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मध्य प्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण का रास्ता साफ, 13% HOLD पदों पर नियुक्ति मिलेगी - MP NEWS

जबलपुर स्थित हाई कोर्ट आफ मध्य प्रदेश से एक बड़ी खबर आ रही है। उच्च न्यायालय ने उसे याचिका को खारिज कर दिया है जिसके आधार पर मध्य प्रदेश की सरकारी भर्ती में 87-13 फार्मूला लागू किया गया था। अब HOLD किए गए 13% पदों पर नियुक्ति की जाएगी। 

27% ओबीसी आरक्षण के खिलाफ याचिका का विवरण

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने आज उस याचिका को निरस्त कर दिया गया है, जिस याचिका में दिनांक 04/08/23 को पारित अंतरिम आदेश के तहत महाधिवक्ता ने प्रदेश के समस्त 54 विभागों को आगामी की जाने वाली भर्तियों को तीन भागों में रिजल्ट बनाने का अभिमत दिया गया था। (1) 87% पर मुख्य लिस्ट (2) 13% ओबीसी की प्रविधिक सूची (3) 13% सामान्य वर्ग प्रविधिक सूची अर्थात कुल 113% पर रिजल्ट बनाने हेतु महाधिवक्ता के अभिमत के आधार पर सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा प्रदेश के समस्त विभागों को परिपत्र जारी किए गए थे। मध्य प्रदेश की समस्त भर्तियों में जो 2023 तक प्रक्रियाधीन थी उन सभी में भर्ती एजेंसियों द्वारा 87% - 13% का फार्मूला लागू कर दिया गया, जिसके कारण प्रदेश के लाखों युवाओं को होल्ड करके उनका भविष्य अनिश्चित बना दिया गया। 

अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ने कहा, सरकार का उक्त फैसला नियम विरुद्ध होने के साथ-साथ संविधान तथा आरक्षण के कानून के विरुद्ध था। जो भी भर्ती विज्ञापित होती थी उन सभी में नोट रहता था कि उक्त भर्ती 87% तथा 13% पर की जाएगी तथा याचिका क्रमांक 18105/2021 के फैसले के अधीन होगी। उक्त याचिका क्रमांक 18105/2021 यूथ फॉर इक्वलिटी नामक पोलिटिकल पार्टी द्वारा दायर करके GAD के परिपत्र दिनांक 02/09/2021 की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी। 

उक्त परिपत्र दिनांक 02/09/2021 तत्कालीन महाधिवक्ता श्री पुरुषेंद्र कौरव के अभिमत दिनांक 26/08/2021 के आधार पर सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी किया गया था जिसमें तीन विषयों को छोड़कर (P.G. NEET, पीएससी द्वारा की जाने वाली मेडिकल ऑफिसरों की भर्ती 2020, तथा हाईस्कूल शिक्षक की भर्ती के 16 विषयों में के पाँच विषयों) को छोड़कर समस्त भर्तियों तथा प्रवेश परीक्षाओं में ओबीसी को 27% आरक्षण लागू किए जाने के निर्देश जारी किए गए थे। उक्त परिपत्र को हाईकोर्ट के तत्कालीन न्यायधीश शील नागू तथा वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने स्टे कर दिया था। 

उक्त स्टे आदेश के विरुद्ध महाधिवक्ता एवं सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में SLP दायर करने के बजाय ओबीसी वर्ग के हितों के विरुद्ध महाधिवक्ता श्री प्रशांत सिंह द्वारा गलत अभिमत देकर भूतलक्षी प्रभाव से समस्त भर्तियों में ओबीसी के 13% पदों को होल्ड करने की प्रक्रिया आरंभ करा दी गई तथा आगामी समस्त भर्तियों को 87% मुख्य भाग तथा 13% ओबीसी एवं 13% सामान्य वर्ग के प्राविधिक भागों में रिजल्ट जारी करना आरंभ कर दिया गया जिसके पीछे शासन की मंशा यह थी कि यदि ओबीसी का 27% आरक्षण कोर्ट द्वारा अफर्म किया जाता है तो होल्ड 13% ओबीसी को दे दिया जाएगा और यदि 27% खारिज होता है तो 13% सामान्य वर्ग को दे दिया जाएगा तथा नियुक्ति पत्र केवल 87% पर ही जारी किए जाएंगे 13% आरक्षण के तहत होल्ड अभ्यर्थी याचिका क्रमांक WP/18105/2021 के फैसले के अधीन होंगे।

