भारत की संसद में बुधवार को बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 पारित हो गया। इसी के साथ प्रस्तावित सभी संशोधन लागू हो गए हैं। यह अधिनियम भारत के सभी बैंक खाता धारकों को प्रभावित करेगा, सरकारी कर्मचारी, प्राइवेट कर्मचारी, व्यापारी, छोटे दुकानदार और पेंशनर्स सब प्रभावित होंगे। इसलिए यह जानना जरूरी है कि इस संशोधन से आपके ऊपर क्या असर पड़ेगा।
बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 किन पांच अधिनियमों को प्रभावित करता है
राज्यसभा में विधेयक पर बहस का जवाब देते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि संशोधन पांच अलग-अलग अधिनियमों को प्रभावित करेंगे, जिससे यह अनूठा हो गया है। उन्होंने कहा, ''यह इसलिए भी अनूठा है क्योंकि आठ टीमों ने संशोधनों पर काम किया, जिससे बजट भाषण के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सभी आवश्यक बदलाव सुनिश्चित हुए। इस संशोधन ने जिन पांच अधिनियमों को प्रभावित किया है उनके नाम इस प्रकार हैं:-
- भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934;
- बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949;
- भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955;
- बैंकिंग कंपनियां (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970; और
- बैंकिंग कंपनियां (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1980
बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 के मुख्य बिंदु
अधिनियम और उसके ऊपर विशेषज्ञों की विभिन्न प्रकार की समीक्षा एवं आलोचना के आधार पर इसके मुख्य बिंदु निम्न हैं:-
सबसे खास बात यह है कि अब एक बैंक अकाउंट में चार नॉमिनी जोड़े जा सकते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं चारों के बीच में हिस्सेदारी भी निर्धारित कर सकते हैं। इससे पहले तक बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 के तहत एक खाते में केवल एक नॉमिनी का प्रावधान था जो खाते की संपूर्ण राशि का उत्तराधिकारी होता था। इसमें सबसे बड़ी प्रॉब्लम तब होती थी जब खाताधारक और नॉमिनी की मृत्यु एक साथ हो जाए।
Substantial Interest
दूसरा महत्वपूर्ण परिवर्तन Substantial Interest को लेकर है। इसके बारे में ज्यादातर बैंक अकाउंट होल्डर नहीं जानते हैं परंतु यह बेहद महत्वपूर्ण है। पहले केवल ₹500000 या बैंक की चुकता पूंजी का 10%, दोनों में से जो भी कम हो, निर्धारित किया गया था और 1968 में यह भी निर्धारित कर दिया गया था कि इसे बदला नहीं जा सकता है। संशोधन में इस सीमा को बढ़ाकर 2 करोड रुपए या बैंक की चिकित्सा पूंजी का 10%, दोनों में से जो भी कम हो वह निर्धारित कर दिया गया है। साथ में यह प्रावधान भी किया गया है कि भारत सरकार सिर्फ एक अधिसूचना के माध्यम से इसमें संशोधन कर सकती है।
सहकारी बैंकों की पॉलिटिक्स
इस संशोधन के बाद सहकारी बैंकों की पॉलिटिक्स भी बदल जाएगी। 1949 के अधिनियम के अनुसार सहकारी बैंकों के डायरेक्टर का अधिकतम कार्यकाल 8 वर्ष होता था। इस संशोधन के बाद 10 वर्ष हो गया है। बैंक के अध्यक्ष के कार्यकाल में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। पहले केंद्रीय सहकारी बैंक के डायरेक्टर को किसी भी अन्य बैंक के बोर्ड में काम करने की अनुमति नहीं थी। संशोधन के पश्चात केंद्रीय सहकारी बैंक के डायरेक्टर राज्य सहकारी बैंक के बोर्ड में काम कर सकते हैं।
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