MP NEWS - अतिथि विद्वान, सुप्रीम कोर्ट का फैसला पढ़कर डिप्रेशन से बाहर निकले, आंखों में उम्मीद

मध्य प्रदेश के सरकारी कॉलेज में सहायक प्राध्यापक के नियमित पद के विरुद्ध अस्थाई कर्मचारियों के तौर पर काम कर रहे अतिथि विद्वानों की आंखों में एक बार फिर से उम्मीद दिखाई दे रही है। भोपाल समाचार डॉट कॉम न्यूज़ पोर्टल में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक जजमेंट की खबर पढ़ने के बाद अतिथि विद्वान एवं संविदा कर्मचारी एकजुट होकर सरकार की ओर देख रहे हैं। 

गिग इकोनॉमी, शासन व्यवस्था के लिए हानिकारक: सुप्रीम कोर्ट

सरकारी संस्थानों में अस्थाई कर्मचारियों के शोषण पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है। जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी बराले की पीठ ने कहा कि अस्थाई एवं अनुबंधों का दुरुपयोग सरकारी संस्थानों में आम हो गया है। यह गिग इकोनॉमी, शासन व्यवस्था के लिए हानिकारक है। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी गाजियाबाद नगर निगम के अस्थाई कर्मचारियों के मामले में सुनवाई कर रहा था। वहीं कोर्ट ने कहा कि कोई अतिथि दो दिन चार दिन होता है वर्षों दशकों तक अतिथि बनाकर रखना अनुचित एवं असंवैधानिक है। 

इस अहम फैसले को लेकर मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग में रिक्त पदों के विरुद्ध वर्षों से काम कर रहे अतिथि विद्वानों एवं विभिन्न विभागों में संविदा कर्मचारियों में खुशी देखी गई है। वहीं ये संगठन सरकार से मांग कर रहे हैं कि मानवीयता के साथ रिक्त पदों में सेवा करने वाले कर्मचारियों को स्थाई समायोजन करे।

विद्वानों को 25 सालों तक अतिथि बनाकर रखना अन्यायपूर्ण है: महासंघ

उच्च शिक्षा विभाग में रिक्त पदों के विरुद्ध पिछले दो दशकों से सेवा करने वाले अतिथि विद्वानों ने सरकार से मांग की है कि उनको स्थाई समायोजन करने की तरफ कदम उठाए। महासंघ के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ अविनाश मिश्रा ने बयान जारी करते हुए बताया कि माननीय उच्चतम न्यायालय का ये ऐतिहासिक निर्णय रहा जो उन्होंने किया है। सरकारों को इस तरफ जरूर ध्यान देना चाहिए। अतिथि विद्वानों को अनुभव योग्यता के आधार पर स्थाई समायोजन करने से कई समस्याओं का समाधान निकल जाएगा नई शिक्षा नीति में। अतिथि कोई 2 दिन 4 दिन होता है यहां तो दो दशकों से ज्यादा समय से अतिथि बनाकर रखी है सरकार जो कि उच्च शिक्षा विभाग में शोभा नहीं देता।

हरियाणा सरकार अतिथि विद्वानों का कर चुकी है स्थायित्व

वहीं हरियाणा की भाजपा सरकार ने अतिथि विद्वानों को स्थाई कर दी है।पिछले दो माह पहले विधानसभा में प्रस्ताव लाकर अनुभव योग्यता के आधार पर उच्च शिक्षा विभाग में रिक्त पदों के विरुद्ध सेवा कर रहे अतिथि विद्वानों को स्थाई किया गया है।सैनी सरकार के इस ऐतिहासिक निर्णय की हर तरफ प्रशंसा हो रही है। वहीं अब मध्य प्रदेश सरकार के मुखिया डॉ मोहन यादव एवं उच्च शिक्षा मंत्री परमार पर अतिथि विद्वानों की निगाहे टिकी हुई है एवं इनका भविष्य सुरक्षा मंत्री मुख्यमंत्री के निर्णय पर निर्भर करता है।

डॉ देवराज सिंह,प्रदेश अध्यक्ष अतिथि विद्वान महासंघ का बयान

माननीय उच्चतम न्यायालय का ये निर्णय काबिले तारीफ़ है,मध्य प्रदेश सरकार को तत्काल निर्णय लेने की आवश्यकता है।रिक्त पदों में सेवा करने वाले अतिथि विद्वानों एवं संविदा कर्मचारियों को स्थाई समायोजन किया जाना चाहिए जिससे विद्वान एवं संविदा कर्मचारियों को भी न्याय मिल सके।
 

डॉ आशीष पांडेय, शिक्षाविद एवं सामाजिक कार्यकर्ता का बयान

मुख्यमंत्री जी,उच्च शिक्षा मंत्री जी,विभिन्न विभागों के मंत्रियों एवं शीर्ष अधिकारियों को माननीय उच्चतम न्यायालय के अहम फैसले का सम्मान करते हुए रिक्त पदों में सेवा करने वाले अतिथि विद्वानों एवं विभिन्न विभागों में काम करने वाले संविदा कर्मचारियों को स्थाई समायोजन करना चाहिए।इस फैसले को पूरे देश में लागू करना चाहिए हर इंसान उच्चतम न्यायालय नहीं जा सकता कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।इसलिए संवेदनशीलता के साथ अस्थाई कर्मचारियों को स्थाई करना चाहिए,यही न्याय होगा।

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