चूंकि ओबीसी कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाली मुख्य याचिका क्रमांक 5901/2019 सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर हो जाने के कारण उस याचिका में पारित अंतरिम आदेशों की वैधता समाप्त हो गई है तथा उक्त याचिका हाईकोर्ट से डिस्पोज ऑफ है तथा याचिका में पारित अंतरिम आदेश दिनांक 19/03/2019 को अधिकांश याचिकाओं में लागू किया गया था जिसके कारण उक्त याचिकाओं में भी उक्त अंतरिम आदेशों का प्रभाव समाप्त हो चुका है फिर भी मध्य प्रदेश सरकार ओबीसी के 27% आरक्षण को लागू नहीं करना चाहती क्योंकि उक्त आरक्षण कांग्रेस सरकार ने कानून बनाकर लागू किया था। उक्त तथ्य वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर हाईकोर्ट को पूर्व में बता चुके हैं। तब हाईकोर्ट ने सरकार से कहा था कि कानून आपका है चाहे किसी भी सरकार ने बनाया हो आप इसे लागू करना क्यों नहीं चाहते? तब महाधिवक्ता कार्यालय के अधिवक्ताओं की हाईकोर्ट में बोलती बंद हो गई थी।

याचिकाकर्ता को याचिका लगाने का अधिकार ही नहीं था

आज दिनांक 28/01/2025 को मुख्य न्यायमूर्ति श्री सुरेश कुमार कैत तथा जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ द्वारा की गई, मध्य प्रदेश शासन की ओर से कोर्ट को बताया गया कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 75 ट्रांसफर याचिके दाखिल कर दी है जिनमें से 13 याचिकाओं में स्थगन है। तब ओबीसी की ओर से पक्ष पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने कोर्ट को बताया कि जिस याचिका के कारण प्रदेश की सम्पूर्ण भर्तियां प्रभावित हो रही हैं उस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की रोक नहीं है इसलिए उक्त याचिका की विचारणशीलता पर सुन लिया जाए। उक्त याचिका में सामान्य प्रशासन विभाग के परिपत्र दिनांक 02.9.21 को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता एक राजनीतिक पार्टी है तथा याचिका दाखिल करने वाला सचिव गिरीश कुमार सिंह है जो सागर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं, जिन्हें याचिका दाखिल करने का कानूनी अधिकार नहीं है। 

हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया

तत्संबंध में सागर यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार को कोर्ट में उपस्थित होने का आदेश पारित किया गया था जो आज उपस्थित नहीं हुए हैं, लेकिन उनकी ओर से जबाब दाखिल करके बताया गया है कि गिरीश कुमार सिंह सागर से गुरू घाशीदास यूनीवासिटी ट्रांसफर हो चुके हैं तब वरिष्ठ अधिवक्ता ने कोर्ट से निवेदन किया कि इस याचिका को खारिज कर दिया जाए ताकि प्रदेश के लाखों युवाओं का भविष्य बर्बाद होने से बचाया जा सकता है। वैसे भी यह याचिका विचारण योग्य नहीं है। अधिवक्ता के उक्त तर्कों को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट ने उक्त याचिका को खारिज कर दिया गया एवं एक और याचिका जिसमे सब इंजीनियरों की 27% पर की गई भर्तियों को चुनौती दी गई थी उसे भी आज खारिज कर दिया गया।

अब 27% आरक्षण की बाल सरकार के पाले में

अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह का कहना है कि, अब सरकार के पाले में गेंद है। कब तक होल्ड अभ्यर्थियों को अनहोल्ड करके नियुक्ति पत्र दिए जाने की कार्यवाही की जाएगी। ओबीसी वर्ग की ओर से पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, रंभाजन सिंह लोधी, राकेश साहू, पुष्पेंद्र शाह, रमेश प्रजापति ने पैरवी की। 

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