मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर फुल बेंच ने शासकीय कर्मचारियों के मामले में बड़ा डिसीजन दिया है। इसके कारण मध्य प्रदेश के शासकीय कर्मचारियों में चिंता की स्थिति बन गई है। हाई कोर्ट का कहना है कि यदि कोई कर्मचारी पदोन्नति से इनकार करता है तो फिर उसका क्रमोन्नति एवं समयमान वेतनमान का अधिकार अपने आप समाप्त हो जाता है। इससे पहले तक पदोन्नति और क्रमोन्नति एवं समयमान वेतनमान, दोनों अलग-अलग विषय होते थे। कर्मचारी स्वतंत्रता पूर्वक पदोन्नति से इनकार कर सकते थे।
लोकेन्द्र अग्रवाल मामले में हाई कोर्ट ने पदोन्नति के बिना क्रमोन्नति को सही बताया था
इंदौर खंडपीठ में विचाराधीन इस मामले में यह सवाल उठाया गया था कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी पदोन्नति नहीं लेना चाहता, तो क्या उसे क्रमोन्नति और समयमान वेतनमान का लाभ मिलना चाहिए अथवा नहीं? पहले हाई कोर्ट ने लोकल फंड ऑडिट विभाग के कर्मचारी लोकेन्द्र अग्रवाल के मामले में यह निर्णय दिया था कि पदोन्नति से इनकार करने के बावजूद कर्मचारी को दी गई क्रमोन्नति वापस नहीं ली जा सकती। इसी तर्क को आधार बनाकर याचिकाकर्ता रमेशचंद्र पेमनिया ने भी अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
फुल बेंच ने फैसला पलट दिया
राज्य शासन की ओर से कोर्ट में तर्क दिया गया कि समयमान वेतनमान और क्रमोन्नति की नीति के तहत यदि कर्मचारी खुद ही पदोन्नति लेने से इनकार करता है, तो उसे किसी भी परिस्थिति में भविष्य में पदोन्नति या वेतनमान की पात्रता नहीं दी जानी चाहिए। इस तर्क को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट की फुल बेंच ने 3 मार्च को फैसला सुनाया। इस बेंच में जस्टिस संजीव सचदेवा, जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस विनय सराफ शामिल थे।
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले में विरोधाभास
अधिवक्ता आनंद अग्रवाल का कहना है कि इस फैसले पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। उनके अनुसार, पदोन्नति और समयमान वेतनमान दोनों अलग-अलग हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही यह फैसला दे दिया है कि प्रमोशन और समयमान वेतनमान अलग-अलग होते हैं। इसलिए, भले ही कर्मचारी प्रमोशन से इनकार कर दे, लेकिन वेतनमान और क्रमोन्नति नहीं रोकी जा सकती। यह आदेश शीर्ष अदालत दे चुकी है।
कुल मिलाकर फिलहाल स्थिति पर जीत हो गई है। इंदौर हाई कोर्ट के इस फैसले के आधार पर मध्य प्रदेश शासन द्वारा पदोन्नति से इनकार करने वाले शासकीय कर्मचारी का समयमान वेतनमान और क्रमोन्नति को रोक दिया जाएगा। जब तक की इस मामले में कोई नया फैसला नहीं आ जाता है तब तक मध्य प्रदेश में सिचुएशन गंभीर बनी रहेगी।
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