यदि विवाह के किसी पक्षकार ने पति अथवा पत्नी में निरन्तर सात वर्षों तक कुछ नहीं सुना हो अर्थात् उसके जीवित होने के बारे मे कोई भी सूचना, जानकारी न हो, ऐसे में व्यक्ति द्वारा पुनः विवाह किया जाना BNS की धारा 82 के अंतर्गत अपराध नहीं होगा।
इस संबंध में महत्त्वपूर्ण जजमेंट को समझिए
आर. बनाम टाल्सन मामला उल्लेखनीय है जानिए:- इस मामले में न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि यदि कोई पत्नी यह विश्वास करने के लिए उचित कारण होते हुए कि उसका पति मर चुका है, सात वर्ष के पहले ही किसी अन्य व्यक्ति से विवाह कर लेती है, परंतु विवाह के बाद उसका प्रथम पति आ जाता है या उसके जीवित रहने की सूचना मिलती, तो भी वह द्विविवाह के अपराध की दोषी नहीं मानी जाएगी एवं यही बात पुरुष द्वि-विवाह की दशा में भी लागू होती है।
लेकिन अगर स्त्री या पुरुष को यह पता है कि उसका पति या पत्नी जीवित है तब वह द्वि-विवाह नहीं कर सकते है अथवा द्वि-विवाह के दोषी होंगे।
न्यायालय ने आगे कहा की जहां द्वि-विवाह के पहले ही आरोपी और उसकी पत्नी सात वर्ष से अलग रह रहे हैं तो आरोपी को ही साबित करना होगा की विगत सात वर्षों से वह एक दूसरे से ना मिले थे न उनके पास पहुंचने का कोई साधन उपलब्ध था।
जनरल नॉलेज:- ज्ञातव्य होना चाहिए की हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 एवं भारतीय दण्ड संहिता, 1960 की धारा 494 (अब वर्तमान मे BNS की धारा 82 होगी) लागू नहीं होने से पहले हिन्दुओ में बहू विवाह प्रथा परिचालित थी अर्थात हिन्दू पुरुष एक से अधिक विवाह कर सकते थे। लेखक✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।
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