बात तो सही है, लेकिन रिकार्ड में नहीं है। सीधे-साधे कलेक्टर को दुर्गा अष्टमी के दिन उनकी अपनी धर्मपत्नी ने जमकर दे मारा। स्थिति कितनी गंभीर हो गई थी, आप सिर्फ इस बात से अनुमान लगा सकते हैं कि, बंगले के स्टाफ को पुलिस बुलानी पड़ी। कप्तान साहब खुद भागे-भागे चले आए। पुलिस की टीम ने साहब को उनकी पत्नी से बचाया। वैसे इस सप्ताह इस तरह की घटनाएं कुछ ज्यादा ही हुई हैं। 2-4 तो वीडियो ही वायरल हो गए।
यह हमारे परिवार का मामला है
खबर पूरे शहर की सुर्खियां बन गई है। एक लोकल अखबार में छाप भी दिया। एक पत्रकार महोदय वर्जन लेने साहब के पास पहुंच गए। साहब भी इतने सीधे-साधे की उन्होंने घटना से इनकार नहीं किया। बड़ी ही ईमानदारी के साथ कहा कि हमारे परिवार का मामला है। हमने कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाई है। अब शुभचिंतकों की चिंताओं ने साहब को चिंता में डाल दिया है। रामनवमी का दिन है। कानून और व्यवस्था की स्थिति को कंट्रोल करना है, और आज के दिन ही आलोचना में आनंद तलाशने वाले कह रहे हैं कि, जो अपने घर की व्यवस्था को कंट्रोल नहीं कर सकता वह पूरे जिले की कानून व्यवस्था को क्या कंट्रोल करेगा।
दंपति के बीच विवाद तो होते ही रहते हैं परंतु ऐसा क्या हो गया था जो पुलिस बुलानी पड़ी। खैर जो भी हो, हम तो केवल इतनी उम्मीद कर सकते हैं कि एक अच्छे अधिकारी के जीवन में कभी भी ऐसी कोई स्थिति नहीं आनी चाहिए, जो उसे उसके निर्धारित कर्तव्य से विचलित करती हो। अच्छे लोग वैसे भी दुनिया में बहुत कम होते हैं। उन्हें सुरक्षित और संरक्षित रखना चाहिए।
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