भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, एक नया अध्ययन जो कई न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के उपचार के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण प्रदान करता है, अल्जाइमर रोग, डिमेंशिया और इससे संबंधित रोगों के लिए आशा प्रदान करता है।
प्रोफेसर अनिरबन भुनिया की रिसर्च रिपोर्ट
एमिलॉयड प्रोटीन और पेप्टाइड्स अल्जाइमर रोग (एडी) सहित विभिन्न न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सिंथेटिक रूप से डिज़ाइन किए गए छोटे अणु/ विभिन्न प्रकार के एमिलॉयडोसिस के अवरोधन की दिशा में आशाजनक हैं। इस संबंध में उल्लेखनीय है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान, कोलकाता के बोस इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर अनिरबन भुनिया और उनकी टीम ने दो अलग-अलग रणनीतियां अपनाईं। सबसे पहले उन्होंने एमिलॉयड बीटा एकत्रीकरण से निपटने के लिए रासायनिक रूप से संश्लेषित पेप्टाइड्स का उपयोग किया। दूसरा, आयुर्वेद से लसुनाद्य घृत (एलजी) नामक एक दवा का पुनः उपयोग करते हैं, जो प्राचीन पारंपरिक भारतीय चिकित्सा है, जिसने पहले अवसाद से संबंधित मानसिक बीमारियों के इलाज में प्रभावशामी भूमिका निभाई।
एलजी और उनके घटकों के गैर-विषाक्त यौगिकों को एमिलॉयड बीटा 40/42 (एβ) एकत्रीकरण के विरुद्ध उपयोग के लिए अभिलक्षणित और पुन: उपयोग किया गया। इन यौगिकों के जल अर्क, जिन्हें एलजी डब्ल्यूई कहा जाता है, ने न केवल विस्तार चरण के दौरान फाइब्रिलेशन प्रक्रिया को बाधित किया, बल्कि फाइब्रिलेशन मार्ग के प्रारंभिक चरणों में ओलिगोमर्स के गठन को भी बाधित किया। उल्लेखनीय रूप से, इन यौगिकों ने रासायनिक रूप से डिज़ाइन किए गए पेप्टाइड्स की तुलना में एमिलॉयड समुच्चयों को गैर-विषाक्त छोटे विघटनीय अणुओं में तोड़ने में अधिक प्रभावशाली भूमिका का प्रदर्शन किया, जो एमिलॉयड-प्रवण प्रोटीन को अलग करने में इसकी नई भूमिका का सुझाव देता है।
प्रतिष्ठित जर्नल बायोकेमिस्ट्री में प्रकाशित पेपर
प्रतिष्ठित जर्नल बायोकेमिस्ट्री (एसीएस) में हाल ही में प्रकाशित एक हालिया पेपर में, बोस इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर भुनिया ने साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स (एसआईएनपी) कोलकाता और आईआईटी-गुवाहाटी के अपने सहयोगियों के साथ बताया कि रासायनिक रूप से डिज़ाइन किए गए पेप्टाइड्स गैर विषैले सीरम-स्थिर हैं, और एमिलॉयड प्रोटीन विशेष रूप से एबी 40/42 को बाधित करने के साथ-साथ इन्हें अलग करने में प्रभावी हैं। इसके अतिरिक्त प्रोफेसर भुनिया ने लखनऊ विश्वविद्यालय के राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज और अस्पताल के आयुर्वेद विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉ संजीव रस्तोगी के साथ साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स के अन्य शोधकर्ताओं के साथ मिलकर दिखाया कि कैसे प्राकृतिक यौगिक रासायनिक रूप से डिज़ाइन किए गए पेप्टाइड्स की तुलना में एमिलॉयड बीटा के अवरोध और टूटने को अधिक प्रभावी ढंग से बढ़ा सकते हैं
यह शोध अल्जाइमर रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए आशा की किरण है और अल्जाइमर जैसे जटिल न्यूरोडीजेनेरेटिव विकारों के लिए आयुर्वेद या प्राचीन भारतीय पारंपरिक चिकित्सा की क्षमता को उजागर करता है। यह प्राकृतिक उपचारों में आगे की खोज को प्रेरित कर सकता है, जिससे मनोभ्रंश से प्रभावित लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।