legal advice - एफआईआर क्या है एवं NCR से क्यों अलग होती है, जानिए

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किसी भी प्रकार का अपराध या अन्य होने की स्थिति में पब्लिक, अपने नजदीकी पुलिस थाने पहुंच जाती है। यहां वह अपनी स्थिति अथवा अपने साथ हुए अन्याय का विवरण बताती है। अपराध के अनुसार पुलिस द्वारा कभी एफआईआर तो कभी NCR दर्ज की जाती है। आईए जानते हैं कि, एफआईआर क्या होती है। इसके बारे में आम नागरिक के अधिकार और पुलिस के कर्तव्य क्या है:-

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 173 की परिभाषा

संज्ञेय अपराध की सूचना थाने के थाना प्रभारी को मौखिक रूप से या इलेक्ट्रॉनिक सूचना (ऑनलाइन शिकायत, एफआईआर) द्वारा की जा सकती है।
A). अगर सूचना मौखिक है, तो तुरंत पुलिस अधिकारी द्वारा लिखित रूप में दर्ज की जाएगी एवं सूचना देने वाले व्यक्ति को पढ़कर सुनाई जाएगी तथा उस पर उसके हस्ताक्षर करवाए जाएंगे।
B). अगर कोई शिकायत इलेक्ट्रॉनिक (ऑनलाइन E-एफआईआर या शिकायत) द्वारा की गई है, तब सूचना देने वाले व्यक्ति को तीन दिन के भीतर बुलाकर हस्ताक्षर करवाने के बाद लिखित रूप में दर्ज की जाएगी।

परन्तु यदि किसी महिला से संबंधित कोई गंभीर अपराध है, जैसे बलात्कार, तेजाब से पीड़ित होना, छेड़छाड़ आदि, तब ऐसे अपराध की एफआईआर महिला पुलिस अधिकारी द्वारा लिखी जाएगी।
यदि पीड़ित महिला निःशक्त है या कोई महिला बलात्कार से मानसिक या शारीरिक रूप से कमजोर हो गई है और वह थाने एफआईआर दर्ज करवाने आने में असमर्थ है, तब पुलिस अधिकारी या तो महिला के निवास पर जाकर रिपोर्ट लिख सकते हैं या जहाँ महिला को उचित लगे वहाँ जाकर, लेकिन ऐसी सूचना की वीडियो फिल्म तैयार की जाएगी और मजिस्ट्रेट ऐसे अपराध की जानकारी तुरंत संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट को देगा। 

एफआईआर दर्ज होने के बाद एफआईआर की एक प्रतिलिपि सूचना देने वाले व्यक्ति को तुरंत निःशुल्क दी जाएगी।

(3). अगर कोई संज्ञेय अपराध सात वर्ष के कारावास या उससे कम तीन वर्ष तक का है, तब थाना प्रभारी एफआईआर दर्ज करने से पहले चौदह दिन की जाँच कर सकता है एवं इसकी अनुमति वह डीएसपी रैंक के पुलिस अधिकारी से लेगा।
4). अगर कोई पुलिस थाना अधिकारी किसी संज्ञेय अपराध की एफआईआर दर्ज नहीं करता है, तब पीड़ित व्यक्ति अपनी शिकायत जिले के पुलिस अधीक्षक को डाक द्वारा या स्वयं उपस्थित होकर कर सकता है।
पुलिस अधीक्षक अगर पीड़ित व्यक्ति की शिकायत से संतुष्ट हो जाता है, तो या तो स्वयं उस अपराध की जाँच करेगा या किसी अन्य पुलिस अधिकारी को उस अपराध की जाँच के लिए नियुक्त करेगा। 

पुलिस अधीक्षक (एसपी) जिस पुलिस अधिकारी को अपराध की जाँच करने के लिए नियुक्त करेगा, उसे वे सभी अधिकार और शक्तियाँ प्राप्त होंगी, जो संबंधित थाने के थाना प्रभारी को थीं, जिसने संज्ञेय अपराध की एफआईआर दर्ज नहीं की थी।

नोट:- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में ऑनलाइन एफआईआर दर्ज करना जोड़ा गया है एवं संज्ञेय अपराध, जिसकी सजा सात वर्ष से अधिक न हो, उसमें पुलिस थाना अधिकारी जाँच करके एफआईआर दर्ज कर सकता है।

आम लोगों के लिए सामान्य शब्दों में जानकारी: FIR एवं NCR

▪︎ पुलिस द्वारा संज्ञेय (गंभीर) अपराध में एफआईआर दर्ज की जाती है एवं आपको जानना जरूरी होगा कि जब पुलिस अधिकारी द्वारा आपकी रिपोर्ट दर्ज हो गई है, तो उसने FIR (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173(1)) लिखा होगा, जिसे आप आम भाषा में सरकारी रिपोर्ट भी कह सकते हैं।
▪︎ पुलिस द्वारा असंज्ञेय (कम गंभीर) अपराध की रिपोर्ट लिखी जाती है, उसे NCR कहते हैं, जिसमें भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 174 लिखा होगा।
NCR असंज्ञेय अपराध की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पीड़ित व्यक्ति को संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होना होगा। यहाँ बहुत से लोग NCR दर्ज होने के बाद पुलिस अधिकारी की कार्यवाही का इंतजार करते हैं, जबकि NCR में पुलिस थाना अधिकारी बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के कोई कार्यवाही नहीं करता है। लेखक✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) 

डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें। 

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