बड़ी गजब की लीला है, गुलाब के गुलाबीपन की, कभी सब्जी भाजी का थैला इतना ज्यादा वजनदार हो जाता है कि जिम्मेदारियां "वेलेंटाइन के गुलाब" पर भारी पड़ जाती हैं, और वो कहां सच को छुपा ले जाती हैं जो किसी मनचले को एक गुलाब के बदले अपने पति और बच्चों को छोड़कर भी चली जाती हैं, तो कहीं वो शख्स भी एक गुलाब देने अपनी वाम संगिनी को दरकिनार कर किसी चिल हनीट्रेपर के साथ बिस्तर में अपने नाम की सिलवटें बना देते हैं, ये अलग गुलाबीपन का बहकावा है, सच क्या है, गुलाब बहकावा है या अपने से बेवफाई का कोई बेरंग सा किरदार निभाने का उसूल।
प्रेम के निर्लिप्त पंचनामे से अलिखित लव की कहानी में...
कभी जो दिल किसी की कच्ची रोटियों का दीवाना हो जाता है, वही इंसान किसी दरमियान घर के आंगन की बेशकीमती खुशी को भी कांटे की तरह निकाल के एक तरफ फेक देता है, पर देर नहीं होती कि कहीं एक वेलेंटाइन निपटाकर आए एक दो बाकी रह जाते हैं गुलाब देने को... यानी किसी-किसी का काम तो एक दो गुलाब देने से कहां चल पाता है। और किसी को तो धनियां मिर्ची से लेकर न जाने कितनी जिम्मेदारियां ने घेरे रखा होता है कि उसका चॉकलेट डे बच्चे के लिए, प्रपोज डे किसी दिन की उधार डली मिठाई खिलाने के लिए, टेडी बियर डे... से हग डे और प्रेम के निर्लिप्त पंचनामे से अलिखित लव की कहानी में मां बाप और शांत बैठी किसी प्रेम की अनकही शिकायतों से भरी पत्नी के लिए पूरा साल ही बीत जाता है...
क्यों न ऐसा हो जो एक ही शख्स को हर बार...
उनके लिए 14 फरवरी, प्रेम के सप्ताह के लिए कहां आता है। सच कहूं तो हर बार 14 फरवरी का इंतजार जिम्मेदारियों से भरे जीवन में पूरे साल मना लेते हैं, पर उनसे अच्छे होते हैं जो हर बार 14 को साल बदलकर और इंसान बदलकर ये गुलाबी बहकावे को मनाते हैं, हम उनसे तो अच्छे हैं। क्यों न ऐसा हो जो एक ही शख्स को हर बार हर तरीके से अपना प्रेम निभाया जाए। लेखक - डॉ. विवेक तनवे शर्मा, इंदौर मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं। समसामयिक विषयों पर आकर्षित करते हैं।
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