SHATTILA EKADASHI - पौराणिक कथा, मुहूर्त तारीख समय और पूजा विधि

भारतीय पंचांग के अनुसार 1 वर्ष में 24 बार एकादशी तिथि आती है। प्रत्येक एकादशी का विशेष महत्व होता है। यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है और एकादशी का व्रत जीवन में संकटों से मुक्ति, कल्याण, सफलता, वृद्धावस्था में स्वर्ग जैसा आनंद और मृत्यु के पश्चात मोक्ष एवं बैकुंठ में स्थान का माध्यम माना जाता है। माघ मास में कृष्ण पक्ष की 11वीं तिथि को षट्तिला एकादशी कहा जाता है। चलिए, इसके बारे में सभी दुर्लभ बातें जानते हैं। 

षट्तिला एकादशी की तारीख एवं मुहूर्त समय

  1. माघ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि आरम्भ: 24 जनवरी, सायं 07 बजकर 25 मिनट से 
  2. माघ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त: 25 जनवरी , रात्रि 08 बजकर 31 मिनट पर 
  3. उदयातिथि के अनुसार 25 जनवरी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा। 
  4. ब्रह्म मुहूर्त - 05:36 AM – 06:24 AM 
  5. अभिजीत मुहूर्त - 12:17 PM – 01:00 PM 

पूजा सामग्री की लिस्ट 

  1. भगवान श्री लक्ष्मी नारायण का चित्र (यदि प्रतिमा नहीं है तो)
  2. धूप, दीप
  3. फूल, फल
  4. रोली, चंदन
  5. अक्षत, नैवेद्य
  6. तुलसी के पत्ते
  7. तिल एवं जल

षट्तिला एकादशी का व्रत-विधि

  1. प्रातःकाल स्नान करके व्रत का संकल्प लें। 
  2. विष्णु जी की मूर्ति या चित्र को स्नान कराएं और उन्हें नए वस्त्र पहनाएं। 
  3. फिर उन्हें फूल, फल, धूप, दीप आदि अर्पित करें। 
  4. विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
  5. भगवान विष्णु को तिल अर्पित करें।
  6. पूरी रात भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करें।
  7. द्वादशी तिथि को जरूरतमंदों एवं ब्राह्मणों को तिल से बने हुए व्यंजन और तिल का दान करें। 
  8. व्रत: इस दिन उपवास रखें और केवल फलाहार करें। तिल से बने पदार्थों का सेवन करें।
  9. यदि उपवास रखना संभव न हो तो एक समय भोजन करें। 
  10. झूठ बोलना, चोरी करना, क्रोध करना निषेध है।

षट्तिला एकादशी की पौराणिक कथा 

प्राचीन काल में, एक ब्राह्मण महिला भगवान विष्णु की परम भक्त थी। वह व्रत-उपवास और पूजा-पाठ में लीन रहती थी। इसके कारण उसके घर धन-धान्य से भरे हुए थे परंतु, वह ब्राह्मण महिला दान-पुण्य नहीं करती थी। इसके कारण ब्राह्मण महिला का, वृद्धावस्था में स्वर्ग जैसा आनंद और मृत्यु के पश्चात मोक्ष का अधिकार सुनिश्चित नहीं हो पा रहा था। ब्राह्मण महिला की भक्ति को सफल बनाने के लिए भगवान विष्णु ने एक लीला रची। एक साधु का रूप धारण करके ब्राह्मण महिला के द्वार पर पहुंचे और भोजन मांगा। ब्राह्मण महिला ने साधु के रूप में आए भगवान विष्णु को भोजन नहीं दिया बल्कि मिट्टी का एक पिंड दे दिया। 

साधु महात्मा ने उस ब्राह्मण महिला को समझाया कि, भक्ति की सफलता के लिए अपनी क्षमता के अनुसार दान करना भी अनिवार्य है परंतु ब्राह्मण महिला ने साधु की बात पर विश्वास नहीं किया। कुछ समय बाद लोगों ने ब्राह्मण से परामर्श और मार्गदर्शन बंद कर दिया। इसके कारण दक्षिणा प्राप्त होना बंद हो गई। शीघ्र ही घर में संचित सारा धन समाप्त हो गया। भूख-प्यास से व्याकुल ब्राह्मण महिला जब इसका कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के ध्यान में बैठी तो, उन्हीं साधु महात्मा के दर्शन हुए, जो भोजन मांगने के लिए आए थे। साधु महात्मा ने उसे षट्तिला एकादशी का व्रत करने और इस दिन क्षमता के अनुसार तिल का दान करने से, भगवान श्री हरि विष्णु की कृपा पहले की तरह प्राप्त होने लगेगी। साधु महात्मा ने बताया कि, इस व्रत में तिल का उपयोग छह प्रकार से करना चाहिए – तिल स्नान, तिल का उबटन, तिल से हवन, तिल का दान, तिल का भोजन, और तिल का जल अर्पण।

ध्यान से संपन्न होने के बाद ब्राह्मण महिला ने विधिपूर्वक षट्तिला एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसका सारा कष्ट दूर हो गया और उसे धन-धान्य की प्राप्ति हुई। इस व्रत के प्रभाव से ब्राह्मण दंपति को जीवन में सभी प्रकार के उचित भौतिक सुख और आध्यात्मिक शांति दोनों की प्राप्ति हुई तथा मृत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्त हुआ। 

कथा संपन्न हो जाने के बाद तिल का हवन करें, तत्पश्चात धूप-दीप, कपूर से भगवान विष्णु की आरती करें। 
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे, ॐ जय जगदीश हरे।

जो ध्यावे फल पावे, 
दुःख बिन से मन का, स्वामी दुख बिन से मन का।
सुख सम्पति घर आवे, सुख सम्पति घर आवे
कष्ट मिटे तन का, ॐ जय जगदीश हरे।

मात पिता तुम मेरे,
शरण गहूं किसकी, स्वामी शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और ना दूजा, तुम बिन और ना दूजा
आस करूँ जिसकी, ॐ जय जगदीश हरे।

तुम पूरण परमात्मा,
तुम अंतरियामी, स्वामी तुम अंतरियामी।
पार ब्रह्म परमेश्वर, पार ब्रह्म परमेश्वर।
तुम सबके स्वामी, ॐ जय जगदीश हरे।

तुम करुणा के सागर,
तुम पालन करता, स्वामी तुम पालन करता।
मैं मूरख खलकामी, मैं सेवक तुम स्वामी।
कृपा करो भर्ता, ॐ जय जगदीश हरे।

तुम हो एक अगोचर, 
सबके प्राण पति, स्वामी सबके प्राण पति।
किस विध मिलु दयामय, किस विध मिलु दयामय।
तुम को मैं कुमति, ॐ जय जगदीश हरे। 

दीन बन्धु दुःख हर्ता,
ठाकुर तुम मेरे, स्वामी रक्षक तुम मेरे।
अपने हाथ उठाओ, अपनी शरण लगाओ,
द्वार पड़ा तेरे, ॐ जय जगदीश हरे।

विषय-विकार मिटाओ, 
पाप हरो देवा, स्वामी पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ।
सन्तन की सेवा, ॐ जय जगदीश हरे।

ओम जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त ज़नो के संकट, दास ज़नो के संकट,
क्षण में दूर करे, ॐ जय जगदीश हरे। 

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