मध्य प्रदेश पुलिस में 25 साल पुराना भर्ती घोटाला सामने आया है। अमिताभ थियोफिलस (ईसाई) ने खुद को अमिताभ प्रताप सिंह बताया। अपनी जाति गोंड आदिवासी बताई और उसे मध्य प्रदेश पुलिस में सब इंस्पेक्टर बना दिया गया। डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन वाले अधिकारी ने अपनी आंखें बंद कर ली और 25 साल तक एक फर्जी व्यक्ति पुलिस विभाग में काम करता रहा।
2019 में शिकायत भी हुई थी, लेकिन जांच नहीं की
अमिताभ प्रताप सिंह, उर्फ अमिताभ थियोफिलस वर्तमान में बुरहानपुर जिले में पुलिस लाइन में पदस्थ है। एसआई ने 1998-99 में फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाया था और फिर आरक्षण का लाभ लेते हुए पुलिस विभाग में भर्ती हुआ। एसआई अमिताभ सिंह था तो ईसाई समुदाय, पर सभी को राजपूत बनकर परिचय दिया करता था। 2019 में भोपाल निवासी सोनाली दात्रे ने जनजातीय विभाग की तत्कालीन आयुक्त दीपाली रस्तोगी से अमिताभ सिंह के फर्जी जाति प्रमाण पत्र को लेकर शिकायत की थी, पर जांच ठंडे बस्ते में चली गई। विभाग की तरफ से ना ही कोई जांच हुई और ना ही कोई कार्यवाही।
कलेक्टर दीपक कुमार सक्सेना ने कलई खोल दी
9 अक्टूबर 2024 को फिर से अमिताभ सिंह की फर्जी जाति प्रमाण पत्र का मुद्दा उठा। इस बार उसकी शिकायत भोपाल निवासी प्रमिला तिवारी ने आयुक्त जनजातीय ई-रमेश से की। कमिश्नर ट्राइबल ने अमिताभ सिंह के कास्ट सर्टिफिकेट जांच के लिए जबलपुर कलेक्टर दीपक कुमार सक्सेना को फरवरी 2025 में पत्र भेजा, जिसके बाद कलेक्टर के निर्देश पर एसडीएम रघुवीर सिंह मरावी ने जांच रिपोर्ट में खुलासा किया अमिताभ सिंह ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिए पुलिस की नौकरी पाई थी।
पैदा होते ही फर्जीवाड़ा शुरू हो गया था, धर्म क्रिश्चियन - जाति गाेंड
जबलपुर के नेपियर टाउन का रहने वाला अमिताभ थियोफिलस ने 1 जुलाई 1980 को कक्षा पहली में दाखिला लिया था, उस दाखिला पत्र में धर्म क्रिश्चियन एवं जाति एसटी गोंड अंकित है। अर्थात अमिताभ के पैदा होते ही फर्जीवाड़ा शुरू कर दिया गया था। वर्ष 1980 के पहले के गाेंड जनजाति के संबंध में अमिताभ अथवा उसके पूर्वजों के पास कोई भी दस्तावेज नहीं हैं। एसआई ने अपने कथन के दौरान वर्ष 1980 के पूर्व के जाति एवं निवास संबंधी कोई भी दस्तावेज नहीं दिए। जिससे स्पष्ट होता है कि अमिताभ अथवा उसके पूर्वज वर्ष 1950 की स्थिति में तहसील रांझी, जिला जबलपुर में निवासरत नहीं थे। एसडीएम ने अपनी जांच में यह भी पाया कि अमिताभ प्रताप सिंह (थियोफिलस) के रीति रिवाज, संस्कृति गोंड जनजातियों के अनुसार नहीं थे। अमिताभ का दाखिला सेंट पॉल हायर सेकेण्डरी स्कूल 1075 नेपियर टाउन जबलपुर में वर्ष 1 जुलाई 1980 में कक्षा पहली में हुआ था, उक्त दाखिले में धर्म क्रिश्चियन एवं जाति एसटी गाेंड अंकित है।
अमिताभ का कोई भी रिश्तेदार गोंड आदिवासी नहीं
एसडीएम रघुवीर सिंह मरावी ने बताया कि अमिताभ के द्वारा कार्यालय में आकर कथन दिया गया था कि वर्ष 1950 में उनके पूर्वज जबलपुर जिले के आस-पास किसी अन्य जिले में रहते थे, जिसकी जांच करवाई गई तो पता चला कि उनके द्वारा दी गई पूरी जानकारी गलत है। जांच के दौरान अमिताभ के पूर्वजों की जबलपुर जिले में वर्ष 1950 की स्थिति में गोंड जनजाति एवं निवास संबंधी दस्तावेजों की पुष्टि नहीं होती है। उनका कोई भी रिश्तेदार अथवा नातेदार भी गोंड जनजाति का नहीं है।
पिता स्व धीरेंद्र प्रताप सिंह ने साजिश रची थी
एसडीएम ने बताया कि अमिताभ अथवा उसके पिता स्व धीरेंद्र प्रताप सिंह ने सुनियोजित तरीके से जनजाति आरक्षण का लाभ लेने के लिए स्कूल के कक्षा पहली के दाखिला खारिज में गोंड लिखवाया है। अमिताभ के परिवार में कोई भी सदस्य रिश्तेदार अथवा नातेदार गोंड जनजाति का नहीं है। अमिताभ प्रताप सिंह द्वारा दिए गए पते 206 अंकुर अपार्टमेंट जबलपुर में अमिताभ एवं उसके पूर्वज के वर्ष 1950 की स्थिति में निवास की पुष्टि नहीं हो रही है।
अमिताभ ने पिता की साजिश का फायदा उठाया
अमिताभ प्रताप सिंह द्वारा "गोंड" जनजाति का सदस्य नहीं होने के उपरांत भी असत्य जानकारी 1997-98 में "गोंड" जनजाति का प्रमाण पत्र बनवाया है। जांच रिपोर्ट में एसडीएम ने पाया कि अमिताभ क्रिश्चियन धर्म मानता है और उसका जनजातियों की परंपराओं से कोई भी वास्ता नहीं था।
एसडीएम रघुवीर सिंह मरावी ने बिंदुवार जांच की। अमिताभ से लिए गए सारे दस्तावेज, चेक किए गए, जिसमें जाति प्रमाण पत्र फर्जी था। एसडीएम ने बताया कि उसके पूर्वजों का वर्ष 1950 की स्थिति में तहसील रांझी जिला जबलपुर में निवास होना नहीं पाया जाता है। अमिताभ प्रताप सिंह द्वारा असत्य जानकारी प्रस्तुत करते हुए 1997-98 में "गोंड" जनजाति का जाति प्रमाण पत्र बनवाया गया था, अतः अमिताभ प्रताप सिंह का जाति प्रमाण को निरस्त किए जाए तथा उसके खिलाफ विभागीय एवं दण्डात्मक कार्यवाही की जाए।
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