New Research, प्रारंभ में समुद्र नीला नहीं हरा था, पढ़िए ऑक्सीजन गैस कहां बनती है

प्रोफेसर सी.वी. रमन को नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize in Physics) इस बात के लिए मिला था कि उन्होंने साबित किया कि समुद्र नीले रंग के क्यों दिखाई देते हैं। लेकिन अब खुलासा हुआ है कि अरबों वर्ष पहले पृथ्वी का महासागर हरे रंग का दिखाई देता था।  

पृथ्वी पर ऑक्सीजन गैस कहां बनती है

Nature Ecology & Evolution पत्रिका में प्रकाशित एक नई अध्ययन रिपोर्ट में बताया गया है कि लगभग 2.4 अरब वर्ष पहले आर्कियन युग (Archaean Era) में पृथ्वी का समुद्री क्षेत्र हरे रंग का प्रकाश परावर्तित करता था। वैज्ञानिकों ने लंबे समय से सायनोबैक्टीरिया, सूक्ष्म प्रकाश-संश्लेषी जीवों (Photosynthetic Microorganisms), को ग्रेट ऑक्सीजनेशन इवेंट (Great Oxidation Event) का कारण माना है। अर्थात, इन्हीं के कारण पृथ्वी के वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ी और जटिल जीवन (Complex Life) की शुरुआत हो सकी। ये छोटे जीव आज भी हमारे ग्रह के ऑक्सीजन उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्राचीन काल में समुद्र हरा क्यों था, कारण पढ़िए

इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने संख्यात्मक सिमुलेशन (Numerical Simulations) का उपयोग करके प्रारंभिक पृथ्वी के पानी के नीचे के प्रकाश वातावरण (Underwater Light Environment) को पुनर्जनन किया। इससे पता चला कि उस समय महासागर में आयरन की मात्रा बहुत अधिक थी। यह लोहा प्लेट या चट्टान के रूप में नहीं, बल्कि ऑक्सीकृत लोह कणों (oxidised iron particles) के रूप में था, जिन्हें वैज्ञानिक Fe(III) कहते हैं। ये ऑक्सीकृत लोह कण प्रकाश में मौजूद रंगों को फिल्टर कर देते थे। ये मूल रूप से लाल और नीले रंग को अवशोषित करते थे, जिसके कारण हरी रोशनी पानी के अंदर तक पहुँच जाती थी।  

Light Harvesting System

समुद्र के अंदर हरी रोशनी में जीवित रहने के लिए सायनोबैक्टीरिया ने प्रकाश-संग्रहण प्रणाली (Light Harvesting System) विकसित कर ली थी। इसमें फाइकोबिलिन (Phycobilins) नामक रंगद्रव्य, हरे रंग के प्रकाश को अवशोषित करते थे। वैज्ञानिकों ने बताया कि ये फाइकोबिलिसोम्स (Phycobilisomes) समुद्र की ऊपरी सतह पर ऐसी संरचना बनाते थे, जो हरी तरंगदैर्घ्य (Green Wavelengths) के लिए सौर पैनल की तरह काम करती थी। ये संरचनाएँ छोटे-छोटे सौर ऊर्जा संयंत्रों की तरह थीं।

Green-Light Adaptation

अपने अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत की पुष्टि के लिए आधुनिक सायनोबैक्टीरिया को आनुवंशिक रूप से संशोधित (genetically engineered) किया ताकि वे फाइकोएरिथ्रोबिलिन (phycoerythrobilin) नामक हरे प्रकाश को अवशोषित करने वाले रंगद्रव्य का उपयोग करें। अध्ययन में पाया गया कि संशोधित सूक्ष्मजीव (modified microbes) हरे प्रकाश में बेहतर विकसित हुए। वैज्ञानिकों का मानना है कि यही प्रक्रिया अरबों वर्ष पहले प्राकृतिक चयन (natural selection) के माध्यम से हुई होगी। अध्ययन में यह भी बताया गया कि आधुनिक सायनोबैक्टीरिया के पूर्वजों के पास हरे प्रकाश के लिए अनुकूलन (Green-Light Adaptation) प्राकृतिक रूप से था, जिसके कारण वे पृथ्वी की प्रारंभिक परिस्थितियों में जीवित रह सके। 

एक रहस्य अभी भी बाकी है

इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के प्रारंभिक वातावरण और जीवन के बारे में कई खुलासे किए, परंतु यह रहस्य अभी भी बना हुआ है कि प्राचीन सूक्ष्मजीव (Ancient Microbes) पृथ्वी की शुरुआती कठिन परिस्थितियों में कैसे जीवित रहे। उस समय पृथ्वी पर जहरीली गैसें और तीव्र ज्वालामुखी गतिविधियाँ थीं।

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