Karmchari news - आपराधिक मामले वाले कर्मचारी को वेतन का अधिकार है या नहीं, हाई कोर्ट जजमेंट

केंद्रीय कर्मचारी एवं भारत के विभिन्न राज्यों में काम करने वाले शासकीय कर्मचारियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण समाचार है। एक तरफ राजस्थान हाई कोर्ट और दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट की ओर से दो महत्वपूर्ण जजमेंट आए हैं। दोनों जजमेंट शासकीय कर्मचारी के खिलाफ आपराधिक मामले से संबंधित है और निर्धारित किया गया है कि, किस परिस्थिति में कर्मचारी को वेतन का अधिकार होता है और किस परिस्थिति में नहीं। 

जेल में बंद कर्मचारी को वेतन का अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

याचिकाकर्ता शिवाकर सिंह बिजली विभाग, हाथरस में कार्यरत थे। इस दौरान एक उपभोक्ता ने, उन पर कनेक्शन के लिए रिश्वत मांगने का आरोप लगाते हुए ​शिकायत की। भ्रष्टाचार निवारण अ​धिनियम की​ धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया। इसके चलते उन्हें 23 जनवरी 15 से 18 दिसंबर 18 तक जेल में रहना पड़ा। प्रतिवादी विभाग (बिजली विभाग) ने जेल अव​धि के दौरान का वेतन, 'काम नहीं तो वेतन नहीं' के सिद्धांत पर देने से इन्कार कर दिया। इससे नाराज होकर याची ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दा​खिल की।

न्यायमूर्ति अजय भनोट की पीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि काम नहीं तो वेतन नहीं के सिद्धांत में छूट दी जाती है तो राज्य के खजाने का बेवजह नुकसान होगा। काम नहीं तो वेतन नहीं के सिद्धांत में तभी छूट दी जाती है जब नियोक्ता किसी कर्मचारी को काम करने से रोकता है। न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी। 

FIR के कारण सस्पेंड कर्मचारी को वेतन का अधिकार: राजस्थान हाई कोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने नाथू लाल बनाम राजस्थान राज्य और अन्य मामले में महत्वपूर्ण जजमेंट दिया है। याचिकाकर्ता जूनियर इंजीनियर के पद पर काम कर रहा था। उसे एक आपराधिक मामले के कारण, राजस्थान सिविल सेवा नियम, 1958 के तहत 2002 से 2009 तक निलंबित कर दिया गया था। सन 2009 में जब न्यायालय ने उसे दोष मुक्त किया तो शासन ने उसकी सेवा बहाल कर दी, लेकिन निलंबन अवधि का वेतन नहीं दिया। राजस्थान सरकार ने कर्मचारी को दोष मुक्त किए जाने के, कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की, जो 2011 में खारिज कर दी गई। इसके बाद पीड़ित कर्मचारी ने अपने वेतन की मांग के लिए उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की। जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ ने दोनों पक्षों की सुनवाई पूरी होने के बाद अपने जजमेंट में कहा कि, शासन अपने कर्मचारी को अपराधी साबित करने में दो बार नाकाम रहा। उसे निलंबित करके काम करने से रोका गया। इसलिए न केवल कर्मचारी को निलंबन अवधि का वेतन प्राप्त करने का अधिकार है बल्कि, रुक गए वेतन पर ब्याज भी दिया जाए।

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