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Amazing facts - भगवान शिव की जटाओं में पंचमी का चंद्रमा क्यों होता है, पूर्णिमा का क्यों नहीं

हम सब जानते हैं की अमावस्या का चांद शून्य के समान और पूर्णिमा का चांद सबसे बलवान होता है। भगवान शिव चाहते तो पूर्णिमा के चांद को अपनी जटाओं में मुकुट की तरह पहन सकते थे। माथे पर त्रिपुंड के बीच में बिंदी की तरह लगा सकते थे, फिर क्या कारण है कि उन्होंने पंचमी के चंद्रमा को अपनी जटाओं में सुशोभित किया। चलिए इसके पीछे छुपे हुए आश्चर्यजनक तथ्य को जानते हैं। 

सबसे पहले जीवन के लिए शिव का महत्व 

शिव महापुराण सहित कई पुराणों में स्पष्ट उल्लेख है कि भगवान शिव ने पृथ्वी पर जीवन की रक्षा के लिए समुद्र मंथन से निकले विश्व को अपने कंठ में धारण किया। इसके अलावा पृथ्वी पर जीवन के लिए जो कुछ भी विषाक्त है, वह सब कुछ (सभी प्रकार की जहरीले फल और सावन के महीने में दूध) शिवलिंग पर अर्पित कर दिया जाता है। अर्थात आज भी भगवान शिव के नाम पर पूजा जाने वाला पत्थर, प्रकृति में मौजूद प्वाइजन को डाइल्यूट करने का काम करता है। इसीलिए शिवलिंग पर नियमित रूप से जल का अभिषेक किया जाता है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि पृथ्वी पर जीवन के लिए शिव अत्यंत महत्वपूर्ण है। 

दूसरे नंबर पर जीवन के लिए चंद्रमा का महत्व

यह भी हम सब जानते हैं कि जब तक चंद्रमा का अस्तित्व नहीं था तब तक पृथ्वी पर जीवन का संचालन भी नहीं था। चंद्रमा के कारण ही समुद्र में ज्वार भाटा आता है। ज्वार भाटा के कारण ही समुद्र की ऑक्सीजन पृथ्वी के कोने-कोने तक पहुंच पाती है। ज्वार-भाटा के कारण हवा चलती है। और यह भी प्रमाणित हो गया है कि चंद्रमा के कारण ही मानव के शरीर में मौजूद जल तत्व में हलचल होती है। यानी चंद्रमा के कारण ही पृथ्वी पर जीवन का संचालन होता है। जीवन आगे बढ़ता है यदि एक दिन बदलता है। यही कारण है कि कैलेंडर की तारीख रात में 12:00 बजे बदलती है। जबकि दिन की शुरुआत तो सूर्योदय से होती है।

अब पंचमी के चंद्रमा का महत्व

यह निर्विवाद है कि पूर्णिमा का चंद्रमा सबसे पावरफुल होता है लेकिन अमावस्या से लेकर पूर्णिमा तक सिर्फ पंचमी तिथि एकमात्र ऐसी तिथि है जब चंद्रमा के कारण पृथ्वी पर, पर्यावरण में मौजूद विष यानी जहरीले तत्व का प्रभाव लगभग शून्य हो जाता है। इसीलिए माता सरस्वती ने प्रकृति में रंग भरने के लिए पंचमी तिथि का निर्धारण किया था। जिसे हम बसंत पंचमी के नाम से जानते हैं। भारत के सभी साधु संत ध्यान, योग, साधना, तपस्या, सिद्धि, अपने इष्ट से साक्षात्कार के लिए पंचमी तिथि का निर्धारण करते हैं। पंचमी एकमात्र ऐसी तिथि है जब पृथ्वी पर मौजूद प्रकृति में कोई किसी को नुकसान नहीं पहुंचता। सब कुछ आनंद में होता है। 

Why is there a Panchami moon in the matted locks of Lord Shiva?

यही कारण है कि भगवान शिव अपनी जटाओं में पंचमी के चंद्रमा को धारण करते हैं। वह संदेश देते हैं कि, निश्चिंत रहिए और आनंद में रहिए, क्योंकि पृथ्वी पर मौजूद समस्त विषाक्त पदार्थों को मैंने ग्रहण कर लिया है और यदि कहीं कोई पदार्थ रह गया है तो पंचमी के चंद्रमा के कारण उसका प्रभाव शून्य हो जाएगा। यदि आप भी पंचमी के चंद्रमा की भांति पृथ्वी और प्रकृति के लिए उपयोगी होते हैं। लोगों के लिए आनंद का कारण बनते हैं। एक भय मुक्त समाज बनाते हैं तो आप भी शिव हो सकते हैं। 

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