भविष्य में पृथ्वी का क्या हाल हो जाएगा, शुक्र के ताजा अध्ययन से पता चला - Space Science NEWS

पूरी दुनिया में बहुत तेजी से इंफ्रास्ट्रक्चर के काम चल रहे हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि, दुनिया भर में हर रोज भारी भरकम मशीनों द्वारा कितने पहाड़ काट दिए जाते हैं और जमीन में कितने गड्ढे कर दिए जाते हैं। शुक्र ग्रह के ताजा अध्ययन से पता चला कि वहां पर लाखों साल पहले शायद कुछ ऐसा ही हुआ होगा। इसके बाद वहां पर इतनी सारी गैस निकली कि पूरा शुक्र ग्रह एक ग्रीन हाउस चैंबर बन गया और वहां पर सभी प्रकार का जीवन समाप्त हो गया। 

शुक्र ग्रह के बारे में डॉ. मैट वेलर की रिसर्च

यूनिवर्सिटीज़ स्पेस रिसर्च एसोसिएशन (USRA) के लूनर एंड प्लेनेटरी इंस्टीट्यूट (LPI) में उरे फेलो (Urey Fellow) के रूप में एक महत्वपूर्ण रिसर्च पूरी करने के बाद डॉ. मैट वेलर ने बताया कि, वर्तमान में शुक्र ग्रह plate tectonics पर काम नहीं करता जबकि पृथ्वी plate tectonics पर काम करती है। डॉ मेट बताते हैं कि, शुक्र के वर्तमान में एक बेहद घने वातावरण से घिरा हुआ है। वहां extreme greenhouse conditions है। इसके कारण वहां पर पानी (liquid water) और जीवन असंभव हो गया है। डॉ. वेलर की रिसर्च Science Advances पत्रिका में प्रकाशित हुई है। 

Sophisticated computational models के माध्यम से डॉक्टर वेलर ने बताया कि, लिथोस्फीयर (lithosphere) में हुई गड़बड़ियों और लाखों सालों तक बड़े पैमाने पर गैस उत्सर्जन के कारण शुक्र ग्रह चरम ग्रीन हाउस ग्रह में बदल गया। उन्होंने बताया कि, लाखों साल पहले शुक्र भी पृथ्वी के समान था परंतु वर्तमान में पृथ्वी से लगभग 90 गुना ज्यादा घना वातावरण है। उन्होंने बताया कि शुक्र ग्रह का इतिहास, इस बात की चेतावनी देता है कि, गतिशील भूवैज्ञानिक प्रक्रियाएं किस प्रकार पूरे ग्रह का भविष्य बदल सकती है। 

निष्कर्ष:-
डॉ. मैट वेलर की रिसर्च रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि यदि किसी भी ग्रह की प्रकृति में किसी भी प्रकार से कोई परिवर्तन होता है तो इसके कारण उस ग्रह में बड़ा बदलाव आने की संभावना बन जाती है और जैसा कि शुक्र ग्रह के साथ में हुआ है, पूरे ग्रहों की पहचान ही बदल जाती है। हमें ध्यान देना होगा कि पृथ्वी पर नियमित रूप से कितनी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हो रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर और डेवलपमेंट के नाम पर हम पृथ्वी की प्रकृति के साथ कितनी छेड़छाड़ कर रहे हैं और क्या यही विकास, पृथ्वी पर जीवन के समाप्त हो जाने का कारण बनेगा। 

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