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SUPREME COURT - सरकारी ऑफिस में दी गई जातिसूचक गाली, एट्रोसिटी एक्ट के तहत अपराध नहीं

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने Scheduled Caste and Scheduled Tribe (Prevention of Atrocities) Act, 1989 के तहत दर्ज की गई एक मामले को इस आधार पर खारिज कर दिया, कि जब आरोपी द्वारा फरियादी को जाति सूचक गाली दी गई, तब कोई तीसरा व्यक्ति उपस्थित नहीं था। 

SCST ACT, सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण जजमेंट

सर्वोच्च न्यायालय के विद्वान न्यायमूर्ति बी आर गवई और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की संयुक्त पीठ ने मामले की सुनवाई। कोर्ट को बताया गया कि, सितंबर 2021 में जमीन के पट्टा को लेकर विवाद हुआ था। आरोपीय अधिकारी द्वारा शिकायत करने वाले व्यक्ति को ऑफिस के अंदर जातिसूचक शब्द से संबोधित किया गया। इस कारण अधिकारी के खिलाफ SCST ACT के तहत मामला दर्ज किया गया। अधिकारी ने मद्रास हाई कोर्ट में, उसके खिलाफ दर्ज किए गए मामले को चुनौती दी परंतु हाई कोर्ट ने अधिकारी की याचिका को खारिज कर दिया था। 

सरकारी कार्यालय में अपमान, सार्वजनिक अपमान नहीं

इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। दोनों विद्वान न्यायमूर्ति द्वारा अपने जजमेंट में स्पष्ट रूप से कहा गया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा 3-एक-आर के तहत अपराध कब माना जाएगा जब सार्वजनिक स्थान पर जाति सूचक गाली दी गई हो। जजमेंट में स्पष्ट किया गया कि, घटना स्थल एक शासकीय कार्यालय का कमरा था। जहां पर अधिकारी और आवेदक के अलावा कार्यालय के कुछ कर्मचारी मौजूद थे। यह सार्वजनिक स्थान नहीं था। इसलिए सरकारी अधिकारी के खिलाफ दर्ज किया गया मामला खारिज किया जाता है। 

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