मध्य प्रदेश पुलिस आरक्षक भर्ती 2016 विवाद में जबलपुर स्थित हाई कोर्ट ने जिलेवार आरक्षण की जानकारी मांगी है। हाईकोर्ट ने गृह विभाग के सचिव और मध्य प्रदेश पुलिस के डीजीपी को शपथ पत्र प्रस्तुत करने के निर्देश दिए। यह चेतावनी विधि है कि यदि जानकारी गलत निकली तो दोनों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
मध्य प्रदेश पुलिस आरक्षक भर्ती 2016-17 आरक्षण विवाद
अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ने बताया कि, मध्य प्रदेश पुलिस आरक्षक भर्ती 2016-17 में आरक्षण की प्रक्रिया पर आपत्ति दर्ज कराई गई थी। इस याचिका की सुनवाई करते हुए आज हाई कोर्ट आफ मध्य प्रदेश में चीफ जस्टिस की बेंच ने मध्य प्रदेश शासन गृह विभाग के सचिव और मध्य प्रदेश पुलिस महानिदेशक को निर्देशित किया है कि वह शपथ पत्र पर जिलेवार आरक्षण की जानकारी प्रस्तुत करें। यदि उन्होंने गलत जानकारी दी तो, परिणाम भगत ने के लिए तैयार रहे।
मध्य प्रदेश पुलिस आरक्षक भर्ती 2016 विवाद का विवरण
इस मामले में गृह विभाग द्वारा तीन बार जवाब दाखिल किए गए, तीनों जवाब परस्पर विरोधी हैं। भोपाल पुलिस हैडक्वाटर DG(चयन) ने अपने एक जवाब में 62% अंक प्राप्त करने वाले ओबीसी कैंडिडेट को अनारक्षित बताया था जबकि 72% अंक प्राप्त करने वाले ओबीसी कैंडिडेट को आरक्षण का लाभ दिया गया।
मध्यप्रदेश पुलिस आरक्षक भर्ती 2016 की शाखाओं (DF, SAF, स्पेशल ब्रांच, ट्रेड आदि) के कट ऑफ अंक की लिस्ट भर्ती एजेंसी ने दिनांक 15.12.2016 को जारी की थी। इसमें पिछड़ा वर्ग के लिए 884 पद रिक्त बताए गए थे। इसके बाद दिनांक 9 दिसंबर 2022 को पुलिस हैडक्वाटर द्वारा जिलेवार मेरिट लिस्ट बनाई गई। इस बात पर आपत्ति उठाई गई है। जब परीक्षा राज्य स्तरीय हो रही है तो मेरिट लिस्ट जिलेवार कैसे हो सकती है। पद स्थापना में उम्मीदवारों द्वारा पसंद किए गए विकल्प प्राथमिकता नहीं दी गई।
डिजिटल अरेस्ट, ऑनलाइन फ्रॉड मामलों में समझौता मंजूर नहीं होना चाहिए
केके लाहोटी रिटायर्ड जस्टिस, मध्यप्रदेश हाई कोर्ट क्या कहना है कि, डिजिटल अरेस्ट, ऑनलाइन फ्रॉड, अपहरण... ये ऐसे अपराध हैं जिनमें असामान्य परिस्थितियों को छोड़कर सामान्यतः समझौते स्वीकार नहीं करने चाहिए। फिर चाहे पीड़ित ने शपथ पत्र पर समझौते करने की बात स्वीकार क्यों ना की हो? कारण- ये सामान्य अपराध नहीं, बल्कि ये पूरे समाज के खिलाफ हैं। ऑनलाइन फ्रॉड में तो अपराधी अदृश्य रहता है।
शुरुआत में पता ही नहीं चल पाता कि अपराधी कौन है? यदि ऐसे ही चलता रहा तो भविष्य में हत्या के आरोपी भी पीड़ित पक्ष से समझौता करेंगे और हाई कोर्ट में एफआईआर को निरस्त कराने की गुहार लगाएंगे। ऐसे में शायद हाई कोर्ट इनहेरेंट पॉवर (निहित शक्तियों) का उपयोग कर एफआईआर निरस्त भी कर देंगी?
ये अपराध कंपाउंडेबल ऑफेंस (ऐसे अपराध जिनमें समझौता किया जा सकता है) की श्रेणी में नहीं आते। हां, यदि पति पत्नी के बीच कोई विवाद था, परिवार के बीच कोई झगड़ा था, जिसमें केस दर्ज हो गया था। अब दोनों इस मामले को खत्म कर नई शुरुआत करना चाहते हैं, जो कि परिवार ओर समाज के हित में है।