भोपाल गैस कांड के बाद सील कर दी गई यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के कचरे को नष्ट करने के लिए नियम अनुसार पीथमपुर भेज दिया गया है परंतु कचरे के ट्रक पहुंचते ही एक नई पॉलिटिक्स शुरू हो गई है। इंदौर और पीथमपुर की जनता को बताया जा रहा है कि इस कचरे में मौत छुपी है। जमीन बंजर हो जाएगी और फसलें बर्बाद हो जाएंगे। सरकार अपने बचाव में तर्क दे रही है परंतु हम आपको एक तीसरे चश्मे से दिखाते हैं कि, यूनियन कार्बाइड के कचरे ने पिछले 40 साल में भोपाल को कितना नुकसान पहुंचा है।
कचरे में उगे चारे से जानवरों को जुकाम तक नहीं हुआ
40 साल पहले इस फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसायनाइड नाम की गैस लीक हुई थी। इस गैस के कारण भोपाल में 15000 लोगों की मृत्यु हो गई थी। यह दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी है परंतु यहां नोट करना जरूरी है कि, मृत्यु का कारण मिठाई आइसोसायनाइड गैस थी। फैक्ट्री और फैक्ट्री में रखे हुए केमिकल नहीं थे। घटना के बाद फैक्ट्री को सील कर दिया गया। मामला कोर्ट में चल रहा है इसलिए फैक्ट्री में जो कोई भी सामान बचा था, वह सब कुछ वैसा का वैसा ही पड़ा हुआ है। इंसानों का जाना माना है परंतु बारिश में वहां पर खरपतवार पैदा होती है। जानवरों का चारा पैदा होता है। जानवर बड़े मजे से अपना चारा खाते हैं। आज तक किसी भी जानवर को जुकाम तक नहीं हुआ है। पशु चिकित्सा विभाग के पास इस फैक्ट्री के आसपास किसी भी जानवर की इस प्रकार की डेड बॉडी नहीं मिली है।
सैटेलाइट इमेज में खुद देखिए कितनी जमीन बंजर हो गई है
कृपया इस इमेज को ध्यान से देखिए। यह सरकारी सोर्स से नहीं दी गई है बल्कि गूगल के सेटेलाइट से कैप्चर की गई है। यहां आप देख सकते हैं कि यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के आसपास कितनी हरियाली है। यदि इस फैक्ट्री के कचरे से जमीन बंजर होती तो, यह पूरा इलाका बीहड़ बन गया होता। चित्र में आप देख सकते हैं कि, यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से कुछ ही दूरी पर कॉलोनी भी है। यहां पर नागरिक रहते हैं। ट्यूबवेल का पानी पीते हैं। पिछले 25 सालों में ना तो किसी ने अपनी को लेकर कोई शिकायत की है और ना ही यहां पर रहने वाले नागरिकों के स्वास्थ्य पर कोई असर पड़ा है।
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