मध्य प्रदेश में वर्तमान मौसमी हालातों की वजह से पाला पड़ने की संभावना बढ़ रही है। किसान भाईयों को सतर्क रहकर अपनी फसलों की सुरक्षा के उपाय करने की सलाह किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग द्वारा दी गई है।
मौसम से पता चलती है पाला पड़ने की संभावना
जब आसमान साफ हो, हवा न चल रही है। और तापमान काफी कम हो जाये तब पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है। दिन के समय दोपहर से पहले ठंडी हवा चल रही हो व हवा का तापमान अत्यन्त कम होने लग जाए, साथ ही दोपहर बाद अचानक हवा चलना बंद हो जाए तब पाला पड़ने की आंशका बढ़ जाती है। रात को विशेषकर तीसरे एवं चौथे प्रहर में पाला पडने की संभावना रहती है। साधारणत: तापमान चाहे कितना ही नीचे चला जाये, यदि शीत लहर हवा के रूप में चलती रहे तो कोई नुकसान नहीं होता है। परन्तु यही इसी बीच हवा चलना रूक जाये तथा आसमान साफ हो तो पाला पड़ता है, जो फसलों के लिए नुकसानदायक होता है।
पाला पड़ने के लक्षण, पाला का पूर्वानुमान
पाला पड़ने के लक्षण सबसे पहले आक (अकौआ) इत्यादि वनस्पतियों पर दिखाई देते हैं। पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां एवं फूल झुलसे हुए दिखाई देते है। एवं बाद में झड़ जाते हैं। यहां तक कि अधपके फल सिकुड़ जाते है। फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते हैं एवं बन रहे दाने सिकुड़ जाते है। दाने कम भार के एवं पतले हो जाते है रबी फसलों में फूल आने एवं बालियां व फलियां आने व उनके विकसित होते समय पाला पडने की सर्वाधिक संभावनाएं रहती है।
पाला से फसल बचाने के लिए यह उपाय अपनाएँ
जिस रात पाला पडने की सम्भावना हो, उस रात 12 से 2 बजे के आसपास खेत के उत्तरी पश्चिमी दिशा से आने वाली ठंडी हवा की दिशा में खेतों के किनारे पर बोई हुई फसल के आसपास मेड़ों पर रात्रि में कूड़ा कचरा या अन्य व्यर्थ घास फूल जला कर धुआं करना चाहिये। खेत में धुआं पहुँचने पर वातावरण में गर्मी आ जाती है, इससे पाले का असर कम पड़ता है। मेड़ पर 10 से 20 फीट के अंतराल से कूड़े करकट का ढेर लगाकर धुआं करना उपयोगी रहता है। जब पाला पडने की संभावना हो तब खेत में सिंचाई करनी चाहिये। नमीयुक्त जमीन में काफी देरी तक गर्मी रहती है तथा भूमि का तापक्रम एकदम कम नहीं होता है। इस प्रकार पर्याप्त नमी होने पर शीतलहर व पाले से नुकसान की सम्भावना कम रहती है। वैज्ञानिकों के अनुसार सर्दी में फसल में सिंचाई करने से 0.5 डिग्री से 2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ जाता है।
पौध शालाओं में यह उपाय कारगर
पौधशालाओं के पौधों एवं सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों व नगदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिए फसलों को टाट, पॉलीथिन अथवा भूसे से ढक दें। वायुरोधी टटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानि उत्तर पश्चिम की तरफ बांधना चाहिए। नर्सरी किचन गार्डन एवं कीमती फसल वाले खेतों में उत्तर पश्चिम की तरफ टाटियां बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगायें तथा दिन में इन्हें हटा दें।
फसलों में गंधक का छिड़काव भी उपयोगी
जिन दिनों पाला पडने की सम्भवना हों उन दिनों फसलों पर गंधक के तेजाब के 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिये। इसके लिए एक लीटर गंधक के तेजाब को 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर क्षेत्र में प्लास्टिक के स्प्रेयर से छिड़कें। ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगे। छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की संभावना बनी रहे तो गंधक के तेजाब को 15 से 15 दिन के अन्तर से दोहराते रहें।
सरसों, गेहूं चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गंधक के तेजाब का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में लौह तत्व की जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है, जो पौधों में रोग रोधिता बढ़ाने में एवं फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती है। इन उपायों का उपयोग कर किसान भाई पाले से होने वाले नुकसान से बच सकते हैं।
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