सोचिए, अगर हम तेजी से बढ़ने वाले पौधे उगाएं, उन्हें जलाएं, और निकलने वाला CO₂ पकड़कर स्टोर कर दें, क्या इससे ग्लोबल वॉर्मिंग रुक सकती है? इसी विचार पर आधारित है BECCS (Bioenergy with Carbon Capture and Storage) तकनीक। लेकिन एक नई रिसर्च ने इस आइडिया पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
क्या कहती है स्टडी?
Potsdam Institute for Climate Impact Research (PIK) की नई रिपोर्ट बताती है कि अगर हम खेती योग्य जमीन से बाहर ‘क्लाइमेट प्लांटेशन’ (BECCS) लगाते हैं, तो इससे पृथ्वी की जैव विविधता और इकोसिस्टम को गंभीर खतरा हो सकता है। पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के अनुसार 2050 तक, ऐसी प्लांटेशंस से सिर्फ 200 मिलियन टन CO₂ हटाया जा सकता है, जो जलवायु मॉडल में किए गए दावों से बहुत कम है।
BECCS को रोकने वाली चुनौतियाँ
BECCS तकनीक का पूरा प्रभाव समझने के लिए वैज्ञानिकों ने प्लैनेटरी बाउंड्रीज़ यानी पृथ्वी की सहनशक्ति के पैमानों का इस्तेमाल किया। ये तय करते हैं कि हम कितना नाइट्रोजन उर्वरकों में डाल सकते हैं, कितने जंगल काट सकते हैं, कितनी ताज़ा पानी की खपत कर सकते हैं, और कितनी जैव विविधता खो सकते हैं।
स्टडी के मुताबिक, इन चार कारकों की वजह से BECCS की क्षमता 93% तक कम हो जाती है! मतलब, ये तकनीक जलवायु संकट का हल नहीं, बल्कि एक और समस्या बन सकती है।
तो फिर हल क्या है?
- सबसे ज़रूरी है ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को जल्द से जल्द कम करना।
- कम मीट खाना – शाकाहारी आहार से कृषि भूमि बचेगी, जिससे जलवायु प्लांटेशंस के लिए जगह बन सकती है।
- दूसरी तकनीकों पर ज़ोर देना – जैसे डायरेक्ट एयर कैप्चर (DAC) और मिनरल वीदरिंग।
आज यह रिपोर्ट क्यों अहम है?
2025 में हम पहले ही 1.5°C तापमान सीमा पार कर चुके हैं। दुनिया जलवायु आपातकाल से जूझ रही है और हमें ठोस कदम उठाने की जरूरत है। अगर नीतियां BECCS पर ही निर्भर रहीं, तो हम जलवायु संकट से निपटने का मौका खो देंगे।
निष्कर्ष
BECCS को जलवायु समाधान के तौर पर पेश किया जा रहा था, लेकिन यह तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक हम बाकी पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाए बिना इसे अपनाने का तरीका न खोज लें। इस स्टडी का सीधा संदेश है - जलवायु परिवर्तन रोकने का सबसे कारगर तरीका है उत्सर्जन को कम करना, न कि असंभव तकनीकों पर निर्भर रहना।