भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 497 में जारकर्म को अपराध माना जाता था ,अगर कोई पुरुष किसी विवाहिता स्त्री के साथ संबंध बनाता है तो उसे जारकर्म का अपराध कहा जाता है। भारतीय न्याय संहिता 2023 में, इस प्रकार के संबंध को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया है। आईए जानते हैं कि ऐसा क्यों किया गया है:-
5 वर्ष कारावास का प्रावधान था
इस अपराध की शिकायत सिर्फ महिला ही कर सकती थी और इस अपराध में सिर्फ पुरुष ही अपराधी होता था। इसलिए अक्सर यह कहा जाता था कि, यह धारा संविधान में निर्धारित समानता के अधिकार का उल्लंघन है। विवाहित स्त्री एवं पुरुष, दोनों वयस्क हैं, और दोनों रिलेशन में आते हैं तो इसके लिए, सिर्फ पुरुष को जिम्मेदार नहीं घोषित किया जा सकता है। अगर बात करें इस अपराध के दण्ड की तो यह अपराध असंज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होता था। इस अपराध की सुनवाई एवं शिकायत प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट के पास होती थी, इस अपराध के लिए अधिकतम पाँच वर्ष की कारावास या जुर्माने का प्रावधान था।
इस अपराध को कब और किसके द्वारा हटाया गया जानिए-:
संवैधानिक चुनौतियां
1. सर्वप्रथम यूसुफ अब्दुल बनाम अझीझ बनाम बम्बई राज्य में इस अपराध को वैध घोषित किया था। न्यायलय ने आवेदक के तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15(3) जो महिलाओं के लिए विभेदकारी कानून बनाने की छूट देता है।
2. सुप्रीम कोर्ट ने सौमैत्री विष्णु बनाम भारत संघ एवं रेवती बनाम भारत संघ मामले में पुनः इसी बात को दोहराया कि जारकर्म में सहभागी स्त्री को अपराधी के रूप मे दण्डित किया जाना न्यायोचित नहीं होगा।
लेकिन इस अपराध को लेकर संविधान का उल्लंघन है यह लड़ाई वर्षों तक चलती रही क्योंकि इस अपराध में, स्त्री और पुरुष दोनों शामिल होते हैं परंतु केवल पुरुष को दोषी मानकर दंडित किया जाता है। यह संविधान का उल्लंघन है और पुरुष ही क्यों दण्ड के भागीदार होगे।
आखिरकार केरल के रहने वाले जोसफ साइन भारतीय मूल के नागरिक जो इटली में निवास करते थे, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट में 2017 में एक याचिका लगा दी जो भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की 497 और दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 198(2) को असंवैधानिक बताने के लिए जो पुरुषों के साथ समानता के अधिकार को भेदभाव करता है।
जोसेफ साइन बनाम भारत संघ, निर्णय वर्ष 2019
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने एकमत होते हुए जारकर्म को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया एवं भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 497 को असंवैधानिक मानते हुए इसे निरस्त कर दिया।
आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने 157 साल पुराने कानून को तोड़ दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे प्रावधान जो महिला-पुरुष के साथ भेदभाव करते है वह असंवैधानिक होते हैं। जापान, ब्राजील आदि देशों में भी जारकर्म का संबंध अपराध नहीं है। यह संविधान का उल्लंघन है, इसलिए भारतीय दण्ड संहिता की धारा 497 एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 198(2) असंवैधानिक है।
इस प्रकार भारतीय मूल के इटली निवासी जोसेफ साइन ने अंग्रेजो के 157 साल पुराने असंवैधानिक कानून को निरस्त करवा दिया। इसी आधार पर नए कानून भारतीय न्याय संहिता 2023 में जारकर्म को नए कानून में अपराध नहीं माना गया है। अतः इस कानून को निरस्त कर दिया गया। लेखक✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।
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