रखते। सभी कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने सभी कर्मचारियों का टर्मिनेशन रद्द करते हुए आदेश दिया है कि उन्हें तुरंत नियमित किया जाए और सेवा में वापस लिया जाए। 

अदालतों के लिए सुप्रीम कोर्ट की एडवाइजरी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायालय को भी रोजगार की वास्तविकता को देखना चाहिए। मामलों की सुनवाई के दौरान long-term service, indispensable dutiesऔर illegalities पर ध्यान देना चाहिए। बड़े सरकारी संस्थानों में कर्मचारियों के प्रति जिम्मेदारी से बचने के लिए, संस्थान को मुनाफा में दिखाने के लिए, और कर्मचारियों पर दबाव बनाए रखने के लिए अस्थाई कर्मचारी अथवा किसी ठेकेदार के माध्यम से आउटसोर्स कर्मचारी को नियुक्त करने की प्रवृत्ति अपनाई गई है। सुप्रीम कोर्ट का या फैसला रेखांकित करता है कि, कर्मचारियों को दिए गए लेबल (संविदा, अंशकालिक, दैनिक वेतन भोगी, अस्थाई, अतिथि इत्यादि) को नहीं बल्कि उसके द्वारा किए जा रहे काम की प्रकृति पर ध्यान दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में, अमेरिका की कोर्ट ऑफ अपील्स (U.S. Court of Appeals) के मामले Vizcaino v. Microsoft Corporation का संदर्भ दिया। 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि भारत, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के संस्थापक सदस्यों में से एक देश है। यह दुनिया के उन देशों में शामिल है जो रोजगार की स्थिरता और श्रमिकों के साथ निष्पक्ष व्यवहार की वकालत करते हैं। इस प्रकार की सेवा समाप्ति का विरोध करते हैं जो long-term unemployment को बढ़ावा देती है। जब कर्मचारियों की भूमिका विभाग अथवा संगठन के काम में अनिवार्य हो जाती है तो उसे अस्थाई आधार पर काम पर रखना, अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों का उल्लंघन है। ऐसे विभाग अथवा संगठन को कर्मचारियों के मनोबल को कमजोर करने वाला अपराधी माना जाता है। यदि सरकार निष्पक्ष रोजगार प्रथाओं का पालन सुनिश्चित करती है तो अनावश्यक मुकदमोनों के बोझ से बचा जा सकता है। Notice: this is the copyright protected News Post. do not try to copy of this article.

